Sunday, September 28, 2008

एक सैर हवेलियों के नाम

शेखावटी की हवेलियों को दुनिया की सबसे बडी ओपन आर्ट-गैलरी की भी संज्ञा दी जाती है। इन हवेलियों पर बने चित्र शेखावटी इलाके की लोक रीतियों, त्योहारों, देवी-देवताओं और मांगलिक संस्काराें से परिचय कराते हैं। ये इस इलाके के धनाड्य व्यक्तियों की कलात्मक रुचि की भी गवाही देते हैं। यूं तो इस इलाके में चित्रकारी की परंपरा छतरियों, दीवारों, मंदिरों, बावडियों और किलों-बुर्जो पर जहां-तहां बिखरी है। लेकिन धनकुबेरों की हवेलियां इस कला की खास संरक्षक बनकर रहीं। अ‌र्द्ध-रेगिस्तानी शेखावटी इलाका राव शेखाजी (1433-1488 ईस्वी) के नाम पर अस्तित्व में आया। व्यवसायी मारवाडी समुदाय का गढ यह इलाका कुबेरों की धरती, लडाकों की धरती, उद्यमियों की धरती, कलाकारों की धरती आदि कई नाम से जाना जाता है। अब यह इलाका अपनी हवेलियों और ऑर्गेनिक फार्मिग के लिए चर्चा में है।

शुरुआती दौर की पेंटिंग गीले प्लास्टर पर इटालियन शैली में चित्रित किए गए हैं, जिस शैली को फ्रेस्को बुआनो कहते हैं। इसमें चूना पलस्तर के सूखने की प्रक्रिया में ही रंगाई का सारा काम हो जाता था। वही इसकी दीर्घजीविता की भी वजह हुआ करती थी। कहा जाता है कि यह शैली मुगल दरबार से होती हुई पहले जयपुर और फिर वहां से शेखावटी तक पहुंची। मुगलकाल में यह कला यूरोपीय मिशनरियों के साथ भारत पहुंची थी। शुरुआती दौर के चित्रों में प्राकृतिक, वनस्पति व मिट्टी के रंगों का इस्तेमाल किया गया था। बाद के सालों में रसायन का इस्तेमाल शुरू हुआ और यह चित्रकारी गीले के बजाय सूखे पलस्तर पर रसायनों से की जाने लगी। जानकार इस कला के विकास को यहां के वैश्यों की कारोबारी तरक्की से भी जोडते हैं। हालांकि अब आप इस इलाके में जाएं तो वह संपन्नता भले ही बिखरी नजर न आए लेकिन कुछ हवेलियों में चित्रकारी बेशक सलामत नजर आ जाती है। चित्रकारी की परंपरा यहां कब से रही, इसका ठीक-ठीक इतिहास तो नहीं मिलता। अभी जो हवेलियां बची हैं, उनकी चित्रकारी 19वीं सदी के आखिरी सालों की बताई जाती हैं। यकीनन उससे पहले के दौर में भी यह परंपरा रही होगी लेकिन रख-रखाव न होने के कारण कालांतर में वे हवेलियां गिरती रहीं। लेकिन हवेलियों में चित्र बनाने की परंपरा इस कदर कायम रही कि वर्ष 1947 से पहले बनी ज्यादातर हवेलियों में यह छटा बिखरी मिल जाती है। राजस्थान के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित झुंझुनूं जिला शेखावाटी अंचल की हृदयस्थली है। झुंझुनूं जिले का नवलगढ कस्बा कला की इस परंपरा की मुख्य विरासत को संजोये हुए है। नवलगढ की स्थापना राव शेखाजी के वंशज ठाकुर नवल सिंह जी ने लगभग ढाई सौ साल पहले की थी। कहा जा सकता है कि चित्रकारी की परंपरा भी उसके थोडे समय बाद ही जोर पकड गई होगी। यहां की हवेलियों की दीवारों पर बारहमासे का भी सुंदर चित्रांकन मिलता है। इनमें मध्यकालीन और रीतिकालीन जन-जीवन और राजस्थानी संस्कृति बिखरी है। कुछ हवेलियों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हैं तो कुछ पर विवाह संबंधी या फिर लोक पर्वोके अलावा युद्ध, शिकार, कामसूत्र और संस्कारों के चित्र भी। नवलगढ ठिकाने के किले में कलात्मक बुर्जे हैं जहां जयपुर और नवलगढ के नक्शे और चित्र मिलते हैं। छतों व छतरियों में गुंबद के भीतरी हिस्से में भी गोलाकार चित्र बनाए गए हैं। नवलगढ की हवेलियां आज भी अपने मालिकों की यश-गाथाएं दुहराती हैं। गोविंदराम सेक्सरिया की हवेली में पांच विशाल चौक, पैंतालीस-पैंतालीस फुट की दो बडी बैठकें, पचास कक्ष, हालनुमा दो तहखाने, कलात्मक बरामदे और बारीकियों के कामों से युक्त जालियां हैं। पूर्णतया चित्रांकित चोखाणी की हवेली के पौराणिक चित्र और दरवाजों की शीशम की चौखटों पर किए गए बारीक कलात्मक कार्योको देखकर कोई उसे पुरानी नहीं कह सकता। जयपुरियों और पाटोदियों की हवेलियां दो सौ वर्ष पूर्व निर्मित हैं तो सरावगियों की हवेली उनसे भी पहले की हैं। छावसरियों और पोद्दारों की हवेलियां डेढ-पौने दो सौ साल पहले की हैं। स्थित यह कि हवेलियां ही हवेलियां, एक के बाद दूसरी हवेली और खुर्रेदार चबूतरों की हवेलियां। रींगसियों की दो चौक की हवेली की दीवारों पर अनगिनत चित्र तो डीडवानियों की हवेली भी प्रसिद्ध। इन हवेलियों के डिजाइन की खूबी यह कि हर हवेली के सामने एक ऊंचा खुर्रा है जिस पर हाथी भी चढ सकता है।

मोरारका हवेली:> यह हवेली नवलगढ की उन चुनिंदा हवेलियों में से है जो थोडे रखरखाव के कारण देखने लायक बची हैं। सन 1890 में केसरदेव मोरारका की बनाई यह हवेली अब संग्रहालय के रूप में सैलानियों के लिए खुली है जिसकी देखभाल एमआर मोरारका-जीडीसी रूरल फाउंडेशन कर रहा है। हवेलियों के जो हिस्से इतने लंबे काल में मौसम की सीधी मार से बचे रहे, वहां के चित्रों के रंग अब भी ताजा लगते हैं। भव्यता की डिग्री को छोड दिया जाए तो न केवल ज्यादातर हवेलियों की बनावट मिलती-जुलती है-दरवाजे, बैठक, परिंडे, दुछत्तियां, जनाना, पंखे, सबकुछ एक जैसे लगते हैं, चित्रकारी में भी खास अंतर नहीं है। चित्रकारी के अलावा हवेलियों के दरवाजे और भीतर कांच का काम भी आकर्षक रहा है। चित्रकारी मुगल व राजपूत शैलियों का मिला-जुला रूप है। जिन हवेलियों का रखरखाव हो रहा है, वहां इन पेंटिंग को बचाने की कोशिश हो रही हैं। दीवारों की मरम्मत हुई हैं, चित्रों की केमिकल ट्रीटमेंट से देखरेख हो रही है ताकि मौसम, धुएं, मिट्टी, गंदगी आदि को साफ किया जा सके। मोरारका हवेली में जहां पुरानी पेंटिंगों को नया रूप देने की कोई कोशिश नहीं की गई है और उनके मूल रूप को ही बचाए रखने पर जोर है, वहीं पोद्दार हवेली म्यूजियम में चित्रों को उसी तरह के रंगों का इस्तेमाल करके नया रूप दे दिया गया है और इससे वे बिलकुल नई जैसी लगती हैं। दोनों ही तरीकों ने एक ऐसी विरासत को सहेजकर रखा है जो अन्यथा बहुत तेजी से विलुप्त हो जातीं।

अन्य जानकारियां

कब व कैसे:>कडाके की गरमियों में इस इलाके में न ही जाएं तो सेहत के लिए बेहतर है। अक्टूबर से मार्च तक यहां का लुत्फ सबसे अच्छे तरीके से लिया जा सकता है। नवलगढ झूंझनू जिले में है। आप यहां दिल्ली व जयपुर दोनों जगहों से पहुंच सकते हैं। जयपुर से आएं तो चौमू व रींगस के रास्ते नवलगढ आया जा सकता है और यदि दिल्ली से आएं तो सडक मार्ग पर कोटपूतली तक आकर वहां से नीम का थाना होते हुए नवलगढ का रास्ता पकड लें।

कहां ठहरें:सैलानियों की आवक को देखते हुए नवलगढ में हाल में कई छोटे होटल उभर आए हैं। रूपनिवास कोठी, ग्रांड हवेली रिसॉर्ट जैसे अच्छे व महंगे होटल भी हैं जो उन हवेलियों में ठहरने का आभास देंगे जो देखने सैलानी वहां पहुंचते हैं। इसके अलावा यदि आप ठेठ ग्रामीण मेजबानी का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो सहज मोरारका टूरिज्म के रूरल टूरिज्म प्रोजेक्ट में कई गांवों में भी सैलानियों के ठहरने की व्यवस्था है।

प्रकृति की गोद में परंपरा की दौड़

1. रामदेवरा मेला, रामदेवरा गांव, पोखरण, जैसलमेर,

बाबा रामदेव एक तंवर राजपूत थे जिन्होंने सन 1458 में समाधि ली थी। उनकी समाधि पर लगने वाले इस मेले में हिंदुओं व मुसलमानों की समान आस्था है। 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने समाधि पर मंदिर बनवा दिया था। कहा जाता है कि रामदेव की चमत्कारिक शक्तियों की चर्चा दूर-दूर तक थी। उन चर्चाओं को सुनकर मक्का से पांच पीर उन्हें परखने पहुंचे और उनसे अभिभूत होकर लौटे। उसके बाद मुसलमान उन्हें राम शाह पीर कहकर उनका मान करने लगे। मेले में आने वाले श्रद्धालु समाधि पर चावल, नारियल और चूरमे का चढावा चढाते हैं और लकडी के घोडे समर्पित करते हैं। हर मजहब से जुडे लोग मेले में आते हैं और पूरी रात-रात भर भजन व गीत के कार्यक्रम चलते हैं।

2. अरणामुला बोट रेस, अरणामुला, चेंग्गानूर, केरल, अरणामुला वल्लमकली (नौका दौड) केरल की पारंपरिक नौका दौडों की शानदार श्रृंखला की एक कडी। पंपा नदी में सांप नौकाओं की यह दौड रोमांचित कर देने वाली होती है। यह दौड अरणामुला पार्थसार्थी मंदिर से जुडी है। पुराने समय में इस मंदिर में ओणम के चढावे की सामग्री सर्प नौकाओं से आया करती थी। उसी परंपरा को याद करने के लिए यह दौड होती है। अरणामुला चेंग्गानूर स्टेशन से महज 10 किलोमीटर दूर है। अरणामुला बोट रेस से दो दिन पहले यानि 14 सितंबर 2008 को अल्लपुझा के पय्यपड गांव में पय्यपड बोट रेस होती है। मुख्य रेस से दो दिन पहले से ही इसके आयोजन शुरू हो जाते हैं। रेस के साथ-साथ लोककलाओं के भी कई आयोजन इस मौके पर होते हैं। केरल की नौका दौडें इस त्योहारी सीजन का चरम आकर्षण होती हैं, एक न भूलने वाला अनुभव।

3. नाइट ऑफ थाउजैंड फायर्स, ओबरवेजेल, जर्मनी,राइन इन फ्लेम्स के पूरे आयोजन का चरम। राइन खड्ड में ओबरवेजेल के आसपास शानदार आतिशबाजी, सेंट गोर से गुजरते जहाजों से गूंजता अद्भुत संगीत, चारों तरफ रोशनी का नजारा। फिर 20 सितंबर को सेंट गोर व सेंट गोरशाउसेन शहरों में बेमिसाल जश्न। इसे पूरे आयोजन की सबसे रोमांटिक रात कहा जाता है। राइन नदी पर जगमगाती रोशनी के बीच स्थानीय वाइन का सुरूर। जर्मनी के देशज रूप को महसूस करने का सबसे शानदार मौका।

4. लंदन टैटू कनवेंशन, टौबेको डॉक, लंदन,टैटू गुदवाने का शौक आजकल खास व आम, दोनों तरह के लोगों में बडा आम है। लेकिन टैटू गुदवाने के शौक से ज्यादा अहम है उसे गोदने की कला। इसी लोकप्रिय कला का जश्न मनाने के लिए टौबेको डॉक पर तीन दिन का कनवेंशन होता है जिसमें दुनियाभर के डेढ सौ से ज्यादा जाने-माने टैटू कलाकार हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा नामी-गिरामी डीजे व संगीतकार भी यहां जमा होते हैं। आप चाहें तो किसी आर्टिस्ट से टैटू बनवा सकते हैं या फिर बस आराम से बैठकर माहौल का मजा ले सकते हैं। कलाकारों के लिए अलग-अलग वर्गो में टैटू प्रतियोगिताएं भी होती हैं जैसे सर्वश्रेष्ठ ग्रे, सर्वश्रेष्ठ छोटा टैटू, सर्वश्रेष्ठ बडा टैटू, वगैरह-वगैरह। इस आयोजन का यह चौथा साल है और पिछले साल बीस हजार दर्शकों ने इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। संगीत की लहरें इस पूरे माहौल को और भी रंगीन बनाती हैं। टैटू पसंद करते हों तो न छोडने वाला आयोजन।

5.बंदर भगवान का जन्मदिन, हांगकांग व सिंगापुर,बंदर देवता के नाम पर हमारे हनुमान जी के सिवाय भी दुनिया में कोई और है, यह सुनकर अचरज होगा। लेकिन हकीकत यही है कि सिंगापुर और हांगकांग में हर साल बौद्ध परंपरा के चीनी समुदाय द्वारा बंदर देवता का जन्मदिन मनाया जाता है। यह हनुमान नहीं हैं लेकिन बहुत मुमकिन है कि वह उनसे प्रेरित रहा हो। यह इसलिए भी लगता है क्योंकि यह उस बंदर के लिए मनाया जाता है जिसने सैकडों साल पहले तंग वंश के एक राजा द्वारा भारत से बुद्ध के ग्रंथ लाने के लिए भेजे गए एक यात्री की मदद की थी। इसका पहला उल्लेख मिंग वंश (1368-1644 ई.) के दौरान लिखे गए एक ग्रंथ से मिलता है। इस मौके पर शानदार रंगारंग झांकियां निकाली जाती है। दोनों ही जगहों पर यह भगवान काफी लोकप्रिय हैं।

