Friday, October 31, 2008

पति से रोज पिटती हैं चालीस फीसदी महिलाएँ

घरेलू हिंसा के मामले में अव्वल है बिहार
बिहार के पति खुद को घर का शेर समझते हैं, इसलिए किसी न किसी बहाने अपनी पत्नियों पर वे सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा करते हैं। दूसरी तरफ ऐसे अत्याचारी पतियों के खिलाफ हिम्मत जुटाकर कानून का हंटर चलाने में छत्तीसगढ़ की महिलाएँ सबसे आगे हैं। तीसाल में घरेलू हिंसा कानून के तहत पति के हाथों पिटने वाली छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने पतियों के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई हैं।
2007 में जारी तीसरे राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के मुताबिक देश की 40 फीसदी महिलाएँ किसी न किसी बहाने रोज ही अपने पतियों से पिटती हैं। शिक्षित महिलाओं पर जहाँ 12 फीसदी घरेलू हिंसा होती है, वहीं अशिक्षितों पर 59 फीसदी। इस मामले में बिहार सबसे आगे है, पर अत्याचारी पतियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और मामला दर्ज कराने में छत्तीसगढ़ की महिलाएँ ज्यादा सजग हैं।
नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड के मुताबिक 2005 में पूरे देश में घरेलू हिंसा कानून के तहत 1497 मामले दर्ज किए गए। इसमें अकेले छत्तीसगढ़ से 1390 मामले हैं। 1996 आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुए और 184 के खिलाफ दोष सिद्घ हुए। 2076 लोगों को गिरफ्तार किया गया। घरेलू हिंसा के तहत मामले दर्ज कराने में छत्तीसगढ़ के बाद चंडीगढ़ की महिलाएँ सामने आई हैं। चंडीगढ़ में 2005 में 75 मामले दर्ज किए गए और 56 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किए गए। 148 लोगों पर इस कानून की गाज गिरी और वे गिरफ्तार हुए। वर्ष 2006 में भी छत्तीसगढ़ से ही सबसे ज्यादा मामले सामने आए। देशभर से 1736 मामले दर्ज हुए, जिसमें छत्तीसगढ़ की संख्या 1421 है। इनमें 1214 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुआ तो 2028 लोगों की गिरफ्तारी हुई। गुजरात से घरेलू हिंसा के 150, पंजाब से 17 और उत्तरप्रदेश से 13 मामले सामने आए। वर्ष 2007 में घरेलू हिंसा के 2921 मामले दर्ज हुए। इसमें छत्तीसगढ़ से 1651 मामले दर्ज हुए।
इनमें 1249 आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुए और 2206 पर कार्रवाई हुई। इस साल गुजरात में भी मामलों की संख्या बढ़ गई और 883 मामले दर्ज किए गए, वहीं महाराष्ट्र से 117, राजस्थान से 25 व यूपी से 25 मामले सामने आए। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, मेघालय और मिजोरम के रिकॉर्ड दर्ज नहीं है। घरेलू हिंसा कानून 26 अक्टूबर 2006 को प्रभाव में आया था, पर इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए उड़ीसा, राजस्थान, पंजाब, झारखंड व कर्नाटक ने संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की है।

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