Monday, December 28, 2020

सरकार किसानों को कमजोर समझने की गलती कर रही है क्यों

 एक माह से अधिक का समय किसानों को आंदोलन करते हुए बीत चुका है मगर किसानों का सब्र का पैमाना नहीं छलका है इसका मतलब यह नहीं है कि आंदोलन में आंधी नहीं आ सकती है। सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए की इस समय किसानों के आंदोलन को व्यापक समर्थन मिलना शुरू हो गया है आज हालात यह है कि सरकारी नौकरी छोड़कर किसानों के आंदोलन में सहयोग और सेवा करने के लिए पहुंच चुके हैं। अभी यह संख्या काम है मगर धीरे-धीरे बढ़ सकती है क्योंकि अभी पंजाब पुलिस के डीआईजी एवं डॉक्टर जोकि दो लाख माह की नौकरी को ठुकरा सकते हैं तो सरकार को समझने की आवश्यकता है कि इस आंदोलन को नहीं रोका गया तो निश्चित ही सरकार के सामने परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। सरकार भले ही अपने मन को समझाने के लिए यह कह रही है कि किसानों की संख्या काफी काम है मगर सरकार को इसका अंदाजा स्वयं भी है क्योंकि सरकार ने सभी बॉर्डर्स से पूर्व ही पुलिस लगाकर आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों को रोका जा रहा है। सरकार द्वारा किसानों को रोकने पर शांति भंग हो सकती है। मगर सरकार भी क्या करें अगर किसानों को आंदोलन में शामिल होने देगी तो निश्चित किसानों को मजबूती मिलेगी जो सरकार बिल्कुल नहीं चाहती है।

सरकार और किसान मिलकर समस्या का हल निकाल सकते हैं मगर दोनों अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं जोकि किसान और सरकार दोनों के लिए हित में नहीं है। किसान चाहते हैं कि तीनों काले काले रद्द हो और सरकार केवल तीनों कानूनों में कुछ बदलाव करते हुए किसानों को लॉलीपॉप थमाना चाहती है मगर किसान इस बार मूर्ख नहीं बनना चाहते है। किसानों की मांग किसी हद तक भी है क्योंकि किसानों को उनकी फसल की एमएसपी भी नहीं मिलती है और किसानों के द्वारा उत्पादित जब व्यापारी या खुरदरा विक्रेता के पास पहुंच जाती है तो फिर फसल एमआरपी पर बिकती है क्या यह सरकार को नहीं मालूम सब सरकार की आंखों के सामने होता है और प्रत्येक व्यक्ति इसे जानता और मानता है मगर फिर भी किसान को एमएसपी नहीं मिल सकती है।

धरना स्थल पर मौजूद एक बहुत ही छोटे से किसान ने बहुत ही पते की बात कहीं जोकि मेरे दिल को छू गई क्योंकि उक्त किसान का कहना है कि हम यानी किसान मूर्ख और कमजोर है नहीं तो सरकार व्यापारियों की तरह किसान के पास आने के लिए मजबूर होती जब उन्होंने पूरा खुलासा किया तो मुझे भी मानने पर मजबूर होना पड़ा। आंदोलनकारी किसान का कहना है की इस तरह की एकता किसानों में इससे पूर्व देखने को नहीं मिली। यही एकता अगर किसान अपनी फसलों के लिए योजना बनाएं और योजनाबद्ध तरीके से अपनी फसलें उगाए तो निश्चित ही किसान को एमएसपी मांगने की आवश्यकता ही नहीं होगी। किसान का कहना है कि गेहूं, गन्ना, चावल, मक्का सहित अन्य एमएसपी पर बिकने वाली फसलों को आवश्यकता से कम उत्पादित करें और क्षेत्र वाइज फसलों का बटवारा करते हुए उगाए तो निश्चित ही किसानों को सफलता मिल सकती है। आंदोलनकारी किसान का कहना था कि शहरी क्षेत्र के नजदीक कृषि क्षेत्रों में केवल हरी सब्जी और फूल फल इत्यादि की खेती की जाए तो निश्चित ही ऐसे किसानों को भरपूर कीमत मिल सकती है। शहर से दूरी वाले क्षेत्र में आवश्यकता के अनुसार हरी सब्जी और एमएसपी वाली फसलें उगाई जाए निश्चित ही किसानों को लाभ मिलेगा और सरकार को सबक। आंदोलनकारी किसान का मानना है कि आवश्यकता से अधिक उत्पादन ही किसानों की दुर्दशा का जिम्मेदार है। किसान का मानना है की खाद्य उत्पादित सामग्री खरीदना सरकार की मजबूरी है और किसानों द्वारा उत्पादित करना।