6. डाइविंग बुद्धा फेस्टिवल, फेच्चाबुन, थाईलैंड, मध्य थाईलैंड में यह प्राचीन बौद्ध उत्सव बडी रंगारंग झांकियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और बुद्ध की मूर्ति को गोता खिलाने की बडी अजीबोगरीब रस्म के साथ मनाया जाता है। बुद्ध की मूर्ति के साथ विशाल जुलूस निकाला जाता है, प्रांत का गवर्नर फिर मूर्ति को सिर पर उठाकर पकडे नदी में गोता लगाता है। वह चार दिशाओं में चार बात गोता लगाता है क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इससे समूचे इलाके में संपन्नता व खुशहाली फैलती है। मूर्ति को गोता खिलाने के बाद खान-पान के साथ-साथ संगीत व नृत्य का आयोजन होता है। इस आयोजन के मूल में भी एक रोचक कहानी है जो बुद्ध की मूर्ति के मिलने, खोने और फिर मिलने से जुडी है।

Saturday, September 27, 2008

चीन से आयातित दूध पर सरकार सांसत में

चीन में बच्चों के दूध में बेहद खतरनाक तत्वों के मिले होने की खबर पर अब जाकर भारत सरकार जागी है। सरकारी महकमों में बुधवार को उस समय हड़कंप मच गया था जब यह पता चला कि चीन से इस वर्ष लगभग 10 हजार टन डिब्बाबंद दूध का आयात हो चुका है।

आनन-फानन में बुधवार देर रात चीन से दूध और दुग्ध उत्पादों के आयात पर अगले तीन महीनों के लिए पाबंदी भी लगा दी गई। अब यह जांच-पड़ताल शुरू की गई है कि चीन में कई बच्चों को मौत की नींद सुलाने वाला मिलावटी दूध कहीं भारत भी तो नहीं पहुंच गया है। इसके लिए चीन से दूध आयात करने वाली कंपनियों का पता लगाया जा रहा है। यह छानबीन भी शुरू की गई है कि आयातित दूध का इस्तेमाल किस प्रकार किया गया है।सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार की नींद विश्व स्वास्थ्य संगठन की उस सलाह के बाद खुली है जिसमें चीन के पड़ोसी देशों को सतर्क किया गया था। इसके बाद मंगलवार को खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। बैठक के बाद डीजीएफटी से संबंधित आंकड़े मंगवाने पर यह साफ हुआ कि चीन से लगभग 10 हजार टन डिब्बाबंद दूध चालू वित्त वर्ष के दौरान आयात किया गया है। अब सरकारी महकमा यह तलाशने में जुटा है कि किन कंपनियों ने इसका आयात किया है।डीजीएफटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हम अभी यह पता लगा रहे हैं कि चीन की जिन 22 कंपनियों के दूध में खतरनाक तत्व मिले हैं कहीं उन्होंने अपने उत्पाद का निर्यात भारत में तो नहीं किया है। इसके लिए बैच नंबर का मिलान किया जा रहा है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि किस तरह का दूध भारत लाया गया है। हालांकि यह साफ है कि ये दूध बच्चों के पीने से संबंधित नहीं है क्योंकि इन्हें सह-उत्पाद के तौर पर आयात किया गया है। इसके बावजूद सरकार कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती है। इसलिए अगर इस आयातित दूध से कोई अन्य खाद्य उत्पाद तैयार किए गए हैं तो उनकी भी जांच की जाएगी।डीजीएफटी के मुताबिक हाल के वर्षो में चीन से दूध आयात काफी बढ़ गया है। मुख्य कारण यह है कि यूरोपीय संघ सहित कई विकसित देशों में भारतीय दूध की गुणवत्ता को काफी अच्छा माना जाता है। इसका फायदा उठाने के लिए कई कंपनियां चीन से सस्ता दूध आयात कर उसे भारतीय प्रयोगशालाओं में जांच करवाने के बाद प्रसंस्कृत (प्रोसेसिंग) कर या अन्य दुग्ध उत्पाद में तब्दील कर निर्यात कर देती हैं। पिछले वर्ष चीन से 17 हजार टन दूध का आयात किया गया था। शिशुओं को दिए जाने वाले दुध का आयात भारत चीन से नहीं करता है।मालूम हो कि मिलावटी डिब्बाबंद दूध पीने से चीन में हजारों बच्चे बीमार पड़ गए हैं। इनमें से कुछ की मौत भी हो गई है। इसके बाद अधिकांश एशियाई देशों ने चीन से दूध आयात पर पाबंदी लगा दी है। चीन हाल के वर्षो में एक बड़ा दूध निर्यातक देश बनकर उभरा है। चीन में शिशुओं के लिए दूध बनाने वाली 22 कंपनियों के उत्पाद में मेलामाइन नामक खतरनाक औद्योगिक रसायन पाया गया है। फिलीपींस,मलेशिया में चीन से आयातित दूध बेचने पर दुकानदारों को जेल भेजने और उनका लाइसेंस रद करने जैसे कठोर कदम उठाए गए हैं। ankur vats

फिर दहल उठी दिल्ली

धमाके की जाँच
बम धमाके में घायल हुए लोगों में से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है

राजधानी दिल्ली के महरौली इलाक़े में शनिवार की दोपहर हुए एक धमाके में एक बच्चे की मौत हो गई है और लगभग 18 लोग घायल हो गए है.:>घायलों में से चार लोगों की हालत गंभीर बताई जा रही है. घायलों को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया है.धमाका दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके के व्यस्त चौराहों में से एक, अंधेरिया मोड़ से लगे वार्ड नंबर आठ में हुआ.शनिवार को दोपहर क़रीब सवा दो बजे हुए जिस वक्त यह धमाका हुआ, उस वक्त बाज़ार में चहल-पहल थी.जिस जगह यह धमाका हुआ है वहाँ दोनों ओर दुकानें हैं और इनके ऊपर लोगों के घर हैं. धमाके की गूँज आसपास के एक किलोमीटर के क्षेत्र में सुनी गई.

कैसे हुआ विस्फोट..?


घटनास्थल पर स्थानीय लोग
स्थानीय लोगों ने कंधों पर उठाकर घायलों को बाहर निकाला

स्थानीय लोगों ने बताया कि दो अज्ञात लोग एक काली रंग की मोटरसाइकिल पर सवार होकर यहाँ आए और एक दुकान के सामने अपना कुछ सामान छोड़कर चल दिए.इस पैकेट को एक महिला ने देखा और इन वापस जाते लोगों को टोका भी कि आपका सामान छूट गया है पर वे दोनों तेज़ी से वहाँ से निकल गए.पैकेट को एक बच्चे ने छुआ और छूते ही उसमें एक ज़ोरदार धमाका हो गया. जाँच में लगी पुलिस टीम को घटनास्थल से कुछ कील और लोहे के टुकड़े मिले हैं.पुलिस का कहना है कि इस धमाके में किसी शक्तिशाली विस्फोटक का इस्तेमाल नहीं हुआ है.इन धमाकों को पिछले दिनों दिल्ली में हुए सिलसिलेवार धमाकों से जोड़कर न देखने की सलाह भी पुलिस ने दी है.

सुरक्षा कड़ी


घटनास्थल
पुलिस विस्फोट से जुड़े तथ्यों को जुटाने में लगी है

पिछले दिनों की घटनाओं से दिल्ली के माहौल में एक तरह का तनाव तो था ही, शनिवार को हुए इस धमाके ने दिल्ली पुलिस की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.ताज़ा घटना को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है. लोगों से मिली जानकारी के आधार पर बम रखकर जाने वालों की तलाश का काम किया जा रहा है.पुलिस ने घटनास्थल की घेराबंदी करके तफ्तीश का काम शुरू कर दिया है. बम निरोधक दस्ते के अलावा एनएसजी के जवान और डॉग स्क्वायड की भी छानबीन में मदद ली जा रही है.पुलिस का कहना है कि मोटरसाइकिल सवार युवकों की उम्र 20 से 25 साल बताई जा रही है.ग़ौरतलब है कि दिल्ली में 13 सितंबर को पाँच सिलसिलेवार धमाके हुए थे जिसमें 22 लोग मारे गए थे.

Thursday, September 25, 2008

तमिलनाडु मेंमंदिरों की सुरक्षा बढ़ी

आतंकी हमले की योजना संबंधी खुफिया जानकारी मिलने के बाद राज्य के पांच बड़े मंदिरों की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।कुछ प्रतिबंधित संगठनों द्वारा मंदिरों को निशाना बनाए जाने के मंसूबे के बारे में मिली खुफिया सूचना मिलने के बाद मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, रामेश्वरम के रामनाथस्वामी मंदिर, पलानी के मुरूगन मंदिर, चेन्नई के कपलेश्वर मंदिर तथा तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगनाथर मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।जानकार सूत्रों ने बताया कि चेन्नई में बुधवार को मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की अध्यक्षता में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर समीक्षा के लिए एक बैठक हुई, जिसके बाद यह कदम उठाया गया है।आतंकियों के निशाने पर तमिल दैनिक दिनामलार के भी होने की खुफिया सूचना के बाद अखबार के कार्यालय की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।गौरतलब है कि इस अखबार में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छपने के बाद अखबार को मुस्लिम समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा था।राज्य पुलिस मुख्यालय ने जिला प्रशासन को सुरक्षा कड़ी करने का निर्देश दिया है। मंदिरों के अलावा चेन्नई तथा अन्य जगहों के व्यावसायिक केंद्रों पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है।

खैरलांजी हत्याकांड में छह को फांसी

भंडारा [महाराष्ट्र]। खैरलांजी गांव के भैयालाल भोतमांगे दो साल बाद इंसाफ पाकर खुश हैं। भैयालाल के परिवार के चार सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। परिवार में वह अकेले बच गए थे। इस हत्याकांड में बुधवार को भंडारा की सत्र अदालत का फैसला आया। अदालत ने छह लोगों को सजा-ए-मौत सुनाई, जबकि दो को उम्रकैद की सजा दी।

सीबीआई ने इस मामले में 11 लोगों के खिलाफ आरोप तय किया था। 15 सितंबर को जज एसएस दास ने तीन आरोपियों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। हालांकि इन्हें बरी किए जाने के फैसले का दलित संगठनों ने विरोध किया था और इन पर लगे आरोपों की दोबारा जांच कराए जाने की मांग की थी। लेकिन बुधवार को अदालत द्वारा दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद भैयालाल भोतमांगे ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट हैं।मामला 29 सितंबर, 2006 का है। उस दिन खैरलांजी गांव में भूमि विवाद के चलते एक दलित परिवार के चार सदस्यों - सुरेखा भोतमांगे [45], बेटी प्रियंका [18] और बेटों-रोशन [23] व सुधीर [21] की हत्या कर दी गई थी। यह मामला खैरलांजी हत्याकांड के नाम से चर्चित हुआ था। इस नृशंस हत्याकांड के बाद पूरे महाराष्ट्र में विरोध प्रदर्शन हुए थे। भंडारा पुलिस ने हत्या के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया था। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।न्यायाधीश दास ने शत्रुघ्न धांडे, विश्वनाथ धांडे, प्रभाकर मांडलेकर, जगदीश मांडलेकर, राम धांडे और सकरू बेंजेवार को फांसी की सजा सुनाई, जबकि गोपाल बेंजेवार और धर्मपाल धांडे को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।बचाव पक्ष के वकील का कहना है कि वे फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करेंगे। सीबीआई के वकील उज्जवल निकम ने फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि आज के फैसले से साबित हो गया कि अदालत ऐसे मामलों में कड़ी से कड़ी सजा सुनाती है।

Wednesday, September 24, 2008

अब मुंबई को दहलाने की थी साजिश

देश की राजधानी दिल्ली में हुए विस्फोटों के बाद शुरू हुई धरपकड़ के क्रम में बुधवार को मुंबई पुलिस ने भी बड़ी सफलता हासिल की। मुंबई पुलिस ने पांच संदिग्ध आतंकियों को दबोचा है। इनके पास से भारी मात्रा में हथियार व विस्फोटक बरामद हुए हैं। पुलिस का कहना है कि ये जल्द ही मुंबई में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले थे।

न्यायालय ने इन आतंकियों को सात अक्तूबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है।मुंबई के पुलिस आयुक्त हसन गफूर एवं संयुक्त पुलिस आयुक्त [अपराध] राकेश मारिया ने संवाददाता सम्मेलन में इन पांचों आतंकवादियों के बारे में कई खुलासे किए। ये आतंकी पाकिस्तान से प्रशिक्षण पाकर आए हैं और वर्ष 2005 के बाद देश में हुए लगभग सभी विस्फोटों में शामिल रहे हैं। इनसे अब तक हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस ने बताया कि बनारस के संकटमोचन मंदिर, बनारस स्टेशन, लखनऊ एवं फैजाबाद की अदालतों एवं जयपुर व अहमदाबाद के विस्फोटों में भी इन आतंकियों की अहम भूमिका रही है।पुलिस आयुक्त के अनुसार इन सभी के पास से बरामद सामग्री एवं योजनाओं से पता चला है कि जल्दी ही ये एक बार फिर मुंबई को निशाना बनाने की योजना पर काम कर रहे थे। पुलिस आयुक्त के अनुसार इन सभी के सिमी, इंडियन मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा एवं आईएसआई से संबंध हो सकते हैं।आज पकड़े गए आतंकियों में से सिर्फ अफजल का पूर्व आपराधिक रिकार्ड सामने आता है। उस पर 1996 में हत्या के प्रयास का एक मामला मुंबई के शिवाजी नगर पुलिस थाने में दर्ज हो चुका है। उस समय वह फजलुर्रहमान गिरोह के लिए काम करता था।इन आतंकियों को गिरफ्तार करने वाले पुलिस दल को राज्य गृह मंत्रालय के प्रभारी और उपमुख्यमंत्री आरआर पाटिल ने पांच लाख रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की है।

ये पांचों भी आजमगढ़ के अफजल मुतालिब उस्मानी [32] : आजमगढ़ के मूल निवासी अफजल ने ही अहमदाबाद विस्फोटों में काम आई कारें नवी मुंबई से चुराई थीं । अहमदाबाद के बाजारपेठ एवं अस्पताल में विस्फोटकों से लदी कारें भी उसने ही खड़ी की थीं।मुहम्मद सादिक शेख [31] : आजमगढ़ के संजरपुर का निवासी सादिक इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक बताया जा रहा है। इंडियन मुजाहिदीन द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में किए गए विस्फोटों के लिए साधन व लड़के जुटाने का काम सादिक ही करता था। मुंबई के चीता कैंप क्षेत्र में रह रहा सादिक एक इलेक्ट्रानिक कंपनी में प्रोग्राम इंजीनियर के रूप में कार्यरत था। एक बार नौ माह और दूसरी बार 45 दिन का आतंकवादी प्रशिक्षण लेने के लिए वह पाकिस्तान में भी रह कर आया है।मुहम्मद आरिफ शेख [38] : आजमगढ़ का मूल निवासी आरिफ मुंबई के निकट ठाणे के मुंब्रा क्षेत्र में रहता था। पेशे से इलेक्ट्रीशियन आरिफ पाकिस्तान से बम का सर्किट बनाने का प्रशिक्षण लेकर आने के बाद वर्ष 2005 से भारत में हुए कई सिलसिलेवार विस्फोटों के लिए बम बना चुका है।मुहम्मद जाकिर शेख [28] : आजमगढ़ का जाकिर मुंबई के निकट भिवंडी में रह कर कबाड़ का काम करता था। सन् 2004 में वह पाकिस्तान से आतंकवाद का प्रशिक्षण लेकर आ चुका है।मुहम्मद अंसार शेख [31]: व्यवसाय से साफ्टवेयर इंजीनियर अंसार भी आजमगढ़ का ही मूल निवासी है। वह मुंबई में चीता कैंप क्षेत्र में रहता था। वह भी सन् 2004 में पाकिस्तान से आतंकवाद का प्रशिक्षण लेकर आ चुका है।

क्या-क्या मिला?इन पांच आतंकवादियों के पास से बम बनाने में इस्तेमाल होने वाला जिलेटिन, 10 किलो अमोनियम नाइट्रेट, 8 किलो बाल बियरिंग, 15 डिटोनेटर्स, बमों में इस्तेमाल होनेवाले चार सर्किट, .38 बोर के दो रिवाल्वर, एक सब मशीन कार्बाइन, 9 एमएम कार्बाइन के 30 जीवित कारतूस, .38 बोर रिवाल्वर के 8 जीवित कारतूस बरामद हुए हैं।

एमएलए की रंगरलियां!

