Thursday, October 16, 2008

प्रतिबंध की राजनीतिक नौटंकी

विजयादशमी के पावन पर्व पर बजरंग दल ने केन्द्र सरकार को ललकारा- 'हमारे संगठन पर प्रतिबंध लगाने का दुस्साहस न करो, वरना 'गंभीर परिणाम' होंगे। जब तुम सिमी के खिलाफ अदालत में सबूत पेश नहीं कर पाए, तो हमारे विरुद्ध कौन-सा प्रमाण पेश कर सकोगे?' सचमुच बजरंग दल 'हिम्मतवालों' की पार्टी है। दशहरे के दिन ही आगरा में बजरंग दल का भगवा दुपट्टा लपेटे पचासों बजरंगी खुली गाड़ियों में बंदूक और पिस्तौल ताने घूमते रहे और मायावती की बहादुर सरकार ने उनका रास्ता रोकने या हथियारों के लाइसेंस माँगने का साहस नहीं दिखाया।

सवाल यह भी है कि बजरंग दल पर प्रतिबंध से क्या किसी धार्मिक उन्माद को रोका जा सकेगा? कुछ नेता या उनके सलाहकार कुछ हफ्ते अपनी पीठ थपथपा लेंगे, लेकिन घृणा फैलाने वाले तत्वों ने तो अनगिनत नामों से मंडलियाँ बना रखी हैं।

उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश या आंध्र-तमिलनाडु में भी जब राजनीतिक छत्रछाया वाले डाकू राइफलों से हवाई फायर करते या किसी बस्ती अथवा उपासना स्थल को जलाते हुए आगे बढ़ते हैं, तब उन्हें कोई नहीं रोकता। सिमी या ऐसे ही नए-पुराने नाम वाले संगठनों से जुड़े कुछ लोग सैकड़ों वर्षों से शांतिप्रिय रहे मेरे अपने मालवा क्षेत्र (उज्जैन-रतलाम-इंदौर) में महीनों तक छिपकर षड्यंत्र रचते रहे, लेकिन चार साल पहले किसी भी चौकस पुलिस अधिकारी ने समय रहते उन्हें गिरफ्तार कर दंडित नहीं करवाया।
दशहरे के दिन मुंबई में बाल ठाकरे परिवार के दो खेमों में बँटे परिजनों ने एक बार फिर उत्तर भारतीयों को धमकी दी -'अभी तो ट्रेलर देखा है। मुंबई केवल हमारे बाप-दादाओं की है। इन बाहरी दो करोड़ लोगों को झुककर, दबकर रहना होगा, वरना...।' इसी तर्ज पर कश्मीर घाटी में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी धमका रहे हैं-'कश्मीर सिर्फ हमारा है, दिल्लीवालों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।'
इस खबर के लिए अखबार को छपने से कितनी देर रात तक रोका जाए।' मैंने कुर्सी से उठते हुए उन्हें स्नेहपूर्वक समझाया- 'आप दिनभर काम कर चुके हैं। यदि सपना ही देखना है, तो घर पहुँचकर खाना खाकर आज जल्दी सो जाएँ और यदि जल्दी सोने की आदत नहीं है, तो रावण-दहन की पूर्व संध्या पर पास में ही चल रही रामलीला देख आएँ। सत्ता के गलियारों में चल रही राजनीतिक नौटंकी से कुछ काम की बात नहीं निकलने वाली है।' हमारे साथी घर चले गए। उन्हें अधकचरी नाटकबाजी देखने का कोई उत्साह नहीं था।देर रात समाचार एजेंसियों से यही खबर मिली कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बजरंग दल पर प्रतिबंध के लिए देर रात तक विचार किया और कोई फैसला नहीं हो पाया। मंत्रियों में मत-भिन्नता देखने को मिली। हाँ, उड़ीसा में हुई हिंसक सांप्रदायिक घटनाओं को जानने-समझने के लिए मंत्रियों का एक दल वहाँ जाएगा।
धन्य हैं हमारे देश के राष्ट्रीय स्तर के मंत्री, जिन्हें उड़ीसा में हफ्तों से चल रही हिंसा के कारणों को समझने के लिए स्वयं घटना-स्थल पर जाना पड़ेगा। सक्षम सरकार अपने दोस्त जॉर्ज बुश के दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से उड़ीसा के संबंध में भेजी जा रही रिपोर्टों की प्रतिलिपि ही कृपापूर्वक प्राप्त कर ले, तो अपने मंत्रियों को उड़ीसा जाने का कष्ट ही नहीं उठाना पड़े।
पता नहीं भारत में अमेरिकी गुप्तचर संगठन एफबीआई का दफ्तर होने के बावजूद भारत सरकार के बड़े गुप्तचर उससे कितना तालमेल रख पाते हैं? यहाँ तो एक काडर के रहते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों के आला अफसर समन्वय नहीं रख पाते और हिंसा की अथवा आतंकी घटनाएँ होती रहती हैं।
सवाल यह भी है कि बजरंग दल पर प्रतिबंध से क्या किसी धार्मिक उन्माद को रोका जा सकेगा? कुछ नेता या उनके सलाहकार कुछ हफ्ते अपनी पीठ थपथपा लेंगे, लेकिन घृणा फैलाने वाले तत्वों ने तो अनगिनत नामों से मंडलियाँ बना रखी हैं। तालिबान, जैश-ए-मोहम्मद, सिमी पर देश-दुनिया के प्रतिबंधों के बावजूद हिंसक हमलों में कमी नहीं आई।
इसी तरह बजरंग दल, शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या किसी राजनीतिक दल पर प्रतिबंध के बल पर कोई सरकार शांति स्थापना नहीं कर सकती। बेईमान, भ्रष्ट और अपराधियों के लिए कभी कोई कानून काम नहीं करता।

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