नई दिल्ली: दिल्ली में हुए 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल गया। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सोमवार को पंजाब में कहा था कि सिख समाज '84 के सिख विरोधी दंगों को भूल जाए। इस मामले का पटाक्षेप हो चुका है। इस बयान से विरोधियों, खासकर शिरोमणि अकाली दल को एक मुद्दा मिल गया है। चूंकि बुधवार को पंजाब में मतदान होना है, इसलिए विरोधी दल इसे हर हाल में भुनाना चाहता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री के इस बयान को शिरोमणि अकाली दल ने तूल दे दिया। साथ ही प्रधानमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी शिअद नेता व समर्थक डा. मनमोहन सिंह के खिलाफ आग उगल रहे थे। भड़के सिखों ने प्रधानमंत्री को कातिलों का सरदार तक कह डाला।उनका कहना था कि आज सिख होकर प्रधानमंत्री सिखों के कत्लेआम को भुलाने की बात कर रहे हैं। क्या देश को कहेंगे 1947 को भूल जाएं। दंगे में निर्दोष सिख मारे गए थे, किसी का सुहाग उजड़ा तो कई बच्चा यतीम हो गए। डा. मनमोहन सिंह के परिवार या उनके रिश्तेदार इस दंगे के शिकार नहीं हुए इसलिए वह इसे भुलाने की बात कर रहे हैं। अकाली दल के नेता कुलदीप सिंह भोगल, अवतार सिंह हित, जसवीर सिंह काका व महेंद्र पाल सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मानवता व धर्म भूलकर कुर्सी को प्राथमिकता दे रहे हैं। '84 में सिखों का कत्लेआम देश हमेशा याद रखेगा। इसे देश के इतिहास में हमेशा काले अक्षरों में याद किया जाएगा। कत्लेआम की अगुवाई करने वाले जगदीश टाइटलर को सरकार बचा रही है। उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
भाजपा ने भी की बयान की आलोचना
प्रधानमंत्री के सिख विरोधी दंगों को भुलाने के बयान की भारतीय जनता पार्टी ने भी आलोचना की। प्रदेश के महामंत्री आरपी सिंह ने कहा कि ऐसा कह कर प्रधानमंत्री ने पद की गरिमा धूमिल की है। साथ ही उन्होंने परोक्ष रूप से भारत की न्यायपालिका पर दबाव भी बनाया है। उन्होंने कहा कि जब '84 के दंगों को सिख कौम भूल सकता तो जालियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा सिखों को गोलियों से उड़ाने की घटना को भी भूल गया होता।
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