आंदोलनकारी किसान का मानना है की किसानों को भी अब कृषि में मार्केटिंग मैनेजमेंट लागू करना होगा और इसके पश्चात सरकार स्वयं सोचने पर मजबूर हूं अंखियों के सामने ऐसा निर्णय क्यों लिया। किसान का मानना है की खेती यानी कृषि का उत्पादन कार्य मल्टीनेशनल कंपनियां नहीं कर सकती हैं यह कार्य केवल एक किसान द्वारा ही किया जा सकता है। सरकार अपनी चहेती कंपनियों को ऐसी भूमि उपलब्ध करा सकती है कि जहां मल्टीनेशनल कंपनियां खेती करें और खाद्य सामग्री उत्पादित करें मगर उसके लिए सरकार को मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए कृषि योग्य भूमि उपलब्ध करानी होगी। फिलहाल अभी किसान आंदोलन पर हैं हो सकता है आने वाले समय में कृषि में भी मैनेजमेंट और मार्केटिंग दोनों का उपयोग होने लगे और यह हालात कभी ना पैदा हो जैसे कि आज है। किसान सर्दी में सड़क पर और देश की सरकार...।

Friday, December 11, 2009

हस्ताक्षर और आपका भविष्य

यह तो आप जानते ही हैं कि हर व्यक्ति के दो रूप होते हैं - एक रूप जो उसके असली व्यक्तित्व को दर्शाता है तथा दूसरा रूप जो वह समाज में सबको दिखाने के लिए अपनाए रखता है। समाज में लोक मर्यादा के कारण कई बार हमें अलग तरह से व्यवहार करना पडता है जिसे आप कमजोरी भी कह सकते हैं अत: इसके फलस्वरूप व्यवहार में भिन्नता होना स्वाभाविक है।
हस्ताक्षर व्यक्ति के व्यक्तित्व का संपूर्ण आइना होता है अत: व्यक्ति के हस्ताक्षर में उसके व्यक्तित्व की सभी बातें पूर्ण रूप से दिखाई देती है। इस प्रकार हस्ताक्षर एक दर्पण है जिसमें व्यक्तित्व की परछाई स्पष्ट यप से झलकती है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर का पहला शब्द काफी बडा रखता है, वह व्यक्ति उतना ही विलक्षण प्रतिभा का घनी, समाज में काफी लोकप्रिय व उच्चा पद प्राप्त करने वाला होता है। हस्ताक्षर में पहला शब्द बडा व बाकी के शब्द सुन्दर व छोटे आकार में होते हैं, ऎसा व्यक्ति घीरे-घीरे उच्चा पद प्राप्त करते हुए सर्वोच्चा स्थान पाता है। ऎसा व्यक्ति जीवन में पैसा बहुत कमाता है। कई भवनों का मालिक बनता है व समाज में काफी लोकप्रिय होता है, किन्तु कुछ रंगीत तबियत का व संकोची स्वभाव का उत्तम श्रेणी का विद्वान भी होता है। वह अपने कुल का काफी नाम ऊँचा करता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर इस प्रकार से लिखता है जो काफी अस्पष्ट होते हैं तथा जल्दी-जल्दी लिखे गये होते हैं, वह व्यक्ति जीवन को सामान्य रूप से नहीं जी पाता है। हर समय ऊँचाई पर पहुँचने की ललक लिए रहता है। इस प्रकार का व्यक्ति राजनीति, अपराघी, कूटनीतिज्ञ या बहुत बडा व्यापारी बनता है। जीवन आपाघापी में व्यतीत करने के कारण समाज से कटने लगता है तथा लोगों की अपेक्षा का शिकार भी बनता है। यह व्यक्तिगत रूप से पूर्ण संपन्न तथा इनका वैवाहिक जीवन कम सामान्य रहता है। घोखा दे सकता है परंतु घोखा खा नहीं सकता है। यह इनकी विशेषता है।
