राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने शुक्रवार को लिव-इन रिलेशनशिप (बगैर शादी साथ रहना) को फिर से परिभाषित करने की जरूरत बताई। आयोग ने कहा कि लिव-इन संबंधों को 'महज सुविधा या निजी सुख के लिए साथ रहने' के मामलों से अलग करके देखा जाना चाहिए।एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने कहा कि लिव-इन के तहत केवल उन संबंधों को शामिल किया जाना चाहिए जो शादी की प्रकृति के हैं। उन्होंने कहा, 'इसके तहत महज सुविधा या निजी सुख के लिए बनाए गए संबंधों को शामिल नहीं करना चाहिए।' उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में जहां संबंध बमुश्किल छह माह पुराने हैं और दोनों पक्षों के बीच कोई वचनबद्धता नहीं है, अदालत ऐसे संबंधों को अमान्य करार दे सकती है।उल्लेखनीय है कि लिव-इन रिलेशन को मान्यता देने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव के बाद एनसीडब्ल्यू ने इस पर विचार के लिए एक विशेष समिति गठित की थी। इस समिति की पहली बैठक में आयोग ने यह फैसला किया कि किसी भी संबंध की गंभीरता का आकलन करने की जरूरत है और यह काम अदालतों को करना चाहिए। एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष ने कहा, 'इसलिए किसी भी तरह की राहत देने के लिए अदालत को हर मामले के तथ्य और परिस्थितियों पर यह विचार करना होगा कि क्या संबंध शादी सरीखी प्रकृति का है या कुछ और।'गिरिजा व्यास ने लिव-इन के तहत रहने वाले साथी के अधिकारों को शामिल करने के लिए दहेज और संपत्ति कानून समेत सभी संबंधित कानूनों में बदलाव की वकालत की। आयोग ने हालांकि इसके साथ ही पहली पत्नी के अधिकारों को कड़ी सुरक्षा देने की भी मांग की।आयोग की वकील मीनाक्षी लेखा ने कहा कि लिव-इन शब्द का आमतौर पर गलत या नकारात्मक अर्थ लगाया जाता है, जिससे बचना चाहिए। 15 दिन पहले गठित एनसीडब्ल्यू की यह समिति अपना विचार-विमर्श जारी रखेगी और जल्द ही इस विषय पर अपनी संपूर्ण सिफारिशें सामने रखेगी।
Friday, December 19, 2008
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