कांग्रेसी विधायक सुनीता देवी और उनके बाडीगार्ड बाल योगेश्वर शर्मा उर्फ लाली के बीच रूलाई, प्यार, तकरार, धमकी, शर्म, भरोसा, इल्जाम, गुरूर.. यानी सब कुछ है? दोनों की करीब डेढ़ घंटे की बातचीत, उनकी दोस्ती और दुश्मनी की चरम की गवाह है। हालांकि सुनीता देवी की माने तो उन्होंने लाली से कभी फोन पर लंबी और ऐसी बातें नहीं कीं। उन्होंने इसे संचार तकनीक का कमाल कहा, जिसका इस्तेमाल उनको बदनाम करने में हो रहा है। लेकिन पुलिस दोनों के बीच फोन पर हुए संवाद पर गंभीर है। यह बातचीत एक टीवी चैनल ने टेप की है।सुनीता देवी के इस दावे को मान भी लिया जाए, तो भी यह सवाल तो उभरता ही है कि लाली को फोन पर धमकाने वाली औरत कौन है, जो स्वयं को विधायक कहती है; बातचीत में हर दो-चार लाइन के बाद अपने रसूख का हवाला देती है, किंतु लाली का दावा है कि फोन सुनीता देवी का ही था। वह अपने मोबाइल पर उनके नंबर भी दिखाता है।खैर, विधायक-बाडीगार्ड के इस कथित संवाद में 'सुशासन' भी कई मौकों पर आया है। खासकर तब, जब लाली ने उधर से मिली लगातार धमकियों से खुद को डरा हुआ दिखाया और कहा कि सुशासन में ऐसा संभव नहीं है; सबको न्याय मिलता है, सुशासन के कानून के राज में सिपाही व विधायक सब बराबर है। 'औरत' की आवाज मोबाइल पर गूंजती है-'सुशासन में मेरी ताकत देखे हो न! एक मंत्री को गाड़ी से खींच कर मारे थे। क्या हुआ। और तू रे कुत्ता-झूठा, तू तो मामूली सिपाही है। तुम्हारे बर्बादी का समय नजदीक आ गया गया है। तुमको उड़ाने के लिए मैं जिंदगी भर की कमाई लगा दूंगी। तू नहीं बचेगा। तेरी बलि वैष्णव माता के दरबार में चढ़ाऊंगी। तेरी पत्‍‌नी को विधवा बना दूंगी। तू मेरा औकात देखा है न रे!'बातचीत के एक-एक शब्द एक एमएलए की गर्वोक्ति के थे। लाली के कमोवेश सभी आरोप पुष्ट होते गए। बातचीत 'इंडिया टीवी' ने टेप की है। लाली ने सिर्फ एक बार फोन किया और फिर मैडम के ताबड़तोड़ फोन आने लगे। और अब जरा प्यार-तकरार में रूलाई की कुछ बातें। लाली-'हैलो-हैलो मैडम!' मैडम-'जो हो गया सो हो गया। भूल जाओ। तुमको कितना प्यार करते थे रे! [रूलाई। देर तक भर्रायी आवाज]। सुनो यार ..! पूजा [लाली की पत्‍‌नी] ने मुझको फोन क्यों किया? क्यों मुझे .. कहा? मैं उसको ..!' लाली-'आपने मेरा यौन शोषण क्यों किया?' मैडम-'देखो, मैं बहुत जिद्दी हूं। .. तुमको कितना रूतबा दिया रे! तुमको बहुत चाहते हैं।'बातचीत में लाली एक लाइन बोलता है और मैडम शुरू हो जातीं हैं। मैडम लाली से पूछ रहीं हैं-'पटना कब आयोगे?' लाली-'नहीं आऊंगा। आरा में ही खेती करूंगा।' मैडम-'आ मेरी नौकरी कौन करेगा, मैं मंत्री बनूंगी और तुमको अपना संतरी बनाऊंगी। कब तक भागोगे। मैं भी आरा आ जाती हूं। साथ में खेती करेंगे।' फिर अचानक भड़क जातीं हैं-'मैं तुमको मरवा दूंगी। पीस-पीस में कटवा कर बोरे में बंद कराकर गंगा जी में फिकवा दूंगी। .. रे गुंडा, रे-रे, मैं तुम्हारी दुनिया उजाड़ दूंगी। मर्डर होगा, मर्डर। हा-हा-हा-हा [अट्ठाहास]। .. तुमने मेरा शोषण नहीं किया। क्यों किया! कहता था आपकी सेवा करूंगा। आपके बिना नहीं रहूंगा। दवा खाकर मर जाऊंगा। अब का हुआ रे मक्कार! तुम्हारे जैसा नालायक और घटिया आदमी मैंने जिंदगी भर नहीं देखा है।' लाली की सफाई-'मैंने कुछ नहीं किया। भला एक सिपाही की विधायक के सामने क्या औकात है?' मैडम-'चोप्प। छह महीने की मोहलत देती हूं। अपहरण करा लूंगी। टुकड़ों में काटकर फिंकवा दूंगी। सिपाही हो, सिपाही रहो।'फिर मैडम की पुचकार-'मैं कोर्ट में जाकर तुमको अपना पति बता दूंगी। कानून महिलाओं को सर्वोपरि मानता है। मेरे पक्ष में फैसला होगा। तुम्हारी बात पर कोई नहीं मानेगा रे। .. विधायक स्वतंत्र होता है। आरा क्या कहीं भी जा सकता है। .. मेरी हवस नहीं तुम्हारी चाल है। कितनी श्रद्धा थी तुममें। लेकिन अब, जब मैं डूबूंगी सनम तो तुमको कैसे छोड़ूंगी।' बातचीत बड़ी लंबी है मगर तर्ज कमावेश यही है। शाब्दिक मर्यादा के चलते बहुत सारी बातें लिखने लायक नहीं है।

सोलह साल बनाम चार महीने और राजा जी..-यह कोई चुनावी नारा नहीं है। कांग्रेस विधायक सुनीता देवी द्वारा लाली [बाडीगार्ड] को लिखे कथित प्रेम पत्रों में ऐसे शब्दों की भरमार है। बाडीगार्ड द्वारा पुलिस को सौंपे पत्रों में एक जगह लिखा है-'मैं तो शादीशुदा हूं लेकिन जो सोलह साल में मुझे प्राप्त न हुआ वह मुझे चार महीने में आपसे प्राप्त हो गया।' पत्र में 'राजा जी', लाली है।अगर ये चिट्ठिया सही हैं, वाकई इन्हें सुनीता देवी ने ही लिखा है तो ये लाली द्वारा लगाए गए आरोपों को कई अर्थो में पुष्ट करती हैं। एक मायने में ये कमोवेश सब कुछ बयां कर देती हैं लेकिन सुनीता देवी ने स्पष्ट किया कि ये गंदी चिट्ठियां उन्होंने नहीं लिखीं हैं। उन्होंने इसे अपने खिलाफ साजिश करार दिया। बोलीं-'लाली मेरे विरोधियों के बहकावे पर चिट्ठियों को लेकर दुष्प्रचार कर रहा है।' बेशक, ऐसे में पूरा मामला लिखावट की जांच करने वाले विशेषज्ञ के पास जाने की दरकार बना रहा है। पुलिस इस लाइन पर सोच रही है।फिलहाल लाली की तरफ से दो पत्र सार्वजनिक किए गए हैं। दोनों सुनीता देवी के लेटर पैड पर हैं। हालांकि उनके अनुसार इसका इस्तेमाल तो कोई भी कर सकता है; पैड छपवाया भी जा सकता है। खैर, दोनों पत्रों की शुरूआत 'मेरे पति जी' और 'मेरे राजा जी' से हुई है। एक में लिखा है-'मैं कुशल हूं, कुशल चाहती हूं, दिल बेचैन है मिलन चाहती हूं। .. विशेष क्या लिखूं राजा जी, मैं आपको दिल दे बैठी हूं। .. मेरी जिंदगी आपकी है, ये श्रृंगार आपका है, ये सिंदूर भी आपका है। मेरे तन-मन और मेरी आत्मा पर आपका अधिकार है। किसी और को देखने का मन नहीं करता, आपके सिवाय। ..भगवान से यही प्रार्थना है कि मेरी मौत भी आपके गोद में हो।.. आपने मुझे इतना प्यार दिया है कि मैं हर जन्म में पति के रूप में आपको पाऊं। ..आंधी आये या तूफान मैं हमेशा आपके साथ रहूंगी। जैसे पेड़ से छांव अलग नहीं हो सकता, उसी तरह मैं आपसे अलग नहीं हो सकती।' अंत में आपकी पत्‍‌नी और विधायक का नाम लिखा है।एक अन्य पत्र में भी दर्ज है-'.. आपके बिना नहीं रह सकूंगी। ..आत्मा के बिना शरीर किस काम का? बिना पति का श्रृंगार किस काम का? मेरे जिंदगी में आपके सिवा कोई स्थान नहीं ले सकता। जीवन में इंसान को एक ही व्यक्ति से प्यार होता है। वह प्यार मैंने आपसे किया। प्यार एक मंदिर होता है। मंदिर से भगवान को नहीं निकाला जा सकता। ..आप मेरे भगवान हैं और मैं आपकी पुजारी। आप मेरे हमेशा राजा जी रहेंगे।'

दूध से धुले नहीं है राजनेता:>-कांग्रेसी विधायक सुनीता देवी पर लगे अंगरक्षक के यौन शोषण के आरोप ने राजनेताओं के 'रासरंग' की चटकारे वाली चर्चा शुरू करा दी है। इस बहाने नेताओं के 'पति, पत्नी और वो', 'महिला मित्र' या फिर कुर्सी से जुड़ी रंगरेलियों पर नए सिरे से बहस हो रही है। ऐसे कई गंभीर सवाल अवाम की जुबान पर हैं कि 'आखिर राजनेता किस हैसियत से समाज का पथ प्रदर्शक होने का दावा करते है; इन रवैयों से समाज को कौन-सी दिशा मिलती है?'दरअसल सुनीता देवी प्रकरण पहला और आखिरी नहीं है। लंबी दास्तान। कई ने पारिवारिक विवशता के चलते संबंध बनाए यानी बाकायदा दूसरी शादी की। लेकिन सर्वाधिक मामलों में पहली पत्नियों ने 'स्मार्ट सौत' की मौजूदगी में स्वयं को जबरिया 'एडजस्ट' कर रखा है। चर्चा इस बात की हो रही है कि कैसे मुख्य धारा के लगभग पचपन राजनीतिज्ञ [विशेषकर विधायक] दो या इससे अधिक पत्नियों के पति है। पत्नियां प्रताड़ित है किंतु लोक-लाज या भय से मुंह नहीं खोलतीं। सर्वाधिक वही राजनेता भटके, जो गंवई माहौल से निकल अचानक चकाचौंध की हैसियत में पहुंचे। सत्ता के दलाल या सरकार गिराओ- बचाओ के नियामक इस भटकाव को और बढ़ाते है।मगर दुर्भाग्य से ऐसे मामले यहां मजाक के विषय भर है। अखंड बिहार की आखिरी विधानसभा में तत्कालीन आदिवासी कल्याण मंत्री बागुन सुम्ब्रई ने जब विदाई में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से छठी पत्नी मांगी, तो सदन में जोरदार ठहाका गूंजा। कुछ और उदाहरण-लघु सिंचाई मंत्री रहे मंगनी लाल मंडल की दूसरी शादी पर विधानसभा में भी हंगामा हुआ। अलकतरा घोटाला के आरोप में पथ निर्माण मंत्री मो. इलियास हुसैन जब जेल गए तो उनके समर्थकों ने उनकी पत्नी को मंत्री बनाने की मांग उठाई किंतु मामला इस सवाल पर फंसा कि आखिर उनकी तीन पत्‍ि‌नयों में कौन मंत्री बनेंगी? केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पुरानी शिकायत रही है कि किसी को दूसरे की निजी जिंदगी में झांकने का अधिकार नहीं होना चाहिए। असल में उनके राजनीतिक विरोधियों को जब भी मौका मिला, उनकी गांव वाली दूसरी पत्नी का मुद्दा उठा दिया। विधायक केडी सिंह यादव की दूसरी शादी पर बवाल हुआ। एक कांग्रेसी सांसद ने पत्नी के रहते नाबालिग लड़की से शादी की। कांग्रेस के एक विधायक की पत्नी दूसरी महिला कांग्रेसी विधायक से नाजायज संबंधों के हवाले सड़क पर भिड़ गई। दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों का महिला प्रेम जगजाहिर रहा है। कर्पूरी ठाकुर भी ऐसी बदनामी से तभी मुक्त हुए, जब कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। दुष्कर्म के दौरान एक लड़की ने राजद विधायक योगेंद्र सरदार का लिंग काट लिया। ख्यात राजनीतिज्ञ धनिक लाल मंडल ने भी दूसरी पत्‍‌नी [कुसुम चौधरी] से तलाक को ले बुढ़ौती में बदनामियां झेलीं।राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में अपसंस्कृति की पराकाष्ठा, कमोवेश इसी कुंठा का पर्याय है। लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री आवास में कई बार लौंडा व हिजड़ा नाच हुआ। यह आम राय है कि इसका सीधा असर महिलाओं या लड़कियों के खिलाफ बढ़ते अपराध के रूप में परिलक्षित होता है।ऐसे में नौकरशाहों का कहना ही क्या? तीस के करीब आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के संबंध दूसरी महिलाओं से रहे है। चाहे आईपीएस अमिताभ दास का मसला हो या प्रसिद्ध गायक उदित नारायण का- घरेलू विवाद सुलझाने में राज्य महिला आयोग परेशान है।नेता-नौकरशाहों के बहके मिजाज से पनपे सेक्स स्कैंडलों की भी कमी नहीं है। बाबी हत्याकांड, शिल्पी-गौतम कांड, चंपा विश्वास बलात्कार कांड, पापरी बोस अपहरण कांड, सुभाष-सुशान हत्याकांड, दीपा मुर्मू कांड .., लंबी फेहरिस्त है। लेकिन शायद ही किसी मामले में असरदार कार्रवाई हुई।उल्लेखनीय है कि कोढ़ा विधायक सुनीता देवी पर उनके ही बाडीगार्ड बाल योगेश्वर शर्मा उर्फ लाली ने यौन शोषण का आरोप लगाया था। जिसके बाद सुनीता देवी ने प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया। वहीं, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देश पर गठित एक दो सदस्यीय टीम ने सोमवार को सुनीता देवी से पूछताछ की। सुनीता देवी ने इस पूरे प्रकरण से पल्ला झाड़ते हुए अपने को निर्दोष बताया है। उसका कहना है कि वह और लाली के बीच भाई-बहन का रिश्ता है। लाली ने इसी रिश्ते को बेजा इस्तेमाल किया और अब वह उसे ब्लैकमेल कर रहा है। उधर, लाली को इस प्रकरण को मीडिया के समक्ष उजागर करने की सजा निलंबन के रूप में मिली है। इसके साथ ही लाली के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही भी चलाने का निर्देश दिया गया है। ankur vats