जो व्यक्ति हस्ताक्षर काफी छोटा व शब्दों को तोड-मरोडकर उनके साथ खिलवाड करता है जिसके फलस्वरूप हस्ताक्षर बिल्कुल पढने में नहीं आता है वह व्यक्ति बहुत ही घूर्त व चालाक होता है। अपने फायदे के लिए किसी का भी नुकसान करने व नुकसान पहुँचाने से नहीं चूकता। पैसा घन भी गलत रास्ते से कमाता है तथा ऎसा व्यक्ति राजनीति एवं अपराघ के क्षेत्र में काफी नाम कमाता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के नीचे दो लाइनें खींचता है वह व्यक्ति भावुक होता है। पूरी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता, मानसिक रूप से थोडा कमजोर होता है। जीवन में असुरक्षा की भावना रहती है, जिसके कारण आत्महत्या करने का विचार मन में रहता है। पैसा जीवन में अच्छा होता है परंतु कंजूस स्वभाव भी रहता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के शब्दों को काफी घुमाकर सजाकर प्रदर्शित करके करता है वह व्यक्ति किसी न कसी हुनर का मालिक अवश्य होता है, यानि कलाकारख् गायक, पेंटर, व्यग्यकार व अपराघी होता है। ऎसे व्यक्तियों का समय जीवन के उत्तरार्द्ध में अच्छा होता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर में नाम का पहला अक्षर सांकेतिक रूप में तथा उपनाम पूरा लिखता है तथा हस्ताक्षर के नीचे बिन्दु लगाता है, ऎसा व्यक्ति भाग्य का घनी होता है। मृदुभाषी, व्यवहार कुशल, समाज में पूर्ण सम्मान प्राप्त करता है। ईश्वरवादी होने के कारण इन्हें किसी भी प्रकार की लालसा नहीं सताती, इसके फलस्वरूप जो भी चाहता है स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। वैवाहिक जीवन सुखी व संतानों से भी सुख प्राप्त होता है।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर के अंतिम शब्द के नीचे बिंदु (.) रखता है। ऎसा व्यक्ति विलक्षण प्रतिभा का घनी होता है। ऎसा व्यक्ति जिस क्षेत्र में जाता है काफी प्रसिद्धि प्राप्त करता है और ऎसे व्यक्ति से बडे-बडे लोग सहयोग लेने को उत्सुक रहते हैं।
जो व्यक्ति अपने हस्ताक्षर स्पष्ट लिखते हैं तथा हस्ताक्षर के अंतिम शब्द की लाइन या मात्रा को इस प्रकार खींच देते हैं जो ऊपर की तरफ जाती हुई दिखाई देती हे, ऎसे व्यक्ति लेखक, शिक्षक, विद्वान, बहुत ही तेज दिमाग के शातिर अपराघी होते हैं। ऎसे व्यक्ति दिल के बहुत साफ होते हैं हरेक के साथ सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं। मिलनसार, मृदुभाषी, समाज सेवक, परोपकारी होते हैं। यह व्यक्ति कभी किसी का बुरा नहीं सोचते हैं, सामने वाला व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो हमेशा उसे सम्मान देते हैं। सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद भी आपको समाज में सम्मान घीरे-घीरे प्राप्त होता है। जीवन के उत्तरार्द्ध में आपको काफी पैसा व पूर्ण सम्मान प्राप्त होता है। जीवन में इच्छाएं सीमित होने के कारण इन्हें जो भी घन व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। उससे यह काफी संतुष्ट रहते हैं। अंत में यही कहूंगा कि हस्ताक्षर या लिखावट से हमारा सीघा संबंघ मानसिक विचारों से होता है, यानि हम जो सोचते हैं करते हैं। जो व्यवहार मे लाते हैं वह सब अवचेतन रूप में कागज पर अपनी लिखावट व हस्ताक्षर के द्वारा प्रदर्शित कर देते हैं। हस्ताक्षर के अघ्ययन से व्यक्ति अपने भविष्य व व्यक्तित्व के बारे में जानकारी कर सकते हैं और हस्ताक्षर में दिखाई देने वाली कमियों को दूर करते हुए अच्छे हस्ताक्षर के साथ-साथ अपना भविष्य व व्यक्तित्व भी बदल सकते हैं।

