एक माह से अधिक का समय किसानों को आंदोलन करते हुए बीत चुका है मगर किसानों का सब्र का पैमाना नहीं छलका है इसका मतलब यह नहीं है कि आंदोलन में आंधी नहीं आ सकती है। सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए की इस समय किसानों के आंदोलन को व्यापक समर्थन मिलना शुरू हो गया है आज हालात यह है कि सरकारी नौकरी छोड़कर किसानों के आंदोलन में सहयोग और सेवा करने के लिए पहुंच चुके हैं। अभी यह संख्या काम है मगर धीरे-धीरे बढ़ सकती है क्योंकि अभी पंजाब पुलिस के डीआईजी एवं डॉक्टर जोकि दो लाख माह की नौकरी को ठुकरा सकते हैं तो सरकार को समझने की आवश्यकता है कि इस आंदोलन को नहीं रोका गया तो निश्चित ही सरकार के सामने परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। सरकार भले ही अपने मन को समझाने के लिए यह कह रही है कि किसानों की संख्या काफी काम है मगर सरकार को इसका अंदाजा स्वयं भी है क्योंकि सरकार ने सभी बॉर्डर्स से पूर्व ही पुलिस लगाकर आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों को रोका जा रहा है। सरकार द्वारा किसानों को रोकने पर शांति भंग हो सकती है। मगर सरकार भी क्या करें अगर किसानों को आंदोलन में शामिल होने देगी तो निश्चित किसानों को मजबूती मिलेगी जो सरकार बिल्कुल नहीं चाहती है।
सरकार और किसान मिलकर समस्या का हल निकाल सकते हैं मगर दोनों अपनी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं जोकि किसान और सरकार दोनों के लिए हित में नहीं है। किसान चाहते हैं कि तीनों काले काले रद्द हो और सरकार केवल तीनों कानूनों में कुछ बदलाव करते हुए किसानों को लॉलीपॉप थमाना चाहती है मगर किसान इस बार मूर्ख नहीं बनना चाहते है। किसानों की मांग किसी हद तक भी है क्योंकि किसानों को उनकी फसल की एमएसपी भी नहीं मिलती है और किसानों के द्वारा उत्पादित जब व्यापारी या खुरदरा विक्रेता के पास पहुंच जाती है तो फिर फसल एमआरपी पर बिकती है क्या यह सरकार को नहीं मालूम सब सरकार की आंखों के सामने होता है और प्रत्येक व्यक्ति इसे जानता और मानता है मगर फिर भी किसान को एमएसपी नहीं मिल सकती है।
धरना स्थल पर मौजूद एक बहुत ही छोटे से किसान ने बहुत ही पते की बात कहीं जोकि मेरे दिल को छू गई क्योंकि उक्त किसान का कहना है कि हम यानी किसान मूर्ख और कमजोर है नहीं तो सरकार व्यापारियों की तरह किसान के पास आने के लिए मजबूर होती जब उन्होंने पूरा खुलासा किया तो मुझे भी मानने पर मजबूर होना पड़ा। आंदोलनकारी किसान का कहना है की इस तरह की एकता किसानों में इससे पूर्व देखने को नहीं मिली। यही एकता अगर किसान अपनी फसलों के लिए योजना बनाएं और योजनाबद्ध तरीके से अपनी फसलें उगाए तो निश्चित ही किसान को एमएसपी मांगने की आवश्यकता ही नहीं होगी। किसान का कहना है कि गेहूं, गन्ना, चावल, मक्का सहित अन्य एमएसपी पर बिकने वाली फसलों को आवश्यकता से कम उत्पादित करें और क्षेत्र वाइज फसलों का बटवारा करते हुए उगाए तो निश्चित ही किसानों को सफलता मिल सकती है। आंदोलनकारी किसान का कहना था कि शहरी क्षेत्र के नजदीक कृषि क्षेत्रों में केवल हरी सब्जी और फूल फल इत्यादि की खेती की जाए तो निश्चित ही ऐसे किसानों को भरपूर कीमत मिल सकती है। शहर से दूरी वाले क्षेत्र में आवश्यकता के अनुसार हरी सब्जी और एमएसपी वाली फसलें उगाई जाए निश्चित ही किसानों को लाभ मिलेगा और सरकार को सबक। आंदोलनकारी किसान का मानना है कि आवश्यकता से अधिक उत्पादन ही किसानों की दुर्दशा का जिम्मेदार है। किसान का मानना है की खाद्य उत्पादित सामग्री खरीदना सरकार की मजबूरी है और किसानों द्वारा उत्पादित करना।
आंदोलनकारी किसान का मानना है की किसानों को भी अब कृषि में मार्केटिंग मैनेजमेंट लागू करना होगा और इसके पश्चात सरकार स्वयं सोचने पर मजबूर हूं अंखियों के सामने ऐसा निर्णय क्यों लिया। किसान का मानना है की खेती यानी कृषि का उत्पादन कार्य मल्टीनेशनल कंपनियां नहीं कर सकती हैं यह कार्य केवल एक किसान द्वारा ही किया जा सकता है। सरकार अपनी चहेती कंपनियों को ऐसी भूमि उपलब्ध करा सकती है कि जहां मल्टीनेशनल कंपनियां खेती करें और खाद्य सामग्री उत्पादित करें मगर उसके लिए सरकार को मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए कृषि योग्य भूमि उपलब्ध करानी होगी। फिलहाल अभी किसान आंदोलन पर हैं हो सकता है आने वाले समय में कृषि में भी मैनेजमेंट और मार्केटिंग दोनों का उपयोग होने लगे और यह हालात कभी ना पैदा हो जैसे कि आज है। किसान सर्दी में सड़क पर और देश की सरकार...।