Tuesday, September 23, 2008

बेरोजगार बनते थे सिमी नेताओं का निशाना
सिमी नेता रमजान के पवित्र महीने में भी अपने नापाक इरादों को अमलीजामा पहनाने की साजिशें बुनते थे। इफ्तार पार्टियों के नाम पर होने वाली गुप्त बैठकों में धन उगाही की रणनीति बनाई जाती थी। विवादास्पद ढांचा गिराए जाने और गुजरात दंगों की कहानियां सुनाकर युवकों के दिमाग में जहर भरा जाता था। जब इससे भी बात नहीं बनती थी तो उन्हें पैसे और पद का लालच दिया जाता था।
सीरियल बम धमाकों के आरोपी आमील परवेज ने मध्यप्रदेश पुलिस को पूछताछ में ये जानकारी दी है। उसने बताया कि 2001 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके नेता भूमिगत रहकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते रहे। मुस्लिम युवकों को अपने नापाक मकसद में शामिल करने के लिए विवादास्पद ढांचा गिराए जाने व गुजरात दंगों की कहानिया सुनाकर भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया जाता था। जब इससे भी बात नहीं बनती तो पैसा और पद का लालच दिया जाता था। आमील ने बताया कि सिमी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र, वर्तमान अध्यक्ष सफदर नागौरी व सिमी की सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य अब्दुल सुभान किशोर उम्र के युवकों को बहलाते थे। प्रतिबंध के बाद सिमी लड़खड़ाने लगी थी। तब सिमी का राष्ट्रीय अध्यक्ष शाहिद बद्र थे।
लेकिन नागौैरी को कमान मिलते ही हालात बदलने लगे। उसने राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु का दौरा किया और सिमी को फिर से खड़ा कर दिया। वह काम के लिए पढ़े-लिखे लेकिन बेरोजगार युवकों को चुनता था। फिर उन्हें इस्लाम के नाम पर गुमराह करता और अपनी साजिश का हिस्सा बना लेता था। कुछ दिनों पहले इदौर के चोरल में हुई बैठक में नागौरी ने सिमी की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए सभी राज्यों से धन जुटाने का टारगेट तय किया था। मध्यप्रदेश से तीन लाख, कर्नाटक से पाच लाख, गुजरात से तीन लाख, केरल से एक लाख, महाराष्ट्र से दो लाख रुपए की व्यवस्था करनी थी। सिमी नेता इफ्तार पार्टियों, ईद आदि मौकों पर कटने वाले बकरों की खाल बेचकर भी धन जुटाते थे।
नागौरी समेत पांच आरोपी पुलिस हिरासत में
सिमी प्रमुख सफदर नागौरी समेत अहमदाबाद बम धमाकों के पाचों आरोपियों की रिमाड अवधि समाप्त होने के बाद एक अन्य मामले में उन्हें 24 घटे के लिए पुलिस हिरासत में सौंप दिया गया है। मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में सफदर नागौरी, कमरुद्दीन नागौैरी, हाफिज हुसैन, कर्नाटक निवासी आमील परवेज तथा केरल के शिवली अब्दुल करीम की मंगलवार को 14 दिन की रिमाड अवधि पूरी हो गई थी। इसके बाद पुलिस ने इन्हें मेट्रो कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने पाचों को खाडिया बम विस्फोट के मामले में चौबीस घटे के लिए पुलिस हिरासत में सौंप दिया।

देश में सभी चुनाव एक ही दिन हों: कलाम


देश में हर समय कहीं न कहीं किसी न किसी संवैधानिक संस्था के लिए हो रहे चुनावों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि संसदीय, विधानसभा और पंचायत चुनाव एक ही दिन कराए जाने चाहिए।निजी टेलीविजन चैनल ‘आईबीएन-7 डायमंड स्टेट्स एवॉर्ड्स’ समारोह में कल रात यहां डॉ. कलाम ने कहा, “एक ही दिन में पूरे देश में सभी चुनाव कराना अव्यवहारिक सपना है, लेकिन इस सपने को पूरा किया जा सकता है यदि राजनेताओं के पास समय हो तो। यदि देश पूरे वर्ष चुनावों में व्यस्त रहेगा तो हम यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि इससे देश का विकास अवरूद्ध नहीं होगा”।केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा कि डॉ. कलाम का विचार वांछनीय है, लेकिन संसदीय बाध्यताओं के सामने यह अव्यवहारिक दिख रहा है। हालांकि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पीके. धुमल ने डॉ. कलाम के विचारों से सहमति जताई, जबकि इस संबंध में पूछे जाने पर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, “मैं अभी अपने चुनावों के लिए तैयार हूं”।‘आतंकवाद के खिलाफ कलाम नेतृत्व करें’ डॉ. कलाम ने यह भी कहा कि राजनेताओं को विकास के विषयों पर काम करना चाहिए। राजनेता देश के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। भविष्य के मतदाताओं को केवल वैसे लोगों के पक्ष में मतदान करना चाहिए, जो विकास की राजनीति करते हो।उन्होंने कहा कि विकसित राज्य ही विकसित भारत की नींव है। कई राज्यों ने विकास के अच्छे कार्यक्रम बनाए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश बड़े कार्यक्रम लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि कई राज्यों में विभिन्न क्षेत्रों में दीर्धकालिक विकास और वृद्धि को हासिल किया जा सकता है। डॉ. कलाम ने सुझाव दिया कि मिजोरम में बागवानी, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बागवानी एवं पुष्प कृषि, बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय का गठन, मध्यप्रदेश में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) का निर्माण और कर्नाटक में खाद्य प्रसंस्करण को एकीकृत तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा, तो इससे संबंधित राज्यों में मानव विकास सूचकांक में सुधार होगा।आईआईएम (ए) में पढ़ाएंगे डॉ. कलाम समारोह में केरल और गोवा को क्रमशः देश के सबसे बड़े-श्रेष्ठ और सबसे छोटे-श्रेष्ठ राज्य के पुरस्कार के सहित पांच-पांच पुरस्कार मिले, जबकि केरल को स्वास्थ्य, शिक्षा , महिला सशक्तिकरण और बुनियादी सुविधाओं की श्रेणी में पुरस्कार मिले।गोवा को रोजगार, गरीबी घटाने, महिला सशक्तिकरण और बुनियादी सुविधाओं की श्रेणी में पुरस्कार मिले।जल एवं स्वच्छर्ता श्रेणी में दिल्ली सर्वश्रेष्ठ छोटा राज्य का पुरस्कार मिला।‘महाप्रयोग सुरंग’ में जा चुके हैं कलाम! पुरस्कार प्राप्त करने वाले अन्य राज्यों में पंजाब (जल एवं स्वच्छता), गुजरात (रोजगार), मिजोरम (शिक्षा), सिक्किम (नागरिक सुरक्षा और न्याय), उत्तराखंड (नागरिक सुरक्षा एवं न्याय) और जम्मू-कश्मीर (गरीबी कमी) शामिल है। इन राज्यों को डॉ. कलाम ने सम्मानित किया।इस मौके पर गृह मंत्री शिवराज पाटिल, रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन भी मौजूद थीं।

Wednesday, September 17, 2008

पूनम ने दिखाई नई रोशनी अभावग्रस्त बच्चियों को दिया दुलार

कुदरत ने भले ही उनकी गोद नहीं भरी परंतु उनके मन में हिलोरे खाता ममत्व का दरिया वह नहीं सुखा पाया। जिसका प्रवाह सहज ही स्नेह और दुलार की लहरों को समेटे होता है। समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रतलाम के 'किन्नर समाज' ने वह काम कर दिखाया जो हम सभी के लिए एक आदर्श बन गया है तथा समाज को एक नई दिशा दे रहा है। इतना ही नहीं यह समाज के अभावग्रस्त परिवारों के लिए आशा की किरण बन उम्मीदों का नया सवेरा ला रहा है। हम आज जिक्र कर रहे हैं रतलाम की किन्नर पूनम जान का, जिसने आज एक अभावग्रस्त परिवार की लड़की के लालन-पोषण की जिम्मेदारी केवल इसलिए उठाई है क्योंकि उसके अभिभावक इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपने तीन (दो लड़कियाँ, एक लड़का) बच्चों के साथ इस नन्ही बच्ची की परवरिश भी अच्छे से कर सकें।



पूनम ने इस नन्ही बच्ची को अपना 'स्नेह' और उसके गरीब माता-पिता को एक संबल दिया। पूनम आज इस तंगहाली के शिकार परिवार के लिए निराशा के अंधकार में उम्मीदों की रोशनी बनकर उभरी है। ढाई वर्ष की 'रोशनी' के जीवन में आज वे खुशियाँ पूनम की बदौलत किलकारियाँ भर रही हैं, जो उसके हमउम्र अभावग्रस्त परिवारों के बच्चों के नसीब में नहीं हैं। पूनम और उसके साथी उसी हसरत से रोशनी की परवरिश कर रहे हैं, जैसे एक 'माँ' करती है। रोशनी भी इन सभी के बीच कुछ इस तरह घुल-मिल गई है जैसे यहीं उसका घर-आँगन और परिवार हो।



रोशनी की ही तरह पूनम ने कुछ वर्ष पूर्व एक और नन्हीं बच्ची 'सोनू' को भी गोद लिया था। जो आज लगभग सात वर्ष की हो गई है। सोनू अभी अपनी नानी के घर रह रही है तथा उसकी परवरिश का सारा खर्च पूनम ही उठा रही है।

पूनम के अनुसार 'सोनू उस वक्त मात्र दो दिन की थी। जब हमने इसे अपनाया था। उस वक्त सोनू के माँ-बाप उसे अपनाने को तैयार नहीं थे क्योंकि सोनू उनकी चौथी संतान थी जो लड़की थी। अत: मैं और मेरे साथी उसे अस्पताल से ही अपने साथ ले आए थे।' समय के साथ शनै:-शनै: इस रिश्ते की डोर प्रगाढ़ होती जा रही है। पूनम का सपना है कि वह 'रोशनी' और 'सोनू' को अच्छी शिक्षा देकर अपनी उन आशाओं को पूरा करे, जो आम अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर करते हैं। पूनम के अनुसार- 'ये बच्चियाँ हमारे परिवार के सदस्यों जैसी है।'पूनम से यह पूछा जाने पर कि 'आप लोग जिस अभिशप्त अवस्था में जी रहे हैं तथा अपना जीवन-निर्वाह कर रहे हैं, क्या उसका साया इस अबोध बच्ची 'रोशनी' के जीवन पर नहीं पड़ेगा? क्या आप लोग रोशनी से वही काम करवाएँगे जो आज आप कर रहे है...?' इन विचलित कर देने वाले सवालों पर पूनम आत्मविश्वास से भरा यही प्रत्युत्तर देती है कि 'लोगों का काम तो बोलना है मगर कल जमाना देखेगा कि पूनम की रोशनी ने समाज को क्या नई रोशनी फैलाई हैं...' बहरहाल किन्नर समाज की एक अभावग्रस्त परिवार की बच्ची के प्रति सहृदयता अभिनंदनीय है। पूनम ने इस लाडली लक्ष्मी को एक नया जीवन दिया है। जिसके परिवार पर मँडराते अभावग्रस्तता के बादलों ने उसका भविष्य अंधकारमय कर दिया था। आज हमारे समाज में 'रोशनी' व 'सोनू' अकेली लड़कियाँ नहीं है। इन्हीं की तरह ऐसी अनेक रोशनी व सोनू हैं जिन्हें आज पूनम की तरह किसी आसरे की तलाश है। उन्हें भी अपने जीवन में नए सवेरे का इंतजार है। लाख टके का सवाल यह है कि पूनम की 'प्रेरणा' समाज को कितना 'अभिप्रेरित' कर पाती है...? इस विषय पर गंभीरतापूर्ण चिंतन की जरूरत है। एक ऐसा चिंतन जो समाज में एक नई शुरुआत को जन्म द

अस्पताल के बाहर गरीब महिला ने दिया बच्चे को जन्म


दो घंटे तड़पती रही

गढ़मिरी पंचायत की एक गरीब आदिवासी महिला ने कल रात्रि 9.15 बजे जिला हॉस्पिटल के बाहर एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देकर उन चिकित्सकों की काबिलियत पर प्रश् चिन्ह खड़ा कर दिया जिनके द्वारा उक्त महिला का प्रसव प्रकरण गंभीर और जटिल बताते हुए बड़े हॉस्पिटल के लिए रिफर कर दिया गया था।
इस प्रदेश का एक हिस्सा ऐसा भी जहां जिला हॉस्पिटल होते हुए भी एक गरीब आदिवासी महिला को हॉस्पिटल के बाहर नवजात को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह शर्मनाक घटना भोपालपट्टनम, कोंटा या उसूर जैसे किसी सुदूरवर्ती आदिवासी क्षेत्र का नहीं बल्कि जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा के जिला हॉस्पिटल का है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कुआकोंडा ब्लॉक के गढ़मिरी निवासी गागरू की 25 वर्षीय पत्नी देवे को प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद लगभग 15 किमी कांवड़ में दंतेवाड़ा हॉस्पिटल शाम 5.30 बजे लाया गया। लगातार 2 घंटे तक प्रसव पीड़ा में तड़पती रही। इस बीच औपचारिक जांच पश्चात डयूटी पर तैनात चिकित्सक द्वारा प्रसव में जटिलता बताते हुए बड़े हॉस्पिटल के लिए रिफर कर दिया गया। डिस्चार्ज की पर्ची हाथ में थाम देवे का पति उसकी बुजुर्ग सास एवं ससुर हॉस्पिटल के बाहर निकल सबसे मदद की गुहार लगाते रहे और प्रसव दर्द में तड़पती रही। आखिरकार पौने दो घंटे के भयानक प्रसव पीड़ा पश्चात उक्त महिला ने हॉस्पिटल के बाहर पोर्च में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। प्रसव के दौरान घर की महिलाओं ने चादर और फटी साड़ी की आड़ बनाकर महिला की लाज बचाने प्रयास किया। इस पूरे मामले में सबसे शर्मनाक बात ये रही कि प्रसव पश्चात भी हॉस्पिटल में मौजूद किसी भी महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने जच्चा-बच्चा की मदद करना मुनासिब नहीं समझा। जब गरीब व्यक्ति ने अपनी बीवी को प्रसूति वार्ड में ले जाने के लिए निवेदन किया गया तो नर्स द्वारा स्पष्ट जवाब दिया गया कि तुम लोग पकड़कर अंदर लाओ हमें फुर्सत नहीं है। इसी बीच अचानक मौके पर मौजूद हमारे प्रतिनिधि को घटना की जानकारी मिली तो उसने तत्काल इसकी जानकारी डयूटी पर मौजूद डॉ. शांडिल्य को दी। हॉस्पिटल के बाहर प्रसूति की बात सुन हतप्रभ डॉ. शांडिल्य ने तुरंत स्ट्रेचर के सहारे महिला और बच्चे को प्रसूति वार्ड में ले जाने के लिए आदेशित किया। मगर तब तक वह महिला अपने परिजनों का सहारा लेकर पैदल 100 गज की दूरी तय कर चुकी थी। स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में बस्तर आज भी कितना पिछड़ा है, इस बात को दर्शाने इससे बड़ा उदाहरण कुछ और नहीं हो सकता। घटना की खबर सर्वप्रथम दंतेवाड़ा से लांच कर वेबसाइट बस्तर इंडिया डॉट काम ने कल देर रात प्रकाशित की तब उच्च अधिकारियों की नींद खुली। मगर अभी दोषी कर्मचारियों के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो पाई ह