Monday, October 19, 2009

हत्या के बाद युवक को जलाया

छावला इलाके में एक व्यक्ति की ईंट व चाकू मारकर हत्या कर दी गई और फिर कार सहित उसे जला दिया गया। पुलिस जब मौके पर पहुंची तो शव पूरी तरह से जल चुका था। जांच में पुलिस को पता चला कि मामला हत्या का है। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर जांच करने के बाद आरोपी राकेश (21) को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में उसने पुलिस को बताया कि मृतक राजेश उसकी मां से मेल-जोल रखता था। इस पर उसे आपति थी।
पुलिस के अनुसार शुक्रवार की देर रात घुम्मन हेड़ा रोड के पास एक सेंट्रो कार में आग लगने की सूचना मिली थी। मौके पर पुलिस के पहुंचने से पहले आग को बुझाया जा चुका था। कार में सीटों के बीच एक व्यक्ति का शव पूरी तरह से जली अवस्था में पड़ा हुआ था। जांच के दौरान पता चला कि यह कार नंग्ली सकरावती में रहने वाली एक महिला के नाम पर है और उसका बेटा राजेश (39) गाड़ी लेकर गया था। वह इलाके का घोषित अपराधी था। आगे छानबीन करने पर पुलिस को पता चला कि राजेश का एक महिला से काफी मेलजोल था। वह अकसर उससे मिलने के लिए जाता था।इस पर महिला के बेटें आपति करते थे। छानबीन करने के बाद पुलिस ने महिला के बेटे राकेश को गिरफ्तार कर लिया। उसने पूछताछ में पुलिस को बताया कि वह राजेश को कई बार घर नहीं आने की चेतावनी दे चुका था। लेकिन वह मानता नहीं था। इसलिए शुक्रवार की रात वह राजेश के साथ गया और दोनों ने शराब पी। शराब पीने के बाद राकेश ने पहले ईंट से और फिर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर राजेश की हत्या कर दी। हत्या करने के बाद राजेश की पहचान मिटाने के लिए उसने सीट का कंवर फाड़ा और फिर गाड़ी में आग लगा दी थी। पुलिस उससे आगे पूछताछ कर रही है।

Saturday, October 10, 2009

हत्यारी पंचायतें

अजय प्रकाश

हर महीने आठ से दस प्रेमियों की हत्या करने वाली मध्ययुगीन बर्बर खाप पंचायतों के खिलाफ हरियाणा में मुकदमा दर्ज करने का इतिहास नहीं है।

