
कांग्रेस का मानना है कि ओबामा आम भारतीयों की पसंद के रूप में उभरे हैं। लेकिन भारतीय प्रशासन के दिल के शायद उतने करीब नहीं हैं। इसकी वजह डेमोक्रेट प्रशासन की हस्तक्षेप करने की पुरानी नीति मानी जा रही है। बिल क्लिंटन के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन ने कोसोवो, हैती और कांगो सहित कई देशों में दखल देने की नीति अपनाई। हालांकि बुश प्रशासन ने अफगानिस्तान और इराक में सीधा हस्तक्षेप किया, लेकिन कांग्रेस इसे अमेरिका के आतंकवाद का शिकार होने के पहले प्रत्यक्ष अनुभव का नतीजा मानती है।राजनीतिक दल इस राय से भी सहमत हैं कि रिपब्लिकन प्रशासन परंपरागत तौर पर चीन को रोकने की नीति अपनाता रहा है। जार्ज बुश ने भी भारत को इसीलिए ज्यादा अहमियत दी। लेकिन डेमोक्रेट चीन को रोकने के बजाय उसके साथ आपसी समझ-बूझ बढ़ाने की नीति पर चलते रहे हैं। कांग्रेस इस मामले में भी ओबामा प्रशासन की नीति पर सजग रहने की पक्षधर है। खास कर 1998 के क्लिंटन और तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन के गुप्त समझौते की बात को लेकर, जिसमें दोनों ने दक्षिण एशिया को संयुक्त रूप से प्रशासित करने की राय जाहिर की थी।सीटीबीटी के लिए ओबामा प्रशासन दबाव बढ़ा सकता है, कांग्रेस और भाजपा इस पर भी एक मत हैं। मुख्य विरोधी दल भाजपा नौकरियों की आउटसोर्सिग पर ओबामा की नीति को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित है। उसका मानना है कि ओबामा कर ढांचे को कठोर बना भारतीयों की नौकरियों के लिए चुनौती पैदा कर सकते हैं।वाम दलों की राय में भी अमेरिका की बुनियादी नीति में ओबामा शायद ही कोई बदलाव करें। इसीलिए वामपंथी भी अमेरिका को लेकर अपनी नीति नहीं बदलेंगे और देखो तथा इंतजार की नीति अपनाएंगे।
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