एल. के. गुप्ता की आंखें आज भी 22 सितंबर के उस हादसे को याद करते हुए डरके मारे पथरा जाती हैं। इस हादसे में इतालवी कंपनी ग्रेजियानो ट्रांसमिशियानो में काम करने वाले लोगों ने ही कंपनी के प्रबंध निदेशक ललित किशोर चौधरी को इतनी बुरी तरह से पीटा था, जिससे उनकी जान ही चली गई। कंपनी में मानव संसाधन विभाग के मुख्य प्रबंधक, गुप्ता कहते हैं, ‘वे लोग मेरी तरफ ही आ रहे थे। लेकिन मैं अपने केबिन में मेज के नीचे छुप गया था। उन लोगों के हाथ में पत्थर और लोहे की रॉडें थीं।’ उन्हें कमरे में न पाकर उस भीड़ ने रुख किया पहली मंजिल पर बने गेस्ट हाउस की ओर। गेस्ट हाउस से कुछ फासले की ही दूरी पर चौधरी कुछ इतालवी अधिकारियों से बातचीत कर रहे थे। भीड़ को आता देख इतालवी अधिकारी तो दूसरे कमरे में जाकर छिप गए, लेकिन चौधरी बॉलकनी से सीधे नीचे कूद गए। मगर वहां भी उस गुस्सैल भीड़ ने उन्हें घेर लिया। भीड़ उनकी पिटाई तब तक करती रही, जब तक कि उनकी जान ही नहीं चली गई।
हाल-फिलहाल में देश में औद्योगिक संबंधों में कड़वाहट का इससे भयावह नमूना शायद ही कोई दूसरा हो सकता है। इस हादसे को देखने वाला कंपनी का कोई भी अधिकारी जिंदगी भर उस दर्दनाक घटना को नहीं भूल सकेगा। इस घटना के बाद जब प्लांट में 29 सितंबर से फिर से कुछ काम शुरू हुआ, तब कंपनी के दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को अपनी जान की परवाह सताने लगी। वैसे उनकी सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के 50 सुरक्षा कर्मियों के साथ-साथ इतनी ही संख्या में निजी सुरक्षा गार्ड लगे हुए हैं। लेकिन उस हादसे के बाद कंपनी में डर का माहौल बना हुआ है। चौधरी को रिपोर्ट करने वाले कई जीएम अपने लिए नई नौकरी तलाश रहे हैं। जेल से छूटे 68 कर्मचारियों का हवाला देते हुए एक महाप्रबंधक कहते हैं, ‘वे हममें से किसी को कभी भी निशाना बना सकते हैं।’ उस घटना में शामिल 70 बचे हुए कर्मचारी अभी भी डासना जेल में हैं। केवल ग्रेजियानो के अधिकारी ही सहमे हुए नहीं है बल्कि दूसरे लोग भी खौफ के साये में जी रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रीज (एजीएनआई) के अध्यक्ष अतुल घिल्डयाल कहते हैं, ‘ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर में छोटी-छोटी कंपनियों में खौफ का साया नजर आ रहा है। ’ घिल्डयाल ग्रेजियानो की बगल में स्थित न्यू हॉलैंड ट्रैक्टर्स में मानव संसाधन के प्रमुख हैं।
ग्रेजियानो की सूरजपुर में मौजूदगी को 10 बरस हो गए हैं। कंपनी ट्रैक्टरों और व्यावसायिक वाहनों के लिए गियर्स, शाफ्ट्स, ट्रांसएक्सल्स और एक्सल्स बनाती है। इसके अलावा कंपनी निर्माण में काम आने वाले उपकरण भी बनाती है। इटली की कंपनी ऑर्लिकॉन ग्रेजियानो का इस पर मालिकाना हक है। पिछले नौ साल से कंपनी बिना किसी दिक्कत के चल रही थी। पिछले कुछ सालों में कंपनी ने जबरदस्त तरक्की भी की है। इसने 2007 में जहां 25 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार किया था, वहीं 2007 तक आते-आते इसका सालाना कारोबार बढ़कर 270 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। पिछले साल कंपनी ने अपने ग्रेटर नोएडा वाले प्लांट को 13,000 वर्गफीट से बढ़ाकर 23,000 वर्गफीट का किया और वहां पर एक्सल्स और सिंक्रोनाइजर भी बनाए जाने लगे। कंपनी का एक दूसरा प्लांट कर्नाटक के बेलगाम में भी है।
