Tuesday, October 28, 2008

उपहारों पर भी पड़ी मंदी की मार



दुनियाभर में छाई आर्थिक मंदी से अब उपहार भी नहीं बच पाए हैं। मंदी के कारण व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने दीवाली पर दिए जाने वाले उपहार का बजट कम से कम 25 फीसदी घटा दिया हैपने सदस्यों से बातचीत के बाद वाणिज्य और उद्योग संगठन एसोचैम इस आकलन पर पहुँचा है कि आर्थिक मंदी को देखते हुए औद्योगिक और व्यावसायिक संगठनों ने अपने उपहारों के बजट में पच्चीस फीसदी की कटौती की है। एसोचैम ने यह आकलन अपने सदस्यों से मिले 'फीडबैक' और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के 2007 के उपहारों के बजट के आधार पर किया है।

बजट घटाया : पिछले साल दीवाली पर इन व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने करीब 2000 करोड़ रुपए के उपहार बाँटे थे। संगठन का अनुमान है कि इस साल यह बजट पाँच सौ करोड़ रुपए घटकर केवल 1500 करोड़ रुपए ही रह गया है।
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने बताया व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने इस साल दीवाली पर उपहार देने के लिए जिन वस्तुओं का चयन किया है, उनमें से अधिकतर चीन से आयात की गई हैं, क्योंकि वे काफी सस्ती हैं और उनकी पैकेजिंग भी बढ़िया मानी जाती है।
पिछले साल दीवाली पर इन प्रतिष्ठानों ने सोने-चाँदी के सिक्के, कलाई घड़ी, ब्रीफकेस, पीतल और चाँदी के बर्तन, मोमबत्ती स्टैंड और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि उपहार में बाँटे थे। डीएस रावत ने कहा व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने इस साल इन वस्तुओं को खरीदेने से परहेज किया है, क्योंकि इनके दाम काफी अधिक हैं। इस साल उपहार देने के लिए व्यापारिक घरानों ने प्लास्टिक के सामान, खिलौने और अन्य आकर्षक वस्तुओं की खरीद की है। महँगाई की मार के बीच थोक बाजार में सूखे मेवे की बिक्री में पिछले कुछ दिनों में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है, क्योंकि सूखे मेवे को त्योहारों का अच्छा उपहार माना जाता है। डीएस रावत का मानना है कि कच्चे माल की बढ़ती लागत, गिरती अर्थव्यवस्था और महँगे होते कर्ज ने व्यापारिक घरानों को उपहारों का बजट कम करने के लिए मजबूर किया है। उन्होंने कहा कि अगर यह गिरावट अगले एक-दो महीने और जारी रही तो ये व्यापारिक घराने अपने संसाधनों को रिश्ते मजबूत करने पर खर्च करने से परहेज करेंगे। उपहारों को बजट सबसे अधिक आईटी, बीपीओ, विमानन उद्योग, एफएमसीजी, पर्यटन, रिटेल, इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल और रीयल इस्टेट के घरानों ने कम किया है। ये घराने केवल चुने हुए लोगों को ही उपहार दे रहे हैं, क्योंकि आर्थिक मंदी की मार सबसे अधिक इन्हीं क्षेत्रों पर पड़ी है, जिससे इनकी आमदनी घटी है।

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