Wednesday, September 10, 2008

महाप्रयोग का पहला चरण सफल, वैज्ञानिक झूमे

सृष्टि के विनाश के बारे में प्रलय प्रेमियों की ओर से फैलाई जा रही तमाम आशंकाओं को झुठलाते हुए वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए हो रहे अब तक के सबसे बड़े भौतिक प्रयोग के शुरुआती चरण को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया।यहां स्थित यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फार न्यूक्लियर रिसर्च [सीईआरएन] की प्रयोगशाला के नियंत्रण कक्ष में उस समय उल्लास का माहौल छा गया और तालियां गूंज उठी जब कंप्यूटर स्क्रीन पर दो बिंदु उभर आए। इन बिंदुओं का उभरना इस बात का संकेत था कि इस महाप्रयोग के पहले चरण के तौर पर आज भारतीय समयानुसार एक बजे धरती से 330 फीट नीचे महाकाय मशीन लार्ज हेड्रान कोलाइडर के 27 किलोमीटर के घेरे में छोडे़ गए प्रोटोन पुंज ने अपना पहला चक्कर पूरा कर लिया है। इस प्रोटोन पुंज के एक चक्कर पूरा करके वापस आने में एक घंटे से भी कम समय लगा।विज्ञान के इतिहास के इस सबसे महंगे प्रयोग पर दुनियाभर के वैज्ञानिक एवं जिज्ञासु दमसाध कर देख रहे हैं क्योंकि प्रयोग की सफलता से न केवल ब्रह्मांड के बारे में जानकारियों का एक नया अध्याय खुलेगा बल्कि ऐसी जानकारियां मिलेंगी जिनसे मानव जीवन को बेहतर बनाया जा सकेगा। सीईआरएन की अगुवाई में यह प्रयोग ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुडे़ महाविस्फोट के अरसे से प्रतिपादित सिद्धांत के कई राज खोलेगा।प्रयोग की देखरेख कर रहे सीईआरएन के महानिदेशक राबर्ट आयमार ने प्रयोग की सफल शुरुआत पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इसमें हमें एक बडे़ चुनौती पूर्ण कार्य को शुरू करने और भविष्य में बड़ी खोज कर पाने की दोहरी खुशी मिल रही है। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] परियोजना के प्रमुख लेयान इवान्स ने प्रोटोन पुंज के एक चक्कर के पूरा हो जाने के बाद कहा, आपका शुक्रिया, आप सबको धन्यवाद!इससे करीब एक घंटे पूर्व वैज्ञानिकों की सांसें प्रोटोन के पहले गुच्छे के उत्पन्न होने तथा कंप्यूटर स्क्रीन पर तेज प्रकाश के कौंधने के बीच के 48 सेकेंड तक सांसें अटक गई। प्रकाश का कौंधना इस बात का प्रतीक था कि प्रोटोन पुंज ने पाइप के भीतर पहले तीन किलोमीटर की दूरी तय कर ली। इसके बाद एलएचसी टीम ने प्रोटोन पुंज को पूरे सर्किट में तेजी से घुमाया। जब प्रोटोन पुंज ने मात्र 23 सेकेंड में अपनी आधी यात्रा पूरी कर ली तब डा. इवांस खुशी से झूम उठे और उनके मुंह से अचानक निकल गया..वाह।प्रयोग के पहले चरण में घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा में एलएचसी मशीन में प्रकाश की गति से प्रोटोन पुंज भेजा गया। दूसरे चरण में घड़ी की सुइयों की दिशा में प्रकाश पुंज छोड़ा जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग के बाद बिग बैंग के सिद्धांत को साबित किया जा सकता है। बिग बैंग के सिद्धांत के अनुसार जब प्रकृति ने ठंडा होना शुरू किया तो गिल्स बोसोन का भारहीन बादल पूरे ब्रह्मांड में छा गया। इसके साथ पृथ्वी तारों और ग्रहों का निर्माण शुरू हुआ।विशेषज्ञों के अनुसार इस महाप्रयोग के दौर ब्लैक हाल प्रोटोन का विशाल बादल बनने की संभावना है। इससे परमाणु के सूक्ष्म कणों की टक्कर से एक श्रृंखला शुरू हो सकती है। इसमें अगणित प्रोटोन पैदा होंगे। श्रृंखला को नियंत्रित करने के लिए ग्रेफाइट की छड़ों को काम में लिया जाएगा।स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर अरबों डालर की लागत से करीब बीस वर्ष में तैयार हुई इस प्रयोगशाला में हो रहे इस महाप्रयोग से प्राप्त होने वाले आंकड़ों का विश्लेषण एवं अध्ययन में कई वर्ष लग सकते हैं।इस प्रयोगशाला में 27 किलोमीटर लंबी सुरंग तैयार की गई है जिसमें विशालकाय पाइपलाइन बिछाई गई है। इसमें एक हजार से अधिक बेलनाकार चुंबकों को जोड़ा गया है। यह पूरा ढांचा तीन अलग-अलग आकार के गोलों में बनाया गया है। लार्ज हेड्रान कोलाइडर के अलग-अलग हिस्से प्रयोग के अलग-अलग परिणामों का विश्लेषण किया जाएगा। परमाणु के सूक्ष्म कणों की टक्कर और उनके प्रभाव से जुडे़ आंकडे़ सीईआरएन समेत पूरी दुनिया में वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में लगे कंप्यूटरों में देखे जाएंगे।

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