दरअसल इस झगड़े की शुरूआत 2007 के अंतिम दिनों में हुई थी। आईआईटी-कानपुर से पढ़े चौधरी इस कंपनी की मजबूत बुनियाद की तरह थे। उन्होंने यहां शुरुआत बतौर प्लांट मैनेजर की थी।?2005 में उन्हें प्रबंध निदेशक बनाया गया। ट्रेड यूनियन के एक लीडर का कहना है कि इस फसाद की शुरुआत तब हुई, जब कंपनी के स्थायी कर्मचारियों ने प्रबंधन से नियुक्ति पत्र की मांग की। ये कर्मचारी एक यूनियन बनाना चाहते थे। इनकी मांग पर इटली में कंपनी के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस की ओर से जवाब आया कि कंपनी इस पूरी प्रक्रिया से वाकिफ नहीं है, लेकिन कंपनी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी के रूप में मान्यता देती है। कर्मचारियों की ओर से विरोध प्रदर्शन मई 2008 से शुरू हुआ। कंपनी पांच ट्रेनीज को प्रोबेशन अवधि के बाद नौकरी नहीं दे रही थी। कर्मचारियों ने इन पांचों की नौकरी के लिए आंदोलन छेड़ दिया। कुछ लोगों ने अवैध हड़ताल शुरू कर दी। वहीं कंपनी के एक अधिकारी का कहना है कि मुश्किल के संकेत दिसंबर 2007 से ही मिलने लगे थे। कर्मचारियों ने वेतन बढ़ाने की मांग भी शुरू कर दी। कंपनी ने 24 जनवरी को कर्मचारियों के साथ नए आंतरिक श्रम अनुबंध की शुरुआत की। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस से भी इस मामले में समझौता किया गया और श्रम विभाग में भी पंजीकरण कराया गया। यह अनुबंध तीन साल तक यानी दिसंबर 2010 तक वैध है। विवाद ने मार्च के बाद और तूल पकड़ना शुरू कर दिया जब कर्मचारियों ने एआईटीयूसी का पाला बदलकर सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) का दामन पकड़ लिया। टे्रनी कर्मचारियों को स्थायी न करने के मसले पर कर्मचारी काम में व्यवधान डालने लगे। श्रम अधिकारियों के हस्तक्षेप के बावजूद हड़ताल चलती रही जिसके चलते 27 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया। विवाद बढ़ता गया। तब सहायक श्रम आयुक्त, श्रम प्रवर्तन अधिकारी और प्रबंधन ने 30 कर्मचारियों को भी चेतावनी दी। श्रम अधिकारियों का कहना है कि कंपनी ने कई बार बातचीत का प्रस्ताव रखा और वह कई बार निलंबित कर्मचारियों को बहाल करने पर सहमत भी हो गई। उप श्रम आयुक्त बी. के. सिंह कहते हैं, ‘हर बार कुछ कर्मचारी बहाल कर दिए जाते थे और कई बार समझौते को ही खारिज कर दिया गया।’ मिसाल के तौर पर, निलंबित किए गए 27 में से 15 कर्मचारियों को तो हटा दिया गया। दूसरी ओर कंपनी के प्रवक्ता का कहना है, ‘इन कर्मचारियों को जांच के बाद ही हटाया गया। अवैध हड़ताल को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। ’
हालांकि प्रबंधन हड़ताली कर्मचारियों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन उन्हें नौकरी से हटाए गए कर्मचारियों को वापस लेने पर कोई ऐतराज नहीं था। कंपनी की शर्त केवल यह थी कि उन कर्मचारियों को व्यक्तिगत स्तर पर हड़ताल को खत्म करने के लिए लिखित निवेदन करना होगा। वे इसके लिए 22 सितंबर तक आवेदन कर सकते थे। कंपनी का दावा है कि उनके पास 22 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक केवल आठ आवेदन आए। उस दिन लगभग पौने एक बजे करीब 120 हड़ताली कर्मचारी में ग्रेजियानो के संयंत्र में जबरदस्ती घुस गए। उन्होंने अफसरों पर हमला बोल दिया। उस दौरान दफ्तर में भी काफी तोड़-फोड़ मचाई गई और कारों को भी निशाना बनाया गया। चौधरी के सिर पर तो इतनी गहरी चोट आई कि उनकी मौत हो गई। वहां के लगभग 34 कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें बाद में ग्रेटर नोएडा के कैलाश हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
दूसरी तरफ, कामगारों का आरोप है कि कंपनी ने उनके केवल आठ ही आवेदन लिए थे। उनका कहना है कि कंपनी ने उनमें से दो लोगों को अपने क्षमापत्र में ऐसे अपराध स्वीकार करने के लिए बाध्य किया, जो उन्होंने कभी नहीं किया। एक मजदूर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि कुछ गुंडों को हमसे जबरन हस्ताक्षर करने के लिए भी बुलाया गया था। वहां उनके साथ काफी ज्यादती करने की कोशिश की गई। हैरत की बात यह है कि श्रम अधिकारियों का कहना है कि कंपनी इस मुद्दे को सुलझाने में कोई दिलचस्पी तक नहीं ले रही थी। हालांकि इस कंपनी की उत्पादन दर में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिख रही थी। सिंह का कहना है, ‘इस कंपनी का मुनाफा महीने भर में बढ़कर 26 करोड़ रुपये से 34 करोड़ रुपये तक हो गया। साफतौर पर यहां कंपनी के लिए कोई आर्थिक बाध्यता नहीं थी कि उन्हें निबटारे के लिए जल्दी समझौता करना ही चाहिए।’