तौकीर की मां ने कहा बेटा दोषी हो तो फांसी दो

दिल्ली एवं अहमदाबाद धमाकाें के मुख्य अभियुक्त अब्दुस सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर की मां ने कहा है कि अगर उनका बेटा दोषी पाया जाता है तो उसे फांसी दे दी जानी चाहिए। हालांकि उन्हाेंने विश्वास जताया कि उनका बेटा ऐसी हरकत नहीं कर सकता। साथ ही उन्हाेंने तौकीर से कहा कि चाहे दोषी है अथवा नहीं, वह आत्मसमर्पण कर दे।
अहमदाबाद धमाकाें में तौकीर का नाम आने के बाद बुधवार को मीडिया के सामने आई जुबैदा कुरैशी ने कहा कि अगर मेरे बेटे को अदालत दोषी पाती है तो हम उसे सजा दिए जाने से नहीं रोकेंगे। उसे हमारी आंखाें के सामने फांसी दी जा सकती है। दक्षिण मुंबई में संवाददाता सम्मेलन में जुबैदा ने कहा कि उनका बेटा निर्दोष है। उन्हाेंने कहा कि जिस तरह से उसकी परवरिश की गई है उसको देखते हुए वह ऐसे काम कभी नहीं कर सकता। उन्हाेंने कहा कि हम अच्छे परिवार से हैं और हमारी अच्छी परंपरा है। जुबैदा ने कहा कि हमारे बच्चों का अच्छी तरह पालन-पोषण किया गया है और समुदाय के सदस्याें के साथ शांतिपूर्वक रह रहे हैं। जुबैदा ने बताया कि उनका बेटा अपनी पत्नी के साथ उपनगरीय मीरा रोड इलाके में 2001 से अलग रह रहा है। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि वह किन गतिविधियाें में शामिल है। उन्हाेंने कहा कि हम अपने परिवार के लिए उसके कारण और मुसीबत नहीं चाहते। परिवार के वकील मुबिन सोलकर ने बताया कि अपने खिलाफ कार्रवाई के डर से परिवार का कोई अन्य सदस्य संवाददाता सम्मेलन में मौजूद नहीं था। गुजरात पुलिस ने अहमदाबाद सिलसिलेवार धमाकाें में तौकीर को मुख्य सरगनाओं में से एक बताया है। उस पर आरोप है कि उसने मुंबई से इंडियन मुजाहिदीन के नाम से धमकी भरा ई-मेल भेजा। ऐसा समझा जाता है कि दिल्ली धमाकाें से पहले भी तौकीर ने धमकी भरा ई मेल भेज

Tuesday, September 16, 2008

प्रचंड भाजपा व संघ नेताओं से मिले

विचारधाराओं का अंतर पाटते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में जुटे भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने नेपाल व भारत के बीच प्रगाढ़ व मजबूत संबंधों की जोरदार वकालत की है। दोनों देशों में तबाही का सबब बनी बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए भाजपा नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रचंड ने पूरे सहयोग का भरोसा दिलाया है।लोकतांत्रिक नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने मंगलवार को भाजपा व संघ के नेताओं से मुलाकात की। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के आवास पर मिलने गए प्रचंड का स्वागत राजनाथ सिंह के अलावा वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी, विजय कुमार मल्होत्रा, रामलाल, मुख्तार अब्बास नकवी, विनय कटियार, रविशंकर प्रसाद, राम माधव आदि ने किया। दोनों पक्षों ने दोनों देशों के सदियों पुराने संबंधों को याद करते हुए उन्हें और मजबूत करने पर जोर दिया। प्रचंड ने कहा कि नेपाल में उनकी लड़ाई राजशाही के खिलाफ थी न कि भारत व नेपाल के पौराणिक संबंधों के खिलाफ। राम और सीता के काल से चले आ रहे इन संबंधों को कोई नहीं तोड़ सकता है। प्रचंड ने राजनाथ सिंह को नेपाल आने का न्यौता देते हुए उनसे पशुपतिनाथ व जनकपुर आने का आग्रह किया।भाजपा नेताओं ने नेपाल के प्रधानमंत्री के सामने बाढ़ का मुद्दा उठाया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कोसी की हाल की बाढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे दोनों देशों को भारी नुकसान होता है। प्रसाद ने प्रचंड से आग्रह किया कि उनकी सरकार इसकी रोकथाम के लिए नेपाल में हाई डैम बनाने के कार्य में तेजी लाने के लिए भारत का पूरा सहयोग करे।

45 रूपये रिश्वत के लिये एक साल का कठोर कारावास

बिहार की राजधानी पटना में सतर्कता के विशेष न्यायाधीश सुनील कुमार पॅवार की अदालत ने 45 रूपये की रिश्वत लेने के मामले में आज बिहार राज्य खादी ग्राम उद्योग विभाग के एक पर्यवेक्षक महेन्द्र कुमार मस्ताना को एक वर्ष के सश्रम कारावास की सजा के साथ एक हजार रूपये का जुर्माना किया !विशेष न्यायाधीश श्री पॅवार ने लगभग 30 साल पुराने इस मामले में सुनवाई के बाद विभाग के गया जिला स्थित पीरपैंती शाखा के पूर्व पर्यवेक्षक महेन्द्र कुमार मस्ताना को भारतीय दंड विधान और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं में दोषी करार देने के बाद यह सजा सुनायी है !आरोप के अनुसार 22 सितम्बर 1978 को सतर्कता के अधिकारियों ने दोषी को विभाग के एक ग्राहक का ऋण चेक जारी करने के बदले 45 रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था !

Monday, September 15, 2008

इंडोनेशिया में भगदड़ में 20 लोगों की मौत

इंडोनेशिया के जावा प्रांत में रमजान के मौके पर सोमवार को जकात (दान) लेने के लिए इकट्ठे हुए लोगों की भीड़ में भगदड़ मच जाने के कारण 20 से भी अधिक लोग मारे गए। सरकारी समाचार एजंसी अंतरा के अनुसार भगदड़ उस समय मची जब लगभग 10 हजार गरीब लोग एक अमीर परिवार से जकात यानी दान लेने के लिए लाइन में खड़े थे। एजंसी के अनुसार कुछ लोग दम घुटने के कारण दूसरे लोगों पर गिर गए। घायलों का पास के हॉस्पिटल में इलाज किया जा रहा है। अमीर परिवारों के लिए रमजान के महीने के अंत में जकात देने को लोग जरूरी मानते हैं। कई गरीब लोगों का कुछ महीने तक इससे ही गुजारा चलता है।

मुठभेड़ में चार सुरक्षाकर्मियों की मौत

जम्मू में सेना (फ़ाइल फ़ोटो)
पुलिस का कहना है कि इस संघर्ष में दो सुरक्षाकर्मी घायल भी हुए हैं
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाक़े में सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के बीच जारी गोलीबारी में चार सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई है.जम्मू के पुंछ ज़िले के बॉर्डर इलाक़े में हुए संघर्ष में मारे गए सुरक्षाकर्मियों में दो सेना के जवान और दो पुलिसकर्मी हैं.पुलिस का कहना है कि पुंछ ज़िले के तारावाली इलाक़े में सशस्त्र चरमपंथियों के मौजूद होने की उन्हें पहले से ख़बर थी.


जब सुरक्षाकर्मी चरमपंथियों के गुप्त ठिकाने पर नज़र टिकाए हुए थे तब वे चरमपंथियों की तरफ़ से की जाने वाली भीषण गोलीबारी के चपेट में आ गए

सोमवार की सुबह पुलिस और सेना के जवानों ने संयुक्त रुप से चरमपंथियों के संदिग्ध ठिकानों की घेराबंदी कर दी थी.पुलिस का कहना है, "जब सुरक्षाकर्मी चरमपंथियों के गुप्त ठिकानों पर नज़र टिकाए हुए थे तब वे चरमपंथियों की तरफ़ से की जाने वाली भीषण गोलीबारी के चपेट में आ गए."पुलिस का कहना है कि इस संघर्ष में दो सुरक्षाकर्मी घायल भी हुए हैं.इस संघर्ष में किसी चरमपंथी के हताहत होने की ख़बर नहीं है

Sunday, September 14, 2008

दोस्त बने रणबीर-सोनम


लड़ाई-झगड़े करने के लिए पार्टियां अच्छी जगह हैं, तो इसे सुलझाने के लिए भी ये बेहतरीन मौका देती हैं। तभी तो रणबीर कपूर और सोनम कपूर के बीच एक पार्टी में पैचअप हुआ। गौरतलब है कि 'सांवरिया' के बाद इन दोनों स्टार किड्स की दोस्ती रणबीर और दीपिका पादुकोण की नजदीकियों के चलते खत्म हो गई थी। लेकिन पिछले दिनों सैफ अली खान की बर्थडे पार्टी में दोनों के बीच के रिलेशन सुधारने के लिए काफी फायदेमंद रही। उन्होंने वहां साथ में काफी वक्त बिताया और तमाम गलतफहमियां दूर कर लीं। पार्टी में मौजूद एक गेस्ट ने बताया कि रणबीर और सोनम पार्टी में अलग-अलग आए थे, लेकिन गए साथ। सोनम अपने चाचा संजय कपूर, तो रणबीर 'बचना ऐ हसीनो' की अपनी को-स्टार बिपाशा बसु के साथ आए थे। गौरतलब है कि उस दौरान दीपिका शहर से बाहर थीं। रात बढ़ने के साथ पार्टी जवां होने लगी, लेकिन रणबीर और सोनम एक कोने में बैठकर गंभीर बातचीत में व्यस्त नजर आए। गौरतलब है कि दीपिका के लाइफ में आने के बाद से रणबीर ने सोनम से बातचीत बंद कर दी थी। यहां तक की उन्होंने सोनम के मैसिज का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा था।
वैसे, दोनों के करीबियों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि पहले की तरह दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं, लेकिन इतना जरूर है कि दोनों के बीच की बर्फ जरूर पिघली है। फिलहाल, अच्छी बात यह है कि रणबीर को अपनी पुरानी दोस्त की याद तो आई!

शर्लिन का बिकीनी टॉप बना सिरदर्द


ऐक्टर से सिंगर बनीं शर्लिन चोपड़ा अपने हालिया अलबम 'दर्द-ए-शर्लिन' का प्रमोशनल टूर करने जा रही हैं, लेकिन यह टूर इसके आयोजकों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। वजह है, शर्लिन का डायमंड वाला बिकीनी टॉप, जिसे वे अपने रिमिक्स विडियो में पहन चुकी हैं।
दरअसल, इस टॉप के साइड में लगे कुछ हीरे बिल्कुल असली हैं। दिल्ली, कोलकाता, चंडीगढ़, पुणे और हैदराबाद में होने वाले इन प्रमोशनल शोज में शर्लिन यही टॉप पहनना चाहती हैं, लेकिन इस बहुमूल्य टॉप की हिफाजत को लेकर शो के आयोजकों की नींद उड़ी हुई है। आयोजकों का मानना है कि इतनी भीड़ के बीच रीयल डायमंड वाला टॉप पहनना बहुत रिस्की है, इसलिए देशभर में होने वाले इन प्रमोशनल इवेंट्स पर सिक्युरिटी का अच्छा-खासा प्रबंध करना पडे़गा।
गौरतलब है कि फिल्मिस्तान स्टूडियो में अपने विडियो शूट के दौरान भी शर्लिन ने इस टॉप की निगरानी का खास इंतजाम किया था। इसके लिए उन्होंने एक्स्ट्रा लेडी असिस्टेंट रखी थीं। वैसे, इस बार खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है, क्योंकि अब शर्लिन को कई शहरों की यात्रा करनी पड़ेगी। आयोजकों ने शर्लिन को इस ड्रेस का प्रयोग न करने की भी सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने यह सलाह नहीं मानी। कारण, शर्लिन अपने वीडियो को हिट कराने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं। इससे पहले भी सेंसर से विडियो पर कैंची चलने और हेमा मालिनी के कमेंट्स को लेकर यह अलबम चर्चा में रह चुका है। शर्लिन चोपड़ा के पब्लिसिस्ट डेल भगवागर इस मसले पर कहते हैं, 'लगभग सभी आयोजक कह रहे हैं कि रिस्क बहुत बड़ा है और इस वजह से डायमंड टॉप के साथ-साथ शर्लिन को भी सिक्युरिटी की जरूरत होगी। सावधानी के तौर पर शर्लिन स्टेज पर भी सिक्युरिटी मेन्स के बीच ही परफॉर्मेंस देंगी, मगर इन खतरों का डर शर्लिन को बिलकुल नहीं है और वह अपने अलबम 'दर्द-ए-शर्लिन' को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहतीं।

'सरकार बनी तो 100 दिन में पोटा लाएंगे'

दिल्ली में सीरियल विस्फोटों ने बीजेपी को नया हथियार दे दिया है। पार्टी ने इसकी पृष्ठभूमि में यहां अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि हम सत्ता में आने के 100 दिनों के अंदर आतंकवाद विरोधी कानून पोटा वापस लाएंगे और अन्य कठोर कानूनों को लागू करेंगे। बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि अगर जनता हमें केंद्र में अगली सरकार बनाने के लिए बहुमत दे तो हम सौ दिनों में पोटा वापस लाएंगे।
समापन भाषण में आडवाणी ने कहा कि हम आतंकवाद को समाप्त करने के लिए राज्य विशेषीकृत आतंकवाद निरोधक कानूनों को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी देने की भी सिफारिश करेंगे और अन्य कड़े कदम उठाएंगे। आगामी आम चुनावों के साथ-साथ छह राज्यों के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कार्यकारिणी की तीन दिवसीय बैठक चुनावी रणनीति पर केंद्रित रही। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को आजादी के बाद की 'सबसे भ्रष्ट सरकार' करार देते हुए आडवाणी ने कहा कि रीढ़विहीन यूपीए देश के लिए अभिशाप बन गया है, उसे तत्काल त्यागपत्र देना चाहिए। उन्होंने पार्टी का आह्वान किया कि पार्टी को पूर्ण विजय के विश्वास के साथ विचारों और कार्य में एकजुटता के साथ आगे आना चाहिए। उन्होंने बीजेपी से एनडीए को मजबूत बनाने और आगामी दिनों में इसका विस्तार करने को भी कहा।