मान-सम्मान के नाम पर बलात्कार, हत्या, बेदखली, सामाजिक बहिष्कार और आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाली इन पंचायतों का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में है जिन्हें देखकर तालिबान की याद आती है। हरियाणवी समाज में सदियों से पैठी इन तालिबानी मान्यताओं के पूजकों से आधुनिक मूल्यों के साथ खड़ा हो रहा नया समाज थर्राता है।
हरियाणा में पहली बार खाप के एक नेता को एक हत्याकांड के सिलसिले में जेल भेजा गया है। करनाल जिले के बनवाला खाप के नेता सतपाल को मातौर गांव के वेदपाल हत्याकांड मामले में गिरफ्तार किया गया है। हालांकि खाप पंचायत के खिलाफ मुकदमा दर्ज न कर पुलिस ने पंचायत को कटघरे में खड़ा होने से हमेशा की तरह फिर एक बार बचा लिया है। फिर भी न्यायालय कानून बनाने के लिए उसी राज्य का मुंह ताक रहा है जिसकी विधानसभा में खाप पंचायतों का सरेआम समर्थन करने वाले प्रतिनिधि बैठे हुए हैं।
राज्य के कानून विशेषज्ञों के मुताबिक छोटी अदालतों से लेकर हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी प्रेमी युगलों की सुरक्षा के आदश से आगे बढ़कर पंचायतों को अवैध घोषित करने या पंचायत सदस्यों के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने के बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिये हैं। यहां तक कि प्रेमी युगलों की हत्याओं और सुरक्षा को लेकर पिछले वर्ष उच्च न्यायालय द्वारा गठित उच्चस्तरीय कमेटी ने भी जारी अपनी रिपोर्ट में ऐसा कोई सुझाव नहीं दिया है जिससे खाप या जातिगत पंचायतों के तालिबानी फरमानों पर सीधी चोट हो सके।
कमेटी के सदस्य और चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के वरिष्ठ स्थाई अधिवक्ता अनुपम गुप्ता का जवाब है, ‘मैंने जानबूझकर चर्चा नहीं की। सिर्फ जातिगत पंचायतों पर सवाल खड़ा करने से समस्या खत्म नहीं होने वाली।’ कई वकीलों से बातचीत में पता चला कि खाप पंचायतों पर इसलिए मुकदमा नहीं दर्ज किया जा सकता है कि संकट के समय उनकी एक सहयोगी भूमिका होती है। अगर इस आधार पर हम खापों को जायज ठहरायेंगे तो तालिबान के विरोध में कैसे खड़े हो पायेंगे।
कमेटी ने अपने बचाव में यह भी कहा कि कमेटी के गठन होने तक खापों के सीधे हस्तक्षेप जैसे मामले उजागर नहीं हुए थे। लेकिन सच्चाई यह है कि 27 जून 2008 में जब कमेटी का गठन हुआ तो उससे 36 दिन पहले 9 मई को बला गांव में कालीरमन खाप के आदेश पर प्रेमी जोड़े जसबीर और गर्भवती सुनीता की हत्या कर दी गयी थी। इसी तरह 2 अप्रैल को कमेटी की रिपोर्ट पेश होने से 20 दिन पहले 12 मार्च को करनाल जिले के मातौर गांव में बनवाला खाप ने वेदपाल और सोनिया को अलग होने का फरमान सुना दिया था। बाद में 26 जुलाई को वेदपाल की हत्या कर दी गयी।
इसी तरह अगस्त महीने में झज्जर जिले के धाड़ना गांव में रवींद्र और शिल्पा को भाई- बहन बनाये जाने के पक्ष में कादयान खाप का अगस्त के मध्य में चार दिनों का धरना चला। धरने में यह अभूतपूर्व था कि महिलाएं भी शामिल थीं। घोर स्त्री विरोधी इन खाप पंचायतों में महिलाओं का शामिल होना एकदम नयी घटना थी। सैकड़ों की संख्या में पुलिस ड्यूटी बजा रही थी कि कहीं पंचायत रवींद्र के घर में घुसकर आग न लगा दे, हत्या न कर दें। लेकिन किसी पंचायत प्रतिनिधि के खिलाफ इस मामले में कोई मुकदमा नहीं दर्ज हुआ।

