अगर आप यह सोचते हैं कि बच्चे सिर्फ खर्च करना जानते हैं तो आप गलत हैं, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि अधिकतर बच्चों में बचत की प्रवृत्ति शुरू से पाई जाती है और जिनमें यह आदत नहीं होती उनके माता-पिता उन्हें यह सिखा देते हैं। बच्चों में गुल्लक के जरिये बचे हुए पैसे इकट्ठे करने की आदत होती है। उनकी इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा देने के लिए दो नवंबर को पिगी बैंक डे मनाया जाता है। बेसहारा बच्चों के लिए कार्यरत गैर सरकारी संगठन 'स्माइल फाउंडेशन' के वरिष्ठ प्रबंधक संदीप नायक ने कहा कि हमने पाँच से 11 वर्ष के छोटे बच्चों और फिर 12 से 20 वर्ष तक के किशोरवय के बच्चों के लिए कई प्रोजेक्ट चलाए हैं। इसके तहत हम उन्हें बुनियादी शिक्षा देते हैं जिसमें बचत के लिए उन्हें प्रवृत्त करना शामिल है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न अध्ययनों में हमारा निष्कर्ष यही रहा है कि अधिकतर बच्चों में बचत की प्रवृत्ति शुरू से होती है। बेसहारा और गरीब बच्चों में यह आदत विशेष तौर पर इसलिए पाई जाती है क्योंकि वे विपरीत परिस्थितियों में जीते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल की पाँचवीं कक्षा में अध्ययनरत अर्णव मिश्रा भी बचत करते हैं। वह कहते हैं मैं माता-पिता से जेब खर्च नहीं लेता लेकिन जब कभी बड़ों से त्योहारों पर कुछ रुपए मिलते हैं तो उन्हें खर्च नहीं करता और अभिभावकों के ही हवाले कर देता हूँ, ताकि जरूरत के समय के लिए यह बचत मेरे काम आए। अर्णव ने कहा कि स्कूलों में जब कभी शिक्षकों से अनौपचारिक चर्चा होती है, वे अकसर बचत पर जोर देते हैं। अध्यापक हमें बताते हैं कि रुपए लापरवाही से खर्च नहीं करना चाहिए बल्कि अचानक पड़ने वाली जरूरत के लिए उन्हें बचाकर रखना चाहिए। राजधानी स्थित चाइल्ड केयर डेवलपमेंट फाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक दीपिका शर्मा ने कहा कि कुछ बच्चों में बचत की प्रवृत्ति होती है, लेकिन इसे विकसित करने में उनके माता-पिता की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। कई बार बड़ी बचत के बाद बच्चे उसे खर्च करना चाहते हैं, क्योंकि छोटी उम्र में उन्हें नई चीजें जानने की जिज्ञासा होती है। पिगी बैंक का इतिहास शब्द पिगी से जुड़ा है। मध्यकाल में यूरोप में पिगी एक तरह की मिट्टी होती थी जिससे रसोई के पात्र बनाए जाते थे। बाद में लोग इन पात्रों में बचत का धन रखने लगे और इसे पिगी बैंक के नाम से पहचाना जाने लगा। वर्तमान में वॉशिंगटन के सिएटल स्थित पाइक प्लेस बाजार में 600 पाउंड वजनी पिगी बैंक है जिसे कलाकार जार्जिया गेरबर ने बनाया है। इसे वहाँ दान के लिए रखा गया है और इससे सालाना नौ हजार अमेरिकी डॉलर की राशि एकत्रित की जाती है। इसका इस्तेमाल वहाँ का व्यावसायिक संगठन सामाजिक कार्यों के लिए करता है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न अध्ययनों में हमारा निष्कर्ष यही रहा है कि अधिकतर बच्चों में बचत की प्रवृत्ति शुरू से होती है। बेसहारा और गरीब बच्चों में यह आदत विशेष तौर पर इसलिए पाई जाती है क्योंकि वे विपरीत परिस्थितियों में जीते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल की पाँचवीं कक्षा में अध्ययनरत अर्णव मिश्रा भी बचत करते हैं। वह कहते हैं मैं माता-पिता से जेब खर्च नहीं लेता लेकिन जब कभी बड़ों से त्योहारों पर कुछ रुपए मिलते हैं तो उन्हें खर्च नहीं करता और अभिभावकों के ही हवाले कर देता हूँ, ताकि जरूरत के समय के लिए यह बचत मेरे काम आए। अर्णव ने कहा कि स्कूलों में जब कभी शिक्षकों से अनौपचारिक चर्चा होती है, वे अकसर बचत पर जोर देते हैं। अध्यापक हमें बताते हैं कि रुपए लापरवाही से खर्च नहीं करना चाहिए बल्कि अचानक पड़ने वाली जरूरत के लिए उन्हें बचाकर रखना चाहिए। राजधानी स्थित चाइल्ड केयर डेवलपमेंट फाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक दीपिका शर्मा ने कहा कि कुछ बच्चों में बचत की प्रवृत्ति होती है, लेकिन इसे विकसित करने में उनके माता-पिता की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। कई बार बड़ी बचत के बाद बच्चे उसे खर्च करना चाहते हैं, क्योंकि छोटी उम्र में उन्हें नई चीजें जानने की जिज्ञासा होती है। पिगी बैंक का इतिहास शब्द पिगी से जुड़ा है। मध्यकाल में यूरोप में पिगी एक तरह की मिट्टी होती थी जिससे रसोई के पात्र बनाए जाते थे। बाद में लोग इन पात्रों में बचत का धन रखने लगे और इसे पिगी बैंक के नाम से पहचाना जाने लगा। वर्तमान में वॉशिंगटन के सिएटल स्थित पाइक प्लेस बाजार में 600 पाउंड वजनी पिगी बैंक है जिसे कलाकार जार्जिया गेरबर ने बनाया है। इसे वहाँ दान के लिए रखा गया है और इससे सालाना नौ हजार अमेरिकी डॉलर की राशि एकत्रित की जाती है। इसका इस्तेमाल वहाँ का व्यावसायिक संगठन सामाजिक कार्यों के लिए करता है।
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