Saturday, September 13, 2008

आरुषि मर्डर: राजकुमार व कृष्णा को बेल

सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को नोएडा के बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड में कृष्णा व राजकुमार की जमानत मंजूर कर ली। सीबीआई द्वारा 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल करने में विफल रहने के बाद अदालत ने दोनों को जमानत दी।विशेष सीबीआई न्यायाधीश रामा जैन ने 25,000 हजार रुपये की दो जमानत राशि और उतनी ही राशि के निजी मुचलकेपर आरुषि के पिता राजेश तलवार के कंपाउडर कृष्णा को जमानत दे दी। तलवार परिवार के मित्र के घरेलू नौकर राजकुमार को भी 25,000 रुपये के दो निजी मुचलके पर जमानत दी गई है।सीबीआई ने नोएडा डीपीएस की नौवीं कक्षा की छात्रा 14 वर्षीय आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप में कृष्णा और राजकुमार दोनों को क्रमश: 13 जून और 27 जून को गिरफ्तार किया था। आरुषि व हेमराज की हत्या 15 मई की आधी रात को गई थी।जहां एक तरफ वरिष्ठ अधिवक्ता आरके आनंद और एफ सी शर्मा की ओर से दायर की गई कृष्णा की जमानत याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई थी वहीं सीबीआई ने राजकुमार की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उसकी रिहाई से जांच पर असर पड़ सकता है।राजकुमार के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। बहरहाल, सीबीआई ने अदालत को सूचित किया कि उसके पास टेलीफोन रिकार्ड हैं जो यह बताता है कि आरोपी हेमराज के निरंतर संपर्क में था। सीबीआई ने यह भी कहा था कि राजकुमार नेपाली नागरिक है। ऐसे में उसे जमानत दी जाती है तो वह देश छोड़कर फरार हो सकता है और साक्ष्यों को नष्ट कर सकता है। तलवार के पड़ोसी का घरेलू नौकर विजय मंडल पहले ही जमानत पर रिहा है।अदालत ने उसे जमानत पर रिहा करते हुए कहा था कि उसके खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। शुरू में इस मामले में नोएडा पुलिस ने ख्फ् मई को राजेश तलवार को गिरफ्तार किया था, लेकिन बाद में उन्हें क्क् जुलाई को जमानत दे दी गई।सीबीआई ने अदालत को बताया कि तलवार के खिलाफ उसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। सीबीआई ने फ्क् मई को नोएडा पुलिस से मामले की जांच की जिम्मेदारी ले ली थी।

पाँव देखा तो हड्डियाँ बाहर नज़र आई

मेरी किस्मत मुझे बाराखंभा रोड खींच लाई थी. मैं हमेशा अपने ऑफ़िस से निकलने के बाद संसद मार्ग से बस लेता था लेकिन आज मुझे एटीएम से पैसे निकालने थे.:मैं इसके लिए कनॉट प्लेस के इनर सर्किल गया और पैसे निकालने के बाद सोचा कि बस तो बाराखंभा रोड से ही जाएगी तो क्यों न वहीं चला जाए.बस स्टैंड पर भारी भीड़ थी. उस समय लगभग पौने सात बजे थे. मैं भी अपने घर वसुंधरा, ग़ाज़ियाबाद जाने के लिए बस का इंतज़ार कर रहा था.तभी कान के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज़ गूँजी और मैं कुछ क्षणों के लिए बेहोश हो गया.कुछ मिनटों बाद आँखें खुली तो अपने को रोड किनारे पाया. भगदड़ मच चुकी थी. घायलों की चीत्कार मैं सुन रहा था.तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरा दायाँ पैर सुन्न पड़ चुका है. मेरे होश उड़ गए. घुटने के ऊपर पैर की मांसपेशियाँ गायब थी और हड्डियाँ दिखाई दे रही थी. उसी में प्लास्टिक का एक टुकड़ा धँसा था.

मदद के हाथ:मैं लाल पैथॉलौजी में लैब टेक्निशियन हूँ, इसलिए दिमाग का सहारा लिया और पैर को ऊपर उठाने की कोशिश की ताकि ज़्यादा खून ना बहे.मैंने इसी समय एक अंकल को पत्नी सीमा का फ़ोन नंबर लगाने को कहा. उन्होंने फ़ोन मिलाया और मुझे थमा दिया. मैं सिर्फ़ इतना कह पाया कि मैं ठीक हूँ.


तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरा दायाँ पैर सुन्न पड़ चुका है. मेरे होश उड़ गए. घुटने के नीचे पैर की मांसपेशियाँ गायब थी और हड्डियाँ दिखाई दे रही थी. उसी में प्लास्टिक का एक टुकड़ा धँसा था.

भागमभाग के बीच तभी मदद के हाथ आगे आए. मुझे दो और घायलों के साथ एक एंबुलेंस में बिठाया गया लेकिन गाड़ी कब आगे बढ़ी मुझे याद नहीं क्योंकि मैं फिर अचेत हो चुका था.दूसरी बार तब आँखें खुली जब लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर मेरे घाव की सफाई कर रहे थे. प्लास्टिक का फँसा टुकड़ा निकाला जा चुका था.मुझे अभी तक अंदाज़ नहीं है कि धमाका बस स्टैंड के किस हिस्से में हुआ. कोई गंध नहीं आ रही थी, इसलिए पता नहीं कि सिलेंडर ब्लास्ट था या कोई और बम था.गुजरात में ब्लास्ट के बाद कुछ दिनों तक हम अपने दोस्तों से चर्चा करते थे कि अब दिल्ली की बारी है लेकिन काफी दिन बीतने के बाद हमें लगा कि दिल्ली सुरक्षित है.शायद बम विस्फोट करने वालों को इसी का इंतज़ार था कि लोग निश्चिंत हो जाएँ. पता नहीं ये लोग क्या हासिल करना चाहते हैं.

एक वो शनिवार... और एक यह


दिल्ली में विस्फोट
शनिवार को हुए बम विस्फोट में कम से कम 18 लोग मारे
वो 29 अक्टूबर की तारीख थी. दिल्ली दिवाली के लिए रंग-संवर रही थी. दिन था शनिवार का. और फिर एक के बाद एक तीन धमाकों ने दिल वालों की दिल्ली का दिल दहलाकर रख दिया.:इन धमाकों में 62 लोगों की मौत हुई. मैं इस दिन अपना काम पूरा करके घर जा रहा था. तभी धमाके की ख़बर लगी और अपने साथियों के साथ मैं घटनास्थलों पर पहुँच गया.अंदर तक हिला देने वाले मंज़र मैंने अपनी आंखों से देखे. माँस के लोथड़ों में तब्दील शरीर, अपने कटे-चिथड़े अंगों को पकड़कर मदद के लिए कराहते घायल, बदहवास भागते लोग, बेहाल परिजन और अपनों को खोजती आँखें... सबकुछ देखा हमने.तब भी रिपोर्टिंग की थी. ख़ून से सनी लाशों और लोगों को अस्पताल लाने से लेकर मुर्दाघरों में शव गिनने तक सबकुछ एक बदहवास और हिल चुकी दिल्ली की कहानी कह रहा था.इन धमाकों में दिल्ली का आम आदमी निशाना बना था. वो भी एक बड़े त्योहार के मौके पर. एक ताल चलती ज़िंदगियों को सांप सा सूंध गया. सामान्य होने में कुछ दिन लग गए.लोगों ने आम नागरिक को निशाना बनाने की पुरज़ोर निंदा की. इसके बाद सरकार ने बयान दिए. राज्य के अपने, केंद्र के अपने, पुलिस के अपने, नेताओं के अपने. सब आतंकवाद से लड़ते नज़र आए.लोगों को लगा कि अब तो तैयारी पुख़्ता होगी. पुलिस चुस्त रहेगी, लोग सतर्क रहेंगे और सुरक्षा एजेंसियाँ, जाँच एजेंसियाँ राष्ट्रीय पर्वों पर ही नहीं, सामान्य दिनों में भी अचानक किसी चरमपंथी हमले से दिल्लीवालों को बचाती रहेंगी.यह एक शनिवार और उसके बाद की कहानी थी. शनिवार यानी 29 अक्टूबर, 2005.

...और फिर दहली दिल्ली:इसके बाद एक और शनिवार आया 12 सितंबर, 2008 का. दिनभर काम करने के बाद मैं वापस लौट रहा था कि तभी फिर दिल्ली में धमाकों की ख़बर आई.


वर्ष 2005 के धमाके
दिल्ली में वर्ष 2005 के धमाकों में 62 लोगों की मौत हो गई थी

घटनास्थलों में से एक ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 का एम ब्लॉक मार्किट मेरे घर से पाँच-छह किलोमीटर ही है पर यह दूरी पार करने में लगभग एक घंटा लग गया.दरअसल, धमाकों की ख़बर से सड़कों पर अफ़रा-तफ़री सबसे ज़्यादा दिख रही थी. लोग परेशान हाल जल्द से जल्द अपने घरों को पहुँचना चाहते थे.शनिवार को जगमग रहने वाला एम ब्लॉक मार्किट अंधेरे में डूबा हुआ था. पुलिस की गाड़ियों का तेज़ सायरन, लोगों को भगाते पुलिसकर्मी और बेहिसाब पहुँचते पत्रकार धमाके के मौके को घेरे हुए थे.बिखरे काँच और शीशे के टुकड़े, अपनों को खोजते लोग, मोबाइल पर ख़बर लेते परिजन, नमूने जुटाते विशेषज्ञ, नुकसान का जायज़ा लेते दुकानदार... काफी कुछ पिछले धमाकों जैसा था.गनीमत है कि ग्रेटर कैलाश में विस्फोटक ऐसी जगहों पर नहीं थे या शायद इतनी क्षमता वाले नहीं थे कि कई लोग गंभीर रूप से घायल होते, अपनी जानें गंवाते.हालांकि कनॉट प्लेस पर हुए धमाके में सर्वाधिक लोग मारे गए पर क्या आतंक को मापने का पैमाना मृतकों की संख्या भर है.और फिर क्या हुए वो वादे, बातें, कसमें जो दिल्ली को चलाने वालों ने अक्टूबर 2005 में खाई थीं. क्या सुरक्षा तंत्र इन हमलों को रोक सकी.क्या ताज़ा हमले दिल्ली के लोगों का विश्वास खोने की एक और चोट नहीं साबित होंगे. क्या दिल्ली के लोग (मजबूरी छोड़ दें तो) इस बात का एक बार फिर ऐतबार कर लें कि वे यहाँ सुरक्षित हैं.... एक शायद सबसे बड़ी सेना वाले और मज़बूत, आधुनिक (जैसा कि दावा है) ख़ुफ़िया तंत्र वाले देश की राजधानी में.इन सवालों की टोह जब कुछ आम लोगों से ली तो एक ही बात सुनने को मिली. दिल्ली कहाँ सुरक्षित है. कल कुछ मरे थे, आज कुछ मरे हैं. हम कहाँ और कबतक ख़ुद को सुरक्षित मानें.दिल्ली के दिलोदिमाग़ को इन धमाकों ने एकबार फिर झकझोर दिया है.

Wednesday, September 10, 2008

आरपी स्लोअर से लेंगे आस्ट्रेलिया का टेस्ट

भारतीय तेज गेंदबाज रुद्र प्रताप सिंह का मानना है कि आस्ट्रेलिया के खिलाफ गेंद की गति में विविधता लाना अहम होगा जिनमें ओवर के बीच में धीमी गेंद करना भी शामिल है जो रिकी पोंटिंग और उनके साथियों के लिए घातक साबित हो सकती है।आस्ट्रेलियाई टीम टेस्ट सीरीज खेलने के लिए अगले माह भारत आएगी। आरपी सिंह ने कहा, 'आस्ट्रेलिया अगर विदेश में भी खेल रहा हो तो उसे हराना आसान नहीं होता और अगर किसी गेंदबाज को उनके खिलाफ सफलता हासिल करनी है तो इसके लिए उसे कुछ अलग से करना होगा।' उत्तर प्रदेश के इस गेंदबाज ने कहा, 'आस्ट्रेलिया सीरीज की तैयारी के रूप में मैं सिर्फ बेसिक्स पर ध्यान दे रहा हूं लेकिन मैं कुछ नई गेंदों पर भी काम कर रहा हूं और मैंने धीमी गेंद करना शुरू किया है। इसके अलावा मैं बाउंसर पर भी काम कर रहा हूं।'भारत को आस्ट्रेलिया को हराने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा और उम्मीद है कि मेहमान टीम को स्पिनरों के अनुकूल पिच पर खेलना पड़ा। आरपी हालांकि मानते है कि टीम जीवंत पिचों पर भी खेल सकती है जिनसे स्पिनरों को भी कुछ मदद मिलेगी। आरपी ने कहा, 'मैं जीवंत पिचों पर खेलना पसंद करूंगा जो सबके लिए उचित होगा और इससे बल्ले और गेंद के बीच बराबरी का मुकाबला होगा।' आस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की सीरीज के लिए भारत के पास तेज गेंदबाजी विभाग में कई विकल्प है और टीम में जगह बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा होना अच्छा है। उन्होंने कहा, 'यह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भारतीय क्रिकेट के लिए अच्छी है। निजी तौर पर भी आपको काफी चीजें सीखनी होती है। यहां तक कि सीनियर गेंदबाज भी युवाओं से सीख सकते है विशेषकर मानसिक स्थिति को लेकर।'टीम इंडिया में खिलाड़ियों की बढ़ती समस्याओं के बारे में आरपी ने जोर देकर कहा, 'चोट की संभावना को कम करने के लिए फिटनेस पर ध्यान देना जरूरी है। चोट हमारे जीवन का हिस्सा है और हम इससे भाग नहीं सकते लेकिन अगर हम फिटनेस कर कड़ी मेहनत करें और ट्रेनर की सलाह के मुताबिक काम करें तो हम इसकी संभावना कम कर सकते है।' आरपी ने भी टीम इंडिया के अगले टेस्ट कप्तान के लिए धोनी के नाम की पैरवी की। उन्होंने कहा, 'अनिल कुंबले अच्छे कप्तान है। उनके पास वह सब कुछ है जिसकी जरूरत है लेकिन अगर कोई अगला टेस्ट कप्तान बनता है तो वह धोनी होगा।'धोनी की तारीफ करते हुए आरपी ने कहा, 'धोनी सोच समझकर फैसला करने वाला व्यक्ति है और वह पहले ही एक दिवसीय और ट्वंटी 20 में सफलता के साथ कप्तानी कर रहा है।'

लखनऊ-शताब्दी एक्सप्रेस की चपेट में आने से दो की मौत

दादरी में बुधवार रात करीब साढ़े दस बजे बंद रेलवे फाटक को क्रास करते समय दो मोटरसाइकिल सवार युवक लखनऊ-शताब्दी एक्सप्रेस की चपेट में आ गए। हादसा इतना जबरदस्त था कि दोनों युवकों के टुकड़े-टुकड़े हो गए। घटना की सूचना के मिलने के बाद पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर दी है। मरने वालों की पहचान नहीं हो पाई है।बुधवार रात करीब साढ़े दस बजे दो युवक मोटरसाइकिल से सुरजपुर से दादरी जा रहे थे। दादरी के पास रेलवे फाटक बंद था। दोनों युवकों ने जल्दबाजी में मोटरसाइकिल फाटक के नीचे से निकाल ली। इसी समय दोनों युवक सामने से तेज रफ्तार से आ रही लखनऊ-शताब्दी की चपेट में आ गए और उनके शरीर के चिथड़े उड़ गए। पुलिस मरने वालों की पहचान करने में जुटी है।