हरियाणा पुलिस महानिदेशक विकास नारायण राय भी मानते हैं कि ‘पंचायतों पर शिकंजा कसने के मामले में कोताही बरती जाती रही है।’ पुलिस महानिदेशक को ‘प्रेमी सुरक्षा घर’ योजना से काफी उम्मीदें हैं। उल्लेखनीय है कि हरियाणा पुलिस ने प्रेमी जोड़ों को हत्यारों से बचाने के लिए ‘सेफ होम’ बनाने की घोशणा की है जिसकी देखरेख सीधे पुलिस के हाथों में होगी। लेकिन सवाल है कि हथियारों से लैस दस पुलिस वाले जब कादयान खाप के हमलावरों से वेदपाल को मरने से नहीं बचा सके तो वही पुलिसकर्मी उन घरों को खापों के हमले से कितना सुरक्षित रख पायेंगे। और इससे बड़ी बात है कितने दिन प्रेमी जोड़े गांव-घर से दूर ‘सेफ होम’ में जी पायेंगे।
इन मानवाधिकारों की रक्षा करने वाला दफ्तर मानवाधिकारआयोग’ हरियाणा में नहीं है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शब्दों में,‘राज्य में ऐसे आयोग की आवश्यकता नहीं है।’ हां राज्य में महिला आयोग जरूर है जिसकी अध्यक्ष कांग्रेसी नेता सुशीला शर्मा हैं। खापों के खिलाफ आयोग ने किस तरह की कार्यवाई किये जाने की राज्य से सिफारिश की है, उनका जवाब था, ‘टेलीफोन न पर मैं थानों और अधिकारियों को राय सुझाती रहती हूं। महिला आयोग खापों पर शोध कर रहा है। शोध पूरा होने पर फैसला होगा।’
मुख्यमंत्री मानवाधिकार आयोग की जरूरत महसूस नहीं करते, महिला आयोग खापों पर शोध करवा रही है और अदालत की गठित कमेटी की रिपोर्ट में खाप और जातिगत पंचायतों पर कार्यवाही का जिक्र ही नहीं आता। वैसे में जीवनसाथी चुनने का अधिकार हरियाणा में कहां से मिलेगा?

दिल्ली पुलिस का इंसाफ

अजय प्रकाश
गुस्से और बौखलाहट से भर देने वाली ये तस्वीरें आपने देख ली होंगी। ये तस्वीरें दिल्ली प्रेस की अंग्रेजी पत्रिका कारवां से जुड़े पत्रकार जोएल इलिएट की हैं। इससे मिलती-जुलती तस्वीरें हमने इराक के अबू गरेब जेल की देखी थीं। लेकिन यह जेल की नहीं, दिल्ली के सड़कों के जेल बन जाने की बाद की हैं।
पुलिसिया काम के इस नमूने को हम इसलिए देख पा रहे हैं कि यह एक अमेरिकी पत्रकार के साथ किया गया इंसाफ है। पत्रकार जोएल इलिएट पत्रिका कारवां के साथ मई महीने से जुड़े हुए थे। इससे पहले वे न्यूयार्क टाइम्स, द क्रिष्चियन सांइस मानिटर, सैन फ्रांसिस्को, क्राॅनिकल और ग्लोबल पोस्ट के स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर काम करते रहे हैं।
दिल्ली के जंगपुरा की सड़कों पर पुलिस द्वारा पीटे जा रहे एक आदमी को बचाने के चक्कर में खुद षिकार हो गये जोएल फिलहाल अपने देष अमेरिका लौट गये हैं। हमें तो खुषी है वे बेचारे भारत के नहीं हैं, उपर से हिंदी के तो बिल्कुल भी नहीं। नहीं तो पुलिस वाले धमकाकर चुप करा देते, नहीं मानने पर मीडिया घराने का मालिक नौकरी से निकाल देता और बात अगर इससे भी नहीं बनती तो लड़कीबाज, दलाल या रैकेटियर बनाकर रगड़ देते। मौका तो रात का था ही जिसमें यह सब आसान होता।
यहां राहत है कि कारवां पत्रिका के प्रबंध संपादक अनंत नाथ और अमेरिकी दुतावास वाले इस मामले को गंभीरता से उठा रहे हैं। रही बात बिरादरों की तो, सब पूछ रहे हैं कि हम क्या कर सकते हैं......

