Wednesday, October 22, 2008

साँपों को भी नहीं छोड़ते शिकारी

मैंने हाल ही में समाचार-पत्रों में पढ़ा था कि केंद्र सरकार ने ँपेरों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यदि यह सत्य है तो यह पिछले तीन वर्षों में इस सरकार से मिलने वाली पहली अच्छी खबर है। फिर भी मैं आश्चर्यचकित हूँ कि सरकार पहिए का फिर से आविष्कार कर रही है।
साँप को पकड़ना, उसका उपयोग तथा बिक्री को 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम द्वारा प्रतिबंधित किया गया था। पुलिस घूमने वाले प्रत्येक ँपेरों को इसलिए नहीं पकड़ती, क्योंकि अधिकांश निचले स्तर पर पुलिस वालों को अभी तक इस कानून के बारे में नहीं पता है।
संभवतः कुछ गाँव अभी भी ँपेरों से भरे पड़े हैं। जैसे कि आगरा में सकलपुर, हरियाणा में मेवास, जैसे कई गाँव जिनमें छापा मारकर वहाँ के सारे निवासियों को गिरफ्तार करके 7 वर्ष के लिए जेल में भेज देना चाहिए।
भारत में हम अभी भी वन्यजीव की रक्षा को गंभीरतापूर्वक नहीं लेते हैं। जरा कल्पना कीजिए कि ठगी अथवा राजमार्ग पर डकैती तथा हत्या पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करने के लिए ठगों (वही जो आगरा के आसपास उन्हीं गाँवों में रहते हैं) द्वारा एक बैठक बुलाई गई होती। तब क्या हुआ होता? पुलिस अपराधियों के इकट्ठा होने की प्रतीक्षा करती और फिर उन पर टूट पड़ती। इस बैठक में भी ऐसा ही होना चाहिए था, किंतु खेद है कि ऐसा नहीं हुआ। अब इसके बाद तो तिब्बत में शेर तथा चीते की खाल ले जाने वाले अवैध शिकारियों से यह आशा की जाती है कि वे अपनी यूनियन की एक ऐसी ही बैठक आयोजित करें और इसका विरोध करें कि यदि अवैध शिकार को रोक दिया गया तो तिब्बती नंगे रह जाएँगे।इन अवैध शिकारियों द्वारा आयोजित की गई बैठक में इस पर बल दिया गया कि वे लोग संकटापन्न प्रजातियों को कभी हाथ नहीं लगाएँगे और पकड़े गए साँपों को वार्षिक प्रजनन काल के प्रारंभ में वापस जंगलों में छोड़ देंगे।
नियमित रूप से पशु हत्या के अपराधियों का पता लगाने तथा उन्हें गिरफ्तार करने वाले हजारों व्यक्तियों के एक नेटवर्क की अध्यक्ष के रूप में मैं जानती हूँ कि ये दोनों बातें ही पूर्णतः असत्य हैं। हमने दिल्ली में ही सैकड़ों किंग कोबरा तथा अन्य गंभीर रूप से संकटापन्न प्रजातियों को पकड़ा है। हमने पिछली बार 27 कोबरा की एक खेप को पकड़ा था, जिन्हें राजस्थान के मदारियों के एक परिवार द्वारा शहर में साँप के खेल दिखाने वालों को बेचने के लिए लाया जा रहा था। वे सभी एक ही थैले में थे और उनमें से सभी बुरी तरह से चोटिल थे। उनमें से आधे कुछ ही दिनों में मर गए थे। उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जा चुका है, परंतु वह परिवार संभवतः गायब हो गया है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि वे शहर के किसी अन्य भाग में और साँपों को बेचेंगे। साँप के संकटापन्न होने का कारण ऐसे साँप के उपयोग करने वाले हैं। कल्पना