पाकिस्तान बना किडनी व्यापार का अड्डा

पाकिस्तान में आजकल वेबसाइट पर एक युवक द्वारा वेब साइट पर अपनी किडनी बेचने को लेकर दिया गया विज्ञापन यहां पर चर्चा का विषय बना हुआ है। यह विज्ञापन देश की पहली नीलामी वेबसाइट 'बोली डाट काम' दिया गया है।दरअसल आर्थिक रूप से बदहाल पाकिस्तान में आजकल अंग प्रत्यारोपण और किडनी कारोबार का धंधा तेजी से फल फूल रहा है। यहां के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां अधिकतर लोगों के पास सिर्फ एक ही किडनी बची है।विज्ञापन में कहा गया है, 'बिक्री के लिए किडनी उपलब्ध है। मैं 26 वर्ष का स्वस्थ युवक हूं। एबी पाजीटिव रक्त समूह के लिए मैं अपनी एक किडनी बेचना चाहता हूं। किडनी का मूल्य छह लाख रुपए है। आपरेशन और दवाओं का खर्चा किडनी खरीदने वाले को वहन करना होगा।' पाकिस्तान के ही एक संस्थान द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक देश में किडनी का कारोबार बढ़ता जा रहा है। अनुसंधानकर्ताओं ने किडनी बेचने वाले जिन 239 लोगों से संपर्क किया उनमें 69 फीसदी बंधुआ मजदूर, 12 फीसदी श्रमिक, 8.5 फीसदी गृहणियां और 11 फीसदी बेरोजगार थे। इनकी औसत आयु 35 वर्ष के आसपास थी। किडनी औसतम 1500 अमेरिकी डालर में बेची जाती है। हालांकि किडनी विक्रेता को शायद ही फायदा होता है क्योंकि ज्यादा हिस्सा बिचौलिए हड़प कर जाते हैं।पाकिस्तान में किडनी कारोबार पर अध्ययन करने वाले वरिष्ठ सर्जन अनवर नकवी ने बताया कि देश में अंग प्रत्यारोपण का व्यवसाय जोरों पर है। इसमें डाक्टरों से लेकर अस्पताल के कर्मचारी तक शामिल हैं। बिचौलिओं के साथ मिलकर ये लोग जरूरतमंदों का शोषण करते हैं।

महाप्रयोग का पहला चरण सफल, वैज्ञानिक झूमे

सृष्टि के विनाश के बारे में प्रलय प्रेमियों की ओर से फैलाई जा रही तमाम आशंकाओं को झुठलाते हुए वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए हो रहे अब तक के सबसे बड़े भौतिक प्रयोग के शुरुआती चरण को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया।यहां स्थित यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फार न्यूक्लियर रिसर्च [सीईआरएन] की प्रयोगशाला के नियंत्रण कक्ष में उस समय उल्लास का माहौल छा गया और तालियां गूंज उठी जब कंप्यूटर स्क्रीन पर दो बिंदु उभर आए। इन बिंदुओं का उभरना इस बात का संकेत था कि इस महाप्रयोग के पहले चरण के तौर पर आज भारतीय समयानुसार एक बजे धरती से 330 फीट नीचे महाकाय मशीन लार्ज हेड्रान कोलाइडर के 27 किलोमीटर के घेरे में छोडे़ गए प्रोटोन पुंज ने अपना पहला चक्कर पूरा कर लिया है। इस प्रोटोन पुंज के एक चक्कर पूरा करके वापस आने में एक घंटे से भी कम समय लगा।विज्ञान के इतिहास के इस सबसे महंगे प्रयोग पर दुनियाभर के वैज्ञानिक एवं जिज्ञासु दमसाध कर देख रहे हैं क्योंकि प्रयोग की सफलता से न केवल ब्रह्मांड के बारे में जानकारियों का एक नया अध्याय खुलेगा बल्कि ऐसी जानकारियां मिलेंगी जिनसे मानव जीवन को बेहतर बनाया जा सकेगा। सीईआरएन की अगुवाई में यह प्रयोग ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुडे़ महाविस्फोट के अरसे से प्रतिपादित सिद्धांत के कई राज खोलेगा।प्रयोग की देखरेख कर रहे सीईआरएन के महानिदेशक राबर्ट आयमार ने प्रयोग की सफल शुरुआत पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इसमें हमें एक बडे़ चुनौती पूर्ण कार्य को शुरू करने और भविष्य में बड़ी खोज कर पाने की दोहरी खुशी मिल रही है। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] परियोजना के प्रमुख लेयान इवान्स ने प्रोटोन पुंज के एक चक्कर के पूरा हो जाने के बाद कहा, आपका शुक्रिया, आप सबको धन्यवाद!इससे करीब एक घंटे पूर्व वैज्ञानिकों की सांसें प्रोटोन के पहले गुच्छे के उत्पन्न होने तथा कंप्यूटर स्क्रीन पर तेज प्रकाश के कौंधने के बीच के 48 सेकेंड तक सांसें अटक गई। प्रकाश का कौंधना इस बात का प्रतीक था कि प्रोटोन पुंज ने पाइप के भीतर पहले तीन किलोमीटर की दूरी तय कर ली। इसके बाद एलएचसी टीम ने प्रोटोन पुंज को पूरे सर्किट में तेजी से घुमाया। जब प्रोटोन पुंज ने मात्र 23 सेकेंड में अपनी आधी यात्रा पूरी कर ली तब डा. इवांस खुशी से झूम उठे और उनके मुंह से अचानक निकल गया..वाह।प्रयोग के पहले चरण में घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा में एलएचसी मशीन में प्रकाश की गति से प्रोटोन पुंज भेजा गया। दूसरे चरण में घड़ी की सुइयों की दिशा में प्रकाश पुंज छोड़ा जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग के बाद बिग बैंग के सिद्धांत को साबित किया जा सकता है। बिग बैंग के सिद्धांत के अनुसार जब प्रकृति ने ठंडा होना शुरू किया तो गिल्स बोसोन का भारहीन बादल पूरे ब्रह्मांड में छा गया। इसके साथ पृथ्वी तारों और ग्रहों का निर्माण शुरू हुआ।विशेषज्ञों के अनुसार इस महाप्रयोग के दौर ब्लैक हाल प्रोटोन का विशाल बादल बनने की संभावना है। इससे परमाणु के सूक्ष्म कणों की टक्कर से एक श्रृंखला शुरू हो सकती है। इसमें अगणित प्रोटोन पैदा होंगे। श्रृंखला को नियंत्रित करने के लिए ग्रेफाइट की छड़ों को काम में लिया जाएगा।स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर अरबों डालर की लागत से करीब बीस वर्ष में तैयार हुई इस प्रयोगशाला में हो रहे इस महाप्रयोग से प्राप्त होने वाले आंकड़ों का विश्लेषण एवं अध्ययन में कई वर्ष लग सकते हैं।इस प्रयोगशाला में 27 किलोमीटर लंबी सुरंग तैयार की गई है जिसमें विशालकाय पाइपलाइन बिछाई गई है। इसमें एक हजार से अधिक बेलनाकार चुंबकों को जोड़ा गया है। यह पूरा ढांचा तीन अलग-अलग आकार के गोलों में बनाया गया है। लार्ज हेड्रान कोलाइडर के अलग-अलग हिस्से प्रयोग के अलग-अलग परिणामों का विश्लेषण किया जाएगा। परमाणु के सूक्ष्म कणों की टक्कर और उनके प्रभाव से जुडे़ आंकडे़ सीईआरएन समेत पूरी दुनिया में वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में लगे कंप्यूटरों में देखे जाएंगे।

महंगाई को और भड़का सकता कमजोर रुपया

डालर के मुकाबले लगातार कमजोर होते रुपये से भले ही निर्यातकों की बल्ले-बल्ले हो रही हो,लेकिन इसके चलते देश में महंगाई के और भड़कने का खतरा पैदा हो गया है।बुधवार को रुपया 21 माह में पहली बार डालर की तुलना में 45 रुपये के स्तर को पार कर गया। इसके विपरीत फरवरी 08 में रुपया मजबूत होकर 39 रुपये प्रति डालर के स्तर पर था।विशेषज्ञों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिंसों के दाम पहले से ही काफी ऊपर चल रहे हैं। कमजोर रुपये से कच्चा तेल समेत सभी विदेशी उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा। इससे घरेलू बाजार में आयातित चीजों के दाम बढ़ जाएंगे और देश में पहले से ही 12 फीसदी के ऊपर चल रही महंगाई की आग फिर भड़क उठेगी। खासकर कच्चे तेल के मामले में आ रही नरमी का असर आयात महंगे होने से जाता रहेगा। देश में तेल की खपत का 70 फीसदी से ज्यादा हिस्सा आयात के जरिए ही पूरा किया जाता है। तेल के एक सौदे ज्यादातर डालर में ही होते हैं। इसलिए रुपये में तेल आयात महंगा पड़ेगा। यह महंगाई की आशंका को और बढ़ा देगा।रुपया डालर के मुकाबले जून 08 से लगातार कमजोर हो रहा है। अंतर बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में नवंबर 2006 के बाद रुपया 45 रुपये से नीचे लुढ़क रहा था। विदेशी बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले डालर की मजबूती का असर स्थानीय मुद्रा बाजार में भी दिखा। यहां रुपया सुबह नौ पैसे की कमजोरी के साथ 44.92-94 रुपये प्रति डालर पर खुला। बाद के कारोबार में यह 45.02-03 रुपये प्रति डालर के स्तर पर जा पहुंचा।डालर की भारी मांग तथा पर्याप्त आपूर्ति के अभाव ने रुपये पर दबाव बनाए रखा है। इसके अलावा इस साल विदेशी मुद्रा की आवक में भी कमी आई है। यह कमजोरी देश में मुद्रास्फीति स्तर के लिए चिंता का सबब बन सकती है। कारोबारियों का मानना है कि मुद्रा बाजार में अनिश्चितता आने वाले दिनों में भी जारी रह सकती है।

प्रलय नहीं, पृथ्वी का कुछ भाग बरबाद होगा

महामशीन लार्ज हेट्रोन कोलाइडर
यूरोपीय परमाणु शोध संस्थान (सीआरएन) के वैज्ञानिकों द्वारा कल 10 सितंबर को 7-8 अरब डॉलर की लागत से बनाई गई महामशीन लार्ज हेट्रोन कोलाइजर (एलएचसी) से फ्रांस और स्वीटजर लैंड की सीमा से लगी धरती के भीतर महाविस्फोट किया जाएगा।
वैज्ञानिकों की धारणा है कि इस विस्फोट से उतनी ही उर्जा उत्सर्जित होगी जितनी बिग-बैग के समय हुई थी। उत्सर्जित ऊर्जा के सूर्य के ताप से एक लाख गुना अधिक होगी। इस विस्फोट से धरती पर प्रलय या महाविनाश की स्थिति निर्मित होगी।
उक्त प्रयोग के लिए प्रोटीन की लम्बी छड़े एलएचसी को चुम्बकीय क्षेत्र में प्रविष्ठ करा दी जाएगी। ये छड़े जब बाह्य ऊर्जा से गतिशील होकर एक दूसरे से टकराएंगी तब ुससे विनाशकारी शक्ति उत्पन्न होगी और उसी शक्ति से ब्लैक होल निर्मित होकर ब्रह्माण्ड के रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करने में मददगार होंगे। ये ब्लैक होल ही ब्रह्माण्ड डॉ. रामावतार अग्रवाल बताते हैं कि वैदिक विज्ञान के आधार पर यह बताते हैं कि 10 सितंबर को प्रोटान की छड़ों द्वारा जो महाविस्फोट किया जाएगा, उससे न तो कोई महाविनाशकारी दृश्य उत्पन्न होगा और न ही ब्लैक होल उत्पन्न होंगे। ब्रह्माण्ड में वैज्ञानिकों ने जिन ब्लैक होल्स की वकालत की है, वास्तव में वे ब्लैक होल न होकर लोक या तारे है जो प्रलय को प्राप्त हुए है। तारों के प्रलय से इसका पदार्थ अपने-अपने अंतरिक्ष में फैल जाता है। इसके फैलने से प्रकाश अवरुध्द हो जाता है। ऐसे स्थिति में पदार्थ से भरा हुआ स्थान काला दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में कहीं बी ऐसे ब्लैक होल नहीं है जो ब्रह्माण्ड को ही निगल जाए।
श्री रामावतार अग्रवाल ब्रह्माण्ड के रहस्यों के बारे में एक पुस्तक भी लिख रहे हैं, जिसमें आधुनिक विज्ञान और वैदिक विज्ञान के अध्ययन से ब्रह्माण्ड के बारे में बताया गया है। जिसमें ब्रह्माण्ड अनादि है इसका कोई अंत नहीं है। श्री अग्रवाल बताते हैं कि 10 सितंबर के बाद वैज्ञानिकों का यह भ्रम दूर हो जाएगा कि विज्ञान से वे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर सकेंगे।
वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड को समाप्त नहीं कर सकेंगे। हां महाविस्फोट द्वारा विस्फोट की स्थिति तथा क्षमता के अनुसार पृथ्वी के कुछ भाग की बरबादी अवश्य होगी। डॉ. अग्रवाल का मानना है कि प्रकृति में संतुलन की शक्ति है, जो किसी भी अप्राकृतिक घटना को प्रति कणों के द्वारा संतुलित कर सकती है। प्रकृति में महापंचभूत एक दूसरे के प्रतिकूल और अनुकूल धर्मी है। विश्व के जितने भी वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड के रहस्यों की खोज में सक्रिय है वे कभी भी पदार्थ के छोटे से छोटे कणों द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति तथा विनाश की गुत्थी नहीं सुलझा सकते। ब्रह्माण्ड में जितने भी पदार्थ है उसके बड़े से बड़े टुकड़े तथा उसके छोटे से छोटे कणों द्वारा ब्रह्माण्ड का रहस्य नहीं जाना जा सकता। प्रोटॉन, इलेक्टॉन और न्यूट्रान में जो ऊर्जा भरी हुई है यह ज्ञात किए बिना विज्ञानी ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में एक प्रतिशत भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। बिग-बैग सिध्दांत में महाविस्फोट से पृथ्वी की उत्पत्ति मानी जाती है यह अपने आप में भ्रमपूर्ण और तर्क रहित है। ब्रह्माण्ड पूर्व में जैसा था वैसा वर्तमान में है। ब्रह्माण्ड में कुछ तारे प्रलय को प्राप्त हो रहे हैं तथा कुछ नए उत्पन्न हो रहे हैं। पूर्व ब्रह्माण्ड किसी काल विशेष में न तो बना है और न कभी नष्ट होगा। वैदिक विज्ञान के अनुसार जब ब्रह्माण्ड के कुछ लोको अथवा हमारे सौर परिवार की जब उत्पत्ति हुई थी तब कोई जीवन न था। अंधकार छाया हुआ था। तब सौर परिवार का पूरा पदार्थ सूक्ष्म तर कणों के साथ समुद्र रूप में और बाद में उबलते हुए अण्व के रूप में था। इसका उल्लेख ऋग्वैद में है। इस प्रकार मानव एक नहीं कई जन्मों के बाद भी ब्रह्माण्ड कैसे बना यह नहीं जान पाया।
डॉ. रामावतार अग्रवाल का तर्क