Monday, July 6, 2009

जनता के लिए खास नहीं रहा बजट

केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की ओर से सोमवार को पेश किया गया बजट जनता के लिए खास नहीं रहा। उसे बजट में खास जगह नहीं मिली। बजट में विभिन्न टैक्स को कम करने पर जहां खास जोर दिया गया, वहीं उद्योगों की मंदी को लेकर किसी बड़े पैकेज का ऐलान नहीं किया गया। उद्योगपतियों का कहना है कि सरकार ने टैक्स तो कम कर दिए मगर मंदी से उबरने के लिए कोई बड़ा पैकेज नहीं दिया।बजट में आम वस्तुओं में सरकार ने मोबाइल, वाटर प्यूरीफायर, केबल वायर, ब्रांडेड ज्वेलरी, एलसीडी स्क्रीन आदि के दाम कम किए हैं, वहीं महंगाई को देखते हुए इस बार आम उपभोक्ता वस्तुओं मंे कोई गिरावट नहीं हुई। बुद्धिजीवियों ने बजट को मिला-जुला करार दिया है। उनका कहना कि सरकार ने इस बार सिर्फ टैक्स पर खास ध्यान दिया है। इसमें सरचार्ज, फ्रिंज टैक्स, कापरेरेट टैक्स को हटा दिया गया।

कर्मचारियों का वेतन स्तर बढ़ा :- चार्टर्ड एकाउंटेंट तरुण कुमार गुप्ता ने कहा कि इस बजट से कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी होने की संभावना है। मिनिमम वेजेज निर्धारित करने से श्रमिकों को इस बजट से काफी राहत मिल सकती है।अभी मेहनत के बाद भी उन्हें सही वेतन नहीं मिल पाता है। आईसीएआई के प्रधान एसके बंसल ने बजट को मिला-जुला बताया। बजट में फ्रिंज बेनेफिट टैक्स को हटाने का उन्होंने स्वागत किया। माल भाड़े पर सर्विस टैक्स लगाने को उन्होंने गलत बताया।

निराशाजनक रहा आम बजट :- रीयल स्टेट से जुड़े दिव्यंेदु शेखर ने बजट को निराशाजनक बताया। उनका कहना है कि निर्माण के क्षेत्र मंे सरकार ने कोई पैकेज नहीं दिया। इससे मंदी को खत्म होने में समय लगेगा। उद्योगपति शंकर शर्मा का कहना है कि बजट से उद्योगों को खास फायदा नहीं होने वाला। हालांकि अन्य क्षेत्रों में शिक्षा और कृषि में इसके अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

बिजली पर नहीं दिया गया ध्यान :- चार्टर्ड एकाउंटेंट संगीत कुमार गुप्ता और संजीव गुप्ता का कहना है कि सरकार को बिजली के मामले में कुछ प्रभावकारी कदम उठाने चाहिए। उद्योगों को इस समस्या से भारी नुकसान हो रहा है। जिले में लगातार बिजली की कमी ने सभी के लिए समस्या पैदा कर रखी है। बजट में बिजली स्रोत को बढ़ाने के कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।

पेट्रो पदाथरें के बढ़े रेट वापस लिए जाएं :- विज्ञापन एजेंसी में काम करने वाले ऋषि का कहना है कि मोबाइल के दाम कम करने से क्या होगा। मोबाइल तो पहले से ही सस्ते थे। सरकार को ईधन के बढ़ाए दामों को वापस लेना चाहिए था। सरकार को महंगाई दर कम करनी चाहिए। हालांकि छात्रों के लिए नई केंद्रीय यूनिवर्सिटी की निर्माण योजना अच्छा कदम है।वहीं मार्केटिंग क्षेत्र से जुड़ी सोनिया का कहना है किसरकार को खाद्य और घरेलू सामानों के दामों में और कमी लानी चाहिए थी। इससे गरीब तबके को राहत मिलती।डाक्टर और वकीलों के ऊपर सर्विस टैक्स लगाने को लेकर दोनों वर्ग ने निराशा जाहिर जताई है। आईएमए के अध्यक्ष डा. अनिल गोयल ने सर्विस टैक्स लगाए जाने पर इलाज के महंगे होने की संभावना जताई है।उन्होंने कहा कि इससे सबसे ज्यादा मार गरीब व मध्यम वर्ग को पड़ेगी। वहीं एडवोकेट अश्विनी त्रिखा ने भी इसे गलत बताया और इससे महंगाई बढ़ने की आशंका व्यक्त की है। हसला के पूर्व प्रधान सुशील कण्वा ने कहा कि आयकर की सीमा पुरुषों के लिए दो लाख, महिलाओं के लिए ढाई लाख और सीनियर सिटीजन्स के लिए तीन लाख होनी थी। आयकर की सीमा जो बढ़ाई गई है वह बहुत कम है।