टे्रड यूनियन के नेता कहते है कि कंपनी ने अपने यहां मजदूरों के हड़ताल पर जाने के बाद उनकी भरपाई के लिए लगभग 400 कर्मचारियों को काम पर रखा था जो एक स्थायी कर्मचारी की तरह सारे काम करने लगे। हालांकि गे्रजियानो के अधिकारियों ने मजदूरों की कमी की भरपाई करने के लिए दिहाड़ी मजदूरों का आंकड़ा नहीं दिया है। लेकिन उनका कहना है कि हड़ताल के दौरान कंपनी को निर्यात आर्डर पूरा करने के लिए आपूर्ति तो जारी रखनी ही थी। कंपनी का कहना है, ‘गे्रजियानो इंडिया अमेरिका और इटली के कुछ बड़े ग्राहकों के लिए सामान की आपूर्ति करने वाला एकमात्र स्रोत है। ऐसे हालात बनने के बाद उनके पास अस्थायी मजदूरों के साथ अपने उत्पादन को जारी रखने के सिवा दूसरा कोई चारा न था। इसकी वजह से कंपनी पर अतिरिक्त लागत का भार बढ़ गया। यह बेहद हास्यास्पद बात है कि ग्रेजियानो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ऐसे हथकंडे के जरिए मुनाफा बनाने की कोशिश करेगी।’
जो मजदूर जमानत पर छूट गए हैं, उन्होंने नई दिल्ली में 2 अक्टूबर को जंतर-मंतर पर धरना दिया। उन मजदूरों के साथ उनके परिवार के लोग भी थे। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में उन्होंने बताया कि कंपनी की काम पर रखने और निकालने की नीति के मद्देनजर वे अपनी एक यूनियन बनाना चाहते थे। उनका दावा है कि पिछले कुछ सालों में कंपनी से 1,200 लोगों को काम से निकाल दिया गया। उन मजदूरों को काफी कम वेतन दिया जाता था और मजदूरों के छुट्टी लेने पर भी उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था। लेकिन कंपनी के एक अधिकारी इन आरोपों को खारिज करते हैं। कंपनी के एक प्रवक्ता का कहना है, ‘आप इस बात पर विचार करें कि इतालवी कंपनी ग्रेजियानो अत्याधुनिक मैकेनिकल प्रोडक्ट बनाती है। ऐसे काम के लिए कामगारों, वित्तीय संसाधनों और बेहतर समय के प्रबंधन के लिए कोशिशें की जाती हैं।’
इन सारे घटनाक्रम को देखते हुए पुलिस इसमें कोई व्यावसायिक दुश्मनी की संभावना की भी जांच कर रही है। यह भी माना जा रहा है कि यह ऐसे ही मेकेनिकल प्रोडक्ट बनाने वाली किसी प्रतिस्पर्धी कंपनी की भी साजिश हो सकती है। मुमकिन है कि उन्होंने कामगारों को भड़काया हो। फिलहाल हिंद मजदूर सभा भी इन मजदूरों को अपना सहयोग दे रही है। इस बीच कंपनी को अपने उत्पादन और कारोबार को भी बढ़ाने की सख्त जरूरत है। सितंबर में कंपनी ने 40 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था। इस बारे में एल. के. गुप्ता कहते हैं, ‘हमें यह भी यकीन नहीं है कि हम कम से कम 10 करोड़ रुपये मुनाफा पाने का लक्ष्य भी पूरा कर पाएंगे या नहीं।’ उनका कहना है कि वे लोग अब नए लोगों को प्रशिक्षित करना चाहते हैं। इसकी वजह यह है कि बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरे करने वाले छात्रों को कम से कम दो महीने के गहन प्रशिक्षण की जरूरत होती है ताकि वे उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को समझ सकें। जो मजदूर जेल से छूटकर आएंगे, कंपनी उनके साथ सेंटलमेंट भी करेगी। लेकिन हिंद मजदूर सभा के यूनियन नेता इस तरह के विकल्पों को कोरा बता कर खारिज करते हैं। हिंद मजदूर सभा की गाजियाबाद इकाई के सचिव बीरेन सिंह सिरोही के बारे में यह कहा जाता है कि वह इस क्षेत्र में ट्रेड यूनियन की राजनीति को बढ़ावा देने वालों में से हैं। वह क्रोधित होते हुए कहते हैं, ‘उनके बाप का राज है?’ सीटू के प्रेसीडेंट एम. के. पंधे का कहना है, ‘ग्रेटर नोएडा जैसा हादसा फिर कहीं भी हो सकता है। लेकिन हत्या को न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। हालांकि कंपनी के प्रबंधन की ओर से जो कार्रवाई की गई उसके सामाजिक नतीजों को समझा जा सकता है।’ ankur vats
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