आज जब पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण तथा पर्यावरण संरक्षण की समस्या से जूझ रहा है, सूर्य की उपासना का महापर्व छठ का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के अक्षय स्रोत सूर्य की पूजा और उन्हें अप्रसंस्कृत वस्तुओं का भोग लगाया जाना पर्यावरण के प्रति इस पर्व के महत्व को रेखांकित करता है। सोनपुर के गजेन्द्र मोक्ष नौलख्खा मंदिर महंत आचार्य लक्ष्मणानंद शास्त्री के अनुसार पर्यावरण संरक्षण और छठ पूजा के बीच गहरा संबंध है। छठ पूजा में प्रसाद के रूप में नई फसलों का उपयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा गन्ना, सिंघाड़ा, नींबू, हल्दी, अदरख, नारियल, केला, संतरा, सेब के अलावा आटा चीनी एवं घी के मिश्रण से बनी ठेकुआँ जैसी वस्तुएँ प्रकृति के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के इस पर्व के महत्व को स्पष्ट करती हैं। शास्त्री ने कहा छठ पूजा में मिट्टी के बने हाथी चढ़ाए जाते हैं, जो इस पर्व के माध्यम से प्रकृति प्रदत्त इस अद्भुत जीव के संरक्षण का संदेश देती है। मिट्टी के बने हाथी को नई तैयार धान की फसल चढ़ाई जाती है।सूर्य की उपासना के महापर्व छठ की शुरुआत 'नहा खा' से होती है। इस दिन व्रती नदी के स्वच्छ जल में स्नान करने के बाद मिट्टी के बने चूल्हे में आम की सूखी लकड़ी जला कर पारंपरिक रूप से सात्विक शाकाहारी भोजन तैयार करते हैं और भगवान सूर्य की पूजा के बाद इसे ग्रहण करते हैं। खरना के दिन शाम को सूर्य की पूजा के बाद प्रसाद खाकर व्रती 36 घंटे के उपवास की शुरुआत करते हैं।
छठपूजा मुख्य रूप से महिलाएँ करती हैं, लेकिन काफी संख्या में पुरुष भी इन दिनों उपवास रखते हैं। परना को सुबह के अर्घ्य के साथ छठ पूजा सम्पन्न हो जाती है। शास्त्री ने कहा छठ एक अद्भुत पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य की उपासना के साथ पूजा की शुरुआत की जाती है। उन्होंने कहा छठ छह अंक का प्रतीक है, जिसका भारतीय धार्मिक पंचांग में काफी महत्व है। छठ व्रती रेखा देवी ने बताया छठ पूजा में स्वच्छता का काफी ख्याल रखा जाता है। मिट्टी के चूल्हे और आम की सूखी लकड़ी का उपयोग पूजा के जरिये स्वच्छता के महत्व को स्पष्ट करते हैं। इस दिन मिट्टी के चूल्हे की कीमत तो 100 से 150 रुपए तक पहुँच जाती है। यही हाल लौकी जैसी कुछ खास सब्जियों को होता है। उन्होंने बताया प्रसाद रखने के लिए बाँस की बनी टोकरी की खरीद भी लोग शुरू कर देते हैं और इन दिनों इसकी कीमतें आसमान छूती दिखाई देती हैं।
उन्होंने कहा गन्ना, सिंघाड़ा, नींबू, हल्दी, अदरख, नारियल, केला, संतरा, सेब के अलावा आटा चीनी एवं घी के मिश्रण से बनी ठेकुआँ जैसी वस्तुएँ प्रकृति के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के इस पर्व के महत्व को स्पष्ट करती हैं। शास्त्री ने कहा छठ पूजा में मिट्टी के बने हाथी चढ़ाए जाते हैं, जो इस पर्व के माध्यम से प्रकृति प्रदत्त इस अद्भुत जीव के संरक्षण का संदेश देती है। मिट्टी के बने हाथी को नई तैयार धान की फसल चढ़ाई जाती है।सूर्य की उपासना के महापर्व छठ की शुरुआत 'नहा खा' से होती है। इस दिन व्रती नदी के स्वच्छ जल में स्नान करने के बाद मिट्टी के बने चूल्हे में आम की सूखी लकड़ी जला कर पारंपरिक रूप से सात्विक शाकाहारी भोजन तैयार करते हैं और भगवान सूर्य की पूजा के बाद इसे ग्रहण करते हैं। खरना के दिन शाम को सूर्य की पूजा के बाद प्रसाद खाकर व्रती 36 घंटे के उपवास की शुरुआत करते हैं।
छठपूजा मुख्य रूप से महिलाएँ करती हैं, लेकिन काफी संख्या में पुरुष भी इन दिनों उपवास रखते हैं। परना को सुबह के अर्घ्य के साथ छठ पूजा सम्पन्न हो जाती है। शास्त्री ने कहा छठ एक अद्भुत पर्व है, जिसमें डूबते हुए सूर्य की उपासना के साथ पूजा की शुरुआत की जाती है। उन्होंने कहा छठ छह अंक का प्रतीक है, जिसका भारतीय धार्मिक पंचांग में काफी महत्व है। छठ व्रती रेखा देवी ने बताया छठ पूजा में स्वच्छता का काफी ख्याल रखा जाता है। मिट्टी के चूल्हे और आम की सूखी लकड़ी का उपयोग पूजा के जरिये स्वच्छता के महत्व को स्पष्ट करते हैं। इस दिन मिट्टी के चूल्हे की कीमत तो 100 से 150 रुपए तक पहुँच जाती है। यही हाल लौकी जैसी कुछ खास सब्जियों को होता है। उन्होंने बताया प्रसाद रखने के लिए बाँस की बनी टोकरी की खरीद भी लोग शुरू कर देते हैं और इन दिनों इसकी कीमतें आसमान छूती दिखाई देती हैं।
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