Sunday, November 2, 2008

जमानत जघन्य अपराधों में सोच-विचारकर

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हत्या, डकैती और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में जमानत स्वीकार करने से पहले अदालतों को आरोपी के खिलाफ अभियोजन और साक्ष्यों की प्रकृति का अध्ययन करना चाहिए। शीर्ष अदालत के अनुसार सत्र और उच्च न्यायालयों को अभियोजन की प्रकृति दंड की गंभीरता और सहायक साक्ष्यों की प्रकृति का अध्ययन करने के बाद ही जमानत स्वीकार करना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि जमानत स्वीकार करने से पहले अदालतों को यह मूल्यांकन कर लेना चाहिए कि कहीं किसी अभियुक्त द्वारा सबूतों से छेड़छाड़ करने या शिकायतकर्ता को धमकाए जाने की उचित आशंका तो नहीं है। न्यायाधीश अरिजीत पसायत और न्यायाधीश सीके ठक्कर की पीठ ने उत्तरप्रदेश के लखनऊ जिले में आशियाना पुलिस स्टेशन के अंतर्गत सुपारी लेकर एक व्यक्ति की हत्या करने के आरोपी की जमानत रद्द करते हुए किसी अभियुक्त को जमानत देने के लिए मानकों पर जोर दिया।
आरोप था कि अभियुक्त ने चंद्रपालसिंह की हत्या के लिए 10 लाख रुपए की सुपारी ली थी। 21 सितंबर 2006 को चंद्रपालसिंह की हत्या कर दी गई थी। सत्र अदालत ने हालाँकि अभियुक्त का जमानत आग्रह खारिज कर दिया था, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभियोजन के दावे के विपरीत कुछ निश्चित चीजों के आधार पर जमानत स्वीकार कर ली थी। उच्च न्यायालय के जमानत देने के फैसले से नाराज मृतक के परिजनों ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर आरोपी की जमानत रद्द करने की माँग की। परिजनों ने अपने वकील के माध्यम से शिकायत की कि उच्च न्यायालय ने एक तरह से आरोपी को बरी करने का फैसला लिख दिया है। पीड़ित परिवार की बातों से सहमति जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने आरोपी की जमानत रद्द कर दी।

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