कीजिए कि यदि उनकी संख्या केवल 5 हजार ही हो। पिछले कई वर्षों से प्रत्येक 6 सप्ताह में 5 हजार कोबरा (सामान्यतः इसके फन के कारण ँपेरे इसके पीछे पड़ते हैं) की हत्या की जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी हत्या की जाती है। किसी भी साँप को प्रजनन के लिए वापस जंगल में नहीं छोड़ा गया है। अधिकांश मदारी स्वयं साँप को नहीं पकड़ते हैं और उन्हें पता भी नहीं होता कि ऐसा कैसे किया जाता है। वे अपने स्टॉक के लिए अवैध शिकारियों की एक श्रृंखला पर निर्भर करते हैं। इसलिए उन्हें पता भी नहीं होता कि उनका साँप कहाँ से आया होगा। दूसरा, चूँकि किंग कोबरा के दाँतों में विष होता है, इसलिए अवैध शिकारी सबसे पहले एक हथौड़े से उसके दाँतों को तोड़ देते हैं।
कोबरा के विष वाले दाँत उसके कैनाइन दाँत होते हैं। कल्पना कीजिए कि आपके कैनाइन को हथौड़ी मारकर तोड़ा जाए। इस प्रक्रिया में कई साँपों के जबड़े टूट जाते हैं। इसमें दर्द काफी अधिक होता है और तोड़े जाने से होने वाला संक्रमण पूरे जबड़े में फैल जाता है, ठीक वैसे ही जैसा कि यह मानव में होता है। एक बार ये दाँत निकाल दिए जाने के पश्चात साँप खा नहीं सकते। इन दाँतों का मुख्य उद्देश्य लोगों को काटना नहीं है। ये भोजन को पचाने के लिए होते हैं। विष एक एन्जाइम है जो भोजन को सोखता है ताकि साँप का शरीर उसे पचा सके। ये दाँत न होने पर भोजन को पचाया नहीं जा सकता। यदि साँप को भोजन करना भी हो तो वह ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि उसका जबड़ा संक्रमित तथा टूटा हुआ है और भोजन उसके शरीर में बिना टूटे हुए चला जाएगा तथा कवच और अन्य रोग उत्पन्न करेगा। अवैध शिकारियों द्वारा दावा किए अनुसार उसके प्रजनन काल के दौरान उसे जंगल में ही वापस छोड़ दिए जाने पर भी उसकी मृत्यु हो जाएगी, क्योंकि वह भोजन नहीं कर सकता, वह प्रजनन नहीं कर सकता और जिस जंगल में उसे छोड़ा गया है वह उससे अपरिचित होता है। साँप कुछ दिन तक बिना भोजन किए रह सकता है। वह पतला तथा कमजोर होता जाता है। इसके साथ ही उसे गोल-गोल घुमाकर लपेटने की अमानवीय क्रूरता और एक ऐसी सिल्लियों से बनी सीधी टोकरी में रखना जिसकी खुली तीलियाँ उसे हमेशा चुभती रहें।
साँप एक लंबा रेंगने वाला प्राणी है। इसे निश्चित रूप से दिन में 20 घंटे के लिए जबरदस्ती मोड़कर रखे जाने की आदत नहीं होती।
अपने को उसकी स्थिति में रखकर देखिए और कल्पना कीजिए कि यदि आपके साथ ऐसा होता तो। इसकी त्वचा नरम तथा संवेदनशील होती है। इसमें आसानी से छेद हो जाते हैं। वस्तुत: आपके नाखून बढ़े हुए हों और आप किसी साँप को पकड़ लें तो आप आसानी से उसे इस प्रकार जख्मी कर सकते हैं कि उसकी मृत्यु हो जाए। न केवल ँपेरों के नाखून लंबे तथा गंदे और उनके हाथ सख्त होते हैं, बल्कि जिस टोकरी में उन्हें रखा जाता है वह भी साँप की त्वचा के लिए बहुत खतरनाक होती है। कोई भी साँप एक माह से अधिक जीवित नहीं रहता। फिर भूखा, सही प्रकार से नहीं रखे