वकीलों ने की सेवा कर की निंदा:-केंद्रीय बजट में वकीलों पर सेवा कर लगाने की कड़ी निंदा की गई है। पलवल बार एसोसिएसन के सदस्य शिवराम सौरोत व भूप सिंह सौरोत एडवोकेट ने उक्त फैसले की कटु आलोचना की है। उन्होंने कहा कि वकील लोगों को न्याय दिलाते हैं, ऐसे में उन पर सेवा कर लगाना निंदनीय है। सौरोत ने कहा कि वकीलों का कार्य समाज सेवा के दायरे में आता है।वकील प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से लोगों की सेवा करते हैं। लोगों को न्याय दिलाना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा सेवा कर लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा जिन लोगों की वकील करने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे लोगों के केस वकील मुफ्त लड़ते हैं और उन्हें न्याय दिलाते हैं। साथ ही वकील न्याय पालिका का अहम हिस्सा है।सरकार ने वकीलों पर कर लगाकर उनके साथ कुठाराघात किया है। वकील समुदाय सरकार के फैसले का पुरजोर विरोध करता है और सरकार से फैसला तुरंत वापिस लेने की मांग करता है।

Monday, June 8, 2009

महिला सांसद पुरुषों से अधिक शिक्षित

नई दिल्ली। भारतीय महिला सांसद अपने पुरुष सहकर्मियों की तुलना में अधिक शिक्षित है और उनके चुनाव में विजयी होने की संभावना भी पुरुषों से अधिक है। एक नए अध्ययन के अनुसार पुरुषों की तुलना अधिक महिला सांसद परास्नातक डिग्रीधारी है।संसदीय शोध को समर्पित एक गैर लाभकारी संस्था 'पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च' के अध्ययन के अनुसार 15वीं लोकसभा की 59 महिला सांसदों में 32 प्रतिशत परास्नातक और शोध डिग्रीधारी है, जबकि पुरुष सांसदों में यह प्रतिशत 30 है। चुनाव में उम्मीदवार बनी 10 प्रतिशत महिलाएं विजयी हुई, वहीं केवल छह प्रतिशत पुरुष प्रत्याशी ही जीतने में सफल हुए।अध्ययन के अनुसार, इस बार लोकसभा में सबसे अधिक महिलाएं है और 545 सदस्यों में उनका प्रतिशत 11 है। राज्यसभा में 10 प्रतिशत और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या सात प्रतिशत है।सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 29 प्रतिशत महिला सांसदों की संख्या 40 वर्ष के कम है। यह प्रतिशत पिछली लोकसभा से काफी बेहतर है, जिसमें 17 प्रतिशत महिला सांसद 40 वर्ष से कम उम्र की थीं। सभी 59 महिला सांसदों की औसत उम्र 47 वर्ष है, जो पुरुष सांसदों की औसत आयु 54 वर्ष से काफी कम है। किसी भी महिला सांसद की उम्र 70 वर्ष से अधिक नहीं है, जबकि सात पुरुष सांसद 70 साल से अधिक उम्र के है।पीआरएस के अनुसार 40 से 60 वर्ष के आयु समूह के बीच की महिला सांसदों का प्रतिशत इस बार काफी कम हुआ है। वर्ष 2004 में इस समूह की महिला सांसदों का प्रतिशत 73 था जो इस बार घटकर केवल 57 प्रतिशत रह गया। परंतु जहां 14 वीं लोकसभा में 60 वर्ष से अधिक की महिला सांसदों का प्रतिशत 9.8 था वहीं इस बार यह बढ़कर 13.8 प्रतिशत हो गया है।