Wednesday, November 26, 2008
नशे का गढ़ है अफगानिस्तान
आधुनिकता की दौड़ में अफगानिस्तान की अपनी एक अलग दास्तां है। कहने को तो यहां तालिबान की सत्ता खत्म हो गई है लेकिन अभी भी कई मोर्चो पर फौजें विद्रोहियों से जूझ रही हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मानें तो तबाही के आलम में जीता यह मुल्क दुनिया भर में 90 फीसदी हेरोइन की तस्करी कर सालाना 200 अरब डालर की उगाही कर रहा है।2001 में अमेरिकी फौजों के अफगानिस्तान में पहुंचने के बाद से ड्रग के इस कारोबार में 33 गुना [हर साल 8,250 मीट्रिक टन] की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि पिछले सात सालों में अमेरिका अफगानिस्तान की सुरक्षा पर 177 अरब डालर खर्च कर चुका है। सीआईए का कहना है कि अमेरिकी अगुवाई वाले बहुराष्ट्रीय सेना की लाख कोशिश के बाद भी अफगानिस्तान में ड्रग का धंधा धीमा पड़ने का नाम नहीं ले रहा है। बल्कि यह कारोबार रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। जानकारों का कहना है कि नशे का यह कारोबार दरअसल अमेरिका की ही देन है।वियतनाम युद्ध के समय से ही अफगानिस्तान दुनिया भर में हेरोइन का एक बड़ा भाग सप्लाई करने लगा था। 1975 में इस युद्ध के खत्म होने के बाद सोवियत यूनियन ने अफगानिस्तान में पैर पसारने शुरू किए। इसे देखते हुए सीआईए ने रूसियों को खदेड़ने के लिए अफगानी मुजाहिदीनों को सहायता दी। उन्हें हेरोइन के जरिए फंड जुटाने की छूट दी। इस विषय के जानकार अल्फ्रेड मेकाय के अनुसार 'सोवियत संघ को खदेड़ने के लिए सीआईए की अफगानिस्तान में चलाई गई गतिविधियों के कारण ही पाकिस्तान-अफगान सीमा वाला क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा हेरोइन उत्पादक क्षेत्र बन गया और उसका वैश्विक तंत्र मजबूत हो गया।
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