महिलाओं के लिए साहस का एक आदर्श उदाहरण

35 वर्षीय कोमा मोहन्ती एक पूर्ण-विकसित एड्स रोगी बनने की ओर अग्रसर है। उसकी इस दुर्भाग्यपूर्ण अवस्था में उसका एकमात्र सहारा है, उसकी धंसी हुई आंखें और उसकी कष्टासाध्य, निस्तेज चाल। वास्तव में, वह ओड़िसा के गंजम जिले की उन महिलाओं के लिए साहस का एक आदर्श उदाहरण है जो ऐसी कष्टकर अवस्था में जी रही हैं।काम के बेहतर अवसरों की तलाश में कोमा के पति त्रिनाथ ने जब गंजम जिले के पुरूषोत्तमपुर विकासखण्ड में बसे अपने गांव से गुजरात की ओर पलायन किया, तब कोमा के जीवन में पहले तो खुशहाली आई, लेकिन फिर सारी आशाएं चूर-चूर हुई और उसका जीवन बर्बाद हो गया। उसके द्वारा भेजी जाने वाली अपर्याप्त ही सही पर नियमित राशि के चलते उनके तीन बच्चों का स्कूल जाना तो खैर निश्चित हुआ। इसके बाद, साल-दो साल में इक्का-दुक्का अवसरों पर जब-जब वह घर आया अपने परिवार के लिए संदूक भर कपडे-लत्ते, खेल-खिलौने लाया। ऐसी ही किसी एक गृह-यात्रा में कपड़े-लत्तों, खेल-खिलौनों के साथ-साथ एक बिन बताया एचआईवी (ह्युमन इम्युनोडेफिसिएन्शी) वायरस भी उसके साथ चला आया। 2006 में हुए एक परीक्षण में उसके एचआईवी पॉजिटिव होने का प्रमाण भी मिला। बाद में, उसी साल उस खतरनाक बीमारी ने उसके प्राण भी लील लिए।कहीं ये 'संक्रमण' उनकी जान को न लग जाए, इस डर से उसके गांव का कोई भी व्यक्ति उसके दाह-संस्कार में नहीं आया। ऐसे समय, 'निर्माता' नामक एक स्थानीय एनजीओ ने इस काम में कोमा की मदद की, लेकिन पति के इस दुर्भाग्यपूर्ण अन्त से ही प्रारंभ हुआ सामाजिक स्वीकार्य पाने हेतु कोमा का दीर्घ व असम्भव-सा संघर्ष। ओड़िसा की एड्स कण्ट्रोल सोसाइटी (ओएसएसीएस) के अनुसार दिसम्बर 2007 तक प्रदेश भर में एड्स के कारण हुई मौतों में से 35 प्रतिशत मौतें गंजम जिले में हुए तथा कुल 8,200 एचआईवी-पॉजिटिव रोगियों में से 37.8 प्रतिशत रोगी अकेली गंजम जिले में थे।कोमा जैसी एचआईवीएड्स (डब्ल्यूएलएचए) पीड़ित महिलाएं हिम्मत बटोर न केवल इस भयावह रोग का सामना दिलेरी से कर रही हैं, बल्कि अपने साथ होने वाले भेदभाव से भी दो-चार हो रही हैं। अपने समर्थन-समूहों के बीच जानकारी व चेतना बांटकर वे अपना खोया सम्मान भी वापस पा रही हैं। पति की मृत्यु के बाद, नवम्बर 2006 में कोमा एचआईवी-संक्रमित पाई गई। कुछ दिनों बाद ही, 14 वर्ष का उसका सबसे बड़ा बेटा संतोष, गांव वालों द्वारा इस संदेह में सताए जाने पर कि उसे भी एचआईवी है, निकट के आम के बाग में मृत अवस्था में एक पेड़ से लटका पाया गया था। उसकी 13 वर्षीय बेटी गिरिजानंदिनी और उसका 12 वर्षीय बेटा निरंजन भी स्कूल में अपने साथियों द्वारा बहिष्कृत हुए, और अन्तत: उन्हें शालात्याग करना पड़ा। कोमा के कष्ट यहीं खत्म न हुए। बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम व एलर्जी भरे फोडे-फ़ुंसियों से परेशान हो जब-जब वह इलाज के लिए भटकुमरादा जन स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) जाती, वहां के स्वास्थ्य कर्मी उसे घण्टों प्रतीक्षा में खड़ा रखते क्योंकि वे अचआईवी संक्रमित रोगियों को किसी न किसी बहाने टालना चाहते। शरीर व मन, दोनों से थकी-हारी कोमा अपना व अपने दोनों शेष बच्चों का जीवन समाप्त करने का सोचती, लेकिन निर्माता के कार्यकर्ता सर्बेश्वर महापात्र तथा कोमा के पड़ोसी व स्कूल के प्रधानाचार्य कृष्णचन्द्र दास की लगातार समझाइश के चलते कोमा ने ऐसा दु:साहस नही किया। दास साहब ने तो सारे अभिभावकों की स्कूल में एक विशेष मीटिंग बुलाई और कोमा को उस अवसर पर उद्धाटन दीप प्रावलित करने को कहा ताकि समुदाय में व्यापक स्तर पर उसके व उसके बच्चों के प्रति एक स्वीकार्य भाव उत्पन्न हो। अध्यापकों व अभिभावकों ने दास बाबू के इस कदम का विरोध भी किया पर वे टस से मस न हुए। अन्तत: दास बाबू की यह कोशिश फल लाई। दो महीने के भीतर, कोमा के दोनों बच्चों की स्कूल-वापसी हुई और इस वर्ष की अन्तिम परीक्षा में तो कमाल ही हो गया, कोमा के पुत्र ने कुल मिलाकर 65 प्रतिशत अंक पाये, जबकि उसकी बहन 60 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुई। आज चाहे कोमा का स्वास्थ्य ढलान पर हो, पर उसका मन काफी दृढ़ है। ठीक महसूस करने पर वह पड़ोस के गांवों और स्कूलों में एचआईवीएड्स संबंधी जागरूकता रैलियों का नेतृत्व करती है और स्व-सहायता समूहों की बैठकों को संबोधित करती है।गंजम में महिलाएं अब एचआईवी एड्स पर खुल कर बात करती हैं, जिसमें झिझक या शर्म कहीं नहीं होती। इन विधवाओं के कष्टों को देखते हुए ओड़िसा सरकार ने फरवरी 2008 में मधुबाबू पेंशन योजना के तहत 200 रूपए मासिक की एक सहायता घोषित की।सरकार की इस पहल से एड्स के कारण बनी विधवाओं को आर्थिक व मानसिक सबल मिलने की आशा है। धीमे ही सही, पर एक निश्चित परिवर्तन की आहट सुनाई तो देती है। (नाम-परिवर्तन नहीं किया गया है, रिपोर्ट में उल्लिखित महिलाओं ने स्वैच्छिक एवं सार्वजनिक ढंग से अपना एचआईवी पीड़ित होना घोषित किया है।)

Monday, September 8, 2008

जस्टिस सेन पर महाभियोग

नई दिल्ली। केंद्र सरकार कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है।मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने कदाचार के आरोप में सेन को पद से हटाने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ कार्रवाई किए जाने का सुझाव मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने दिया है। इस सुझाव को पिछले महीने प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया गया था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस सिफारिश पर सुझाव के लिए इसे कानून मंत्रालय के पास भेज दिया था। न्यायमूर्ति सेन को कोई काम आवंटित नहीं किया गया, लेकिन वह निरंतर अपने पद पर बने हुए हैं।कानून मंत्री एच आर भारद्वाज ने कहा कि मुझे कुछ दिन पहले पत्र मिला है। हम उसकी जांच कर रहे हैं और जरूरी कार्रवाई किए जाने के संबंध में तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश के मुख्य न्यायाधीश ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रकिया शुरू किए जाने की सिफारिश की है। ऐसे में हमें इस मामले में ससंद में जाना होगा। कानून मंत्री ने कहा कि कोई भी इसे नहीं रोक सकता क्योंकि, इस बारे में सुझाव भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से आया है। अगर इस सुझाव को अमल में लाया जाता है तो देश के किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की यह दूसरी प्रक्रिया होगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति की ओर से इस मामले में की गई जांच में न्यायमूर्ति सेन इस पद पर आसीन होने से पहले कथित तौर पर वित्तीय कदाचार में लिप्त पाए गए।उन पर स्टील आथिरिटी आफ इंडिया लि. और शिपिंग कारपोरेशन आफ इंडिया के बीच मुकदमे के मामले में अदालत की ओर से नियुक्त रिसीवर के रूप में 32 लाख रुपये लेने और उसे अपने निजी खाते में जमा करने का आरोप है।

मामले की जांच के लिए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति ने न्यायमूर्ति सेन को अपने निजी खाते में रुपये जमा करने के मामले में कदाचार का दोषी पाया। सरकार अब महाभियोग प्रस्ताव या तो लोकसभा में या फिर राज्यसभा में लाएगी। उसके बाद सदन के पीठासीन अधिकारी मामले की जांच के लिए समिति गठित करेंगे और अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो दोनों सदनों को प्रस्ताव को पारित करना होगा। कानून मंत्री ने मध्य अक्तूबर से शुरू हो रहे संसद के आगामी सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाये जाने की संभावना से इनकार नहीं किया। भारद्वाज ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव पर 100 सांसदों के हस्ताक्षर की संवैधानिक अनिवार्यता इस मामले में संभवत: लागू नहीं हो, क्योंकि यह सरकारी प्रस्ताव होगा।मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि न्यायमूर्ति सेन की ओर से जरूरी कागज मुहैया कराए जाने से संभवत: इंकार किए जाने के कारण मामला महाभियोग स्तर पर पहुंचा है, जबकि मुख्य न्यायाधीश की ओर से नियुक्त समिति को कथित वित्तीय कदाचार मामले में उनके खिलाफ साक्ष्य मिल गया था। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ अगर महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है तो उच्च न्यायपालिका के किसी न्यायाधीश के खिलाफ लाया जाने वाला महाभियोग का यह दूसरा मामला होगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी रामास्वामी के खिलाफ 1991 में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। उन पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते फर्नीचर खरीद मामले में कदाचार का आरोप था। प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया था तथा उस पर मतदान के लिए भी कहा, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेसी सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया। न्यायमूर्ति सेन के मामले में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति की ओर से नियुक्त समिति ने इस आरोप को सही पाया कि उन्होंने वर्ष 1993 में अदालत की ओर से नियुक्त प्राप्तकर्ता के रूप में 32 लाख रुपये प्राप्त किए और उसे अपने निजी खाते में जमा किया। उस समय वह कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे थे। समिति ने पाया कि सेल और एससीआई के बीच जारी मुकदमे में उन्होंने कथित रूप से अग्निरोधक लकड़ी की आपूर्ति मामले में प्राप्त रकम अपने पास रखी और एक दशक तक हिफाजत का हवाला देते हुए दूसरे खाते में स्थानातंरित नहीं किया।वर्ष 2003 में वह हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए और इसके बाद भी उन्होंने कथित तौर पर रुपये दूसरे खाते में जमा नहीं किए। वर्ष 2006 में हाईकोर्ट से मिले निर्देश के बाद उन्हें रुपये जमा करने पड़े। उन्होंने 52.46 लाख रुपये अदालत में जमा किए। अग्निरोधक लकडि़यों की बिक्री से प्राप्त 32 लाख रुपये को अपने निजी खाते में जमा करने के मामले में सेल ने न्यायमूर्ति सेन के हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनने के दो साल बाद चुनौती दी थी।

Sunday, September 7, 2008

दुष्कर्मी-हत्यारे शिक्षक की फांसी पर मुहर

नई दिल्ली [ ब्यूरो]। यह महज एक संयोग है। शिक्षक दिवस पर शुक्रवार को लाखों शिक्षकों को उनके अनुकरणीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। वहीं एक शिक्षक को उसके घृणित कुकर्माें के लिए फांसी की सजा सुनाई गई है। शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट ने नौ साल की बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या करने वाले एक शिक्षक की फांसी की सजा पर अपनी मुहर लगा दी है। इसके पहले सत्र अदालत व हाईकोर्ट ने भी पुणे के शिवाजी उर्फ दादया शंकर को फांसी की सजा सुनाई थी।न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत व न्यायमूर्ति एम के शर्मा की पीठ ने शिवाजी की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि सत्र अदालत व हाईकोर्ट का फैसला सही है। उसमें दखल देने का कोई आधार नहीं है। यह मामला विरले मामलों की श्रेणी में आता है। अभियुक्त को फांसी की ही सजा सुनाई जा सकती है।घटना जनवरी 2002 पुणे की है। मकर संक्रांति का दिन था। अभियुक्त नौ साल की बच्ची को जलाने की लकड़ी देने का लालच देकर पहाड़ी पर ले गया। वहां दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी। अभियुक्त शिक्षक शादीशुदा और तीन बच्चों का पिता है। यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों का था। अभियुक्त को अंतिम बार बच्ची के साथ देखा गया था। उसके बाद बच्ची मरी पायी गई।सुप्रीमकोर्ट ने सजा को सही ठहराते हुए कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी फांसी की सजा सुनाई जा सकती है, यदि घटना की क्रमबद्धता सिद्ध हो जाए और गवाहों के बयान विश्वसनीय हों। इस मामले में ऐसा ही है।फैसले में कहा गया है कि सजा अपराध के अनुपात और उसके समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रख कर दी जानी चाहिए। सजा पर विचार करते समय अपराध के तरीके, कारण और उसमें प्रयुक्त हथियार तथा परिस्थितियों का ध्यान रखा जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर दोनों पक्षों की ओर से चलने वाली पुरानी आपसी दुश्मनी के मामले में मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता है। लेकिन संगठित, सुनियोजित अपराध तथा बड़े पैमाने पर निर्दोषों की हत्या के मामले में ऐसे अपराधों को रोकने के लिए मृत्यु दंड दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि अभियुक्त के साथ बेमतलब की सहानुभूति रख कर अपर्याप्त सजा दिया जाना न्यायिक प्रणाली के लिए ज्यादा घातक है। इससे लोगों का कानून की निपुणता पर विश्वास कम होगा और समाज ज्यादा समय तक इसे नहीं सह सकता। इसलिए प्रत्येक अदालत का कर्तव्य है कि वह सजा देते समय अपराध की प्रकृति और तरीके को ध्यान में रखे। अपराध का समाज पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखे बगैर सजा देना बहुत से मामलों में बेकार की प्रक्रिया सिद्ध होता है।महिलाओं, बच्चों के प्रति अपराध, डकैती तथा नैतिकता आदि के खिलाफ होने वाले अपराधों में जनहित को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में उदाहरणात्मक दंड दिया जाना चाहिए।