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दूसरी ओर रुपए की कीमत में गिरावट से आयात महँगा हो गया है। इससे व्यापार घाटा तेजी से बढ़ा है। ताजा आँकड़ों के मुताबिक चालू साल के पहले पाँच महीनों में व्यापार घाटा 42 प्रतिशत बढ़कर 49 अरब डालर तक पहुँच गया। यही नहीं, इस साल की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा 10.72 अरब डालर तक पहुँच गया है जो जीडीपी का 3.6 प्रतिशत बैठता है। चालू खाते का बढ़ता घाटा अर्थव्यवस्था के प्रबंधकों के लिए एक नया सिरदर्द है और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने भी इसे लेकर गहरी चिंता जताई है। अर्थव्यवस्था को लेकर सबसे बड़ी चिंता यह पैदा हो रही है कि कहीं वह स्टैगफ्लेशन की गिरफ्त में तो नहीं आ रही ? स्टैगफ्लेशन की स्थिति तब पैदा होती है जब एक ओर अर्थव्यवस्था की विकास दर गिर रही हो और दूसरी ओर मुद्रास्फीति की दर बढ़ रही हो या ऊँचाई पर बनी हुई हो। हालाँकि इस मुद्दे पर अर्थशास्त्रियों में मतभेद है लेकिन अर्थव्यवस्था उस जैसी स्थिति में ही फँसती दिख रही है। अगर किसी चमत्कार ने नहीं बचाया तो एक बार स्टैगफ्लेशन की गिरफ्त में फँसने के बाद अर्थव्यवस्था का उससे बाहर निकलना न सिर्फ बहुत मुश्किल हो जाता है बल्कि आम लोगों के लिए वह प्रक्रिया बहुत तकलीफदेह हो जाती है। साफ है कि आर्थिक संकट की सुरसा ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया है। लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या मनमोहन सिंह इस सुरसा से निपटने के लिए हनुमान प्रयास करेंगे? अफसोस, हनुमान प्रयास तो नहीं यूपीए सरकार ऊँट की तरह रेत में सिर छिपाकर हनुमान चालीसा जरूर पढ़ती दिख रही है। लेकिन क्या इससे संकट टल जाएगा ? ankur vats
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