जाने, टूटे हुए जबड़े, जबड़े के संक्रमण, जबरदस्ती लपेटे जाने से पसलियों के टूटने से उसकी मृत्यु हो जाती है। वह फिर कभी जंगल में अपना घर नहीं देख पाएगा। चूँकि उसे पाँच सौ रुपए में खरीदा गया था और मदारी ने इससे कई हजार रुपए कमा लिए हैं, इसलिए उसके पास दूसरा साँप खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे हैं। अवैध शिकारियों ने माँग की है कि सरकार एक 'साँप पार्क' की स्थापना करे जिसमें उन सभी को रोजगार मिल सके। यह काम छोड़ चुके जेबकतरों के लिए एक प्रदर्शनी पार्क स्थापित करने के समान होगा ताकि वे जनता को अपने कौशल दिखा सकें। उस पार्क में केवल यही होगा कि इन लोगों को जाकर और अधिक साँप लाने की अनुमति होगी, उसके साथ वे वैसा ही व्यवहार करेंगे और उसे पर्यटकों के सामने दिखाने के लिए सरकार द्वारा उन्हें रुपए दिए जाएँगे। अभी की तरह दर्शकों को ढूँढने के लिए गलियों में घूमने के बजाय वे आसानी से काम करेंगे, सरकारी वेतन तथा सरकारी मकान लेंगे और अपने दर्शकों के आने की प्रतीक्षा करेंगे। उसमें ही साँपों को पहले जैसे ही तरीके से मारा जाएगा।
यदि वे आगे क्या करें इसके बारे में इतने चिंतित हैं तो मैं यह सुझाव देती हूँ कि उनकी सारी चिंताओं को दूर करने के लिए उन्हें तिहाड़ जेल अथवा आगरा की जेल में सरकारी मेहमान के रूप में रखकर कालीन बनाने के लिए कुछ पैसे दिए जा सकते हैं।
आगरा के एक लेखक ने इस पर दुःख व्यक्त किया है कि बीन लुप्त हो जाएगी। ये बिलकुल बकवास है। बीन एक संगीत वाद्य के रूप में ऐसे किसी भी व्यक्ति को सिखाई जा सकती है जो इसे सीखना चाहे। ऐसा नहीं है कि यह वाद्य यंत्र सिर्फ किसी पशु के साथ ही अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, जैसे कि सितार सिर्फ देवी सरस्वती के साथ ही नहीं जुड़ी हुई है।वहीं लेखक लिखता है कि मदारी सरकार के लिए उपयोगी हो सकते हैं, क्योंकि वे साँपों से विष को निकालकर साँप के विष वाले संस्थानों को विष की आपूर्ति कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश यह भी असत्य है, क्योंकि उन्हें साँप के विष वाले दाँतों में से विष निकालना आता तो वे उन्हें हथौड़े से नहीं तोड़ते। मैंने अभी तक कई हजारों साँपों को पकड़ा होगा, जिनमें से सभी के जबड़े टूटे हुए थे। ँपेरा शब्द इस विनाशक व्यापार को काफी लंबे समय तक किए जाने के लिए उत्तरदायी है। कोई भी साँप को मोहित नहीं कर सकता। वे बहरे होते हैं और उनको दिखाई भी कम ही देता है। वे इसलिए झूमते हैं क्योंकि वे एक ऐसी डंडी जो कि बीन होती है, के किनारे को देख सकते हैं जो खतरनाक तरीकों से उनकी ओर आ रही होती है और वे उसके प्रहार से बचना चाहते हैं। जो लोग साँपों को पकड़कर थैले में डालते हैं, उन्हें उनके सही नाम से बुलाया जाना चाहिए, जैसे साँप का उपयोग करने वाले अथवा अवैध शिकारी या भगवान विष्णु के सबसे प्रिय नागदेवता, शेषनाग के हत्यारे। manka

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