Saturday, November 29, 2008

राजनीतिक दखल न होने से हुई आसानी

मुम्बई में आतंकवादियों के खिलाफ करीब 58 घंटे के बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन के बाद सैन्य बलों के अधिकारियों के चेहरे पर संतोष और सफलता की गौरवशाली मुस्कान थी।
सैन्य सूत्रों ने ऑपरेशन साइक्लोन की सफलता के चार प्रमुख बिंदुओं का जिक्र करते हुए कहा कि सबसे अहम बात यह रही कि पूरी कार्रवाई के दौरान राजनीतिक नेतृत्व ने कम से कम दखल देने का अपना वादा निभाया और सुरक्षा बलों को खुले हाथ से सूझबूझ भरे निर्णय लेने का मौका दिया। सूत्रों ने कहा ऑपरेशन शुरू होने के पहले घंटों में ही इस बात का अहसास हो गया था कि कार्रवाई लम्बी चल सकती है, क्योंकि नौसेना के मार्कोस कमांडो ने शुरुआती पलों में ही अंदाजा लगा लिया था कि आतंकवादी न सिर्फ बेहद जोश के साथ मैदान में आए हैं, बल्कि वे अत्यंत पेशेवर अंदाज में तैयार किए गए हैं। यह भी स्पष्ट हो गया था कि उनके पास लड़ने के लिए भारी असलाह है और उनमें लम्बे समय तक टिके रहने का माद्दा है।
सूत्रों के अनुसार इस स्थिति को भाँपते ही तीनों सैन्य बलों और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के अधिकारियों ने एक एकीकृत आपात नियंत्रण कक्ष कायम कर लिया था और राजनीति नेतृत्व को विनम्रतापूर्वक बता दिया गया था कि उनकी कार्रवाई में जितना कम हस्तक्षेप होगा, उतना ही ऑपरेशन अधिक कामयाब होगा। समझा जाता है कि केंद्रीय नेतृत्व से सैन्य बलों को अपना काम करने की पूरी छूट दिए जाने का आश्वासन दिया गया और 'जीरो दखल' के वादे को अंतिम समय तक निभाया गया।
आतंकियों को चुकाना होगी कीमत-प्रियंका
मुम्बई हमलों के दोषियों को अपने गुनाहों की कीमत चुकाना होगी। हर भारतीय को आतंकवाद से लड़ने का संकल्प लेना चाहिए। यह बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की बेटी प्रियंका वढेरा ने कही। दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए लोधी एस्टेट कार्यालय पर मतदान करने आईं श्रीमती वढेरा ने कहा हम सब बहुत मजबूत हैं और एक राष्ट्र के रूप में हम और ज्यादा मजबूत हैं। मुम्बई में आतंकवादियों से संघर्ष में शहीद हुए पुलिस अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के बारे में उन्होंने कहा मैं दिल से उनके परिवारों के साथ हूँ। आतंकवाद के कारण मैंने भी किसी को खोया है और मैं जानती हूँ कि यह कितना दर्दनाक होता है।
जरा याद करो कुर्बानी...
एक बार फिर देश की अस्मिता बचाने के लिए भारत माता के वीर सपूतों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। मुंबई पर हुए देश के सबसे बड़े आतंकवादी हमले का मुकाबला करते हुए 15 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी वीरगति को प्राप्त हुए।


एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, एसीपी अशोक काम्टे, सीनियर इंस्पेक्टर विजय सालस्कर, राजकीय रेलवे पुलिस में इंस्पेक्टर शशांक शिंदे, रेलवे सुरक्षा बल के प्रधान आरक्षक एमएल चौधरी, इंस्पेक्टर एआर चितले, उपनिरीक्षक प्रकाश मोरे एवं बाबू साहब दुरगुडे, एएसआई नानासाहेब भोंसले एवं वी। अबोले, आरक्षक विजय खांडेकर, जयवंत पाटिल एवं योगेश पाटिल जैसे जाँबाजों ने कर्त्तव्य परायणता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राष्‍ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इनके अतिरिक्त एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, हवलदार चंदर और हवलदार गजेन्द्रसिंह अलग-अलग जगह आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए। साथ ही हमें उन लोगों को भी नही भूलना चाहिए जिनकी इन हमलों में मौत हुई है। 'करेज अंडर फॉयर' का सच्चा उदाहरण होटल ताज तथा ओबेरॉय के कर्मियों ने दिखाया है। भारी गोलाबारी के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना इन होटलकर्मियों ने सैकड़ों लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। इस दुःखद घटना में अन्य लोगों के साथ बहुत से कर्मचारी भी मारे गए हैं।

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