लखनऊ। जरा अनाज और सब्जियों के ताजा दाम पर नजर डालिये, दाल-50 रुपये प्रति किलो, आटा-16 रुपये प्रति किलो, चावल 24 रुपये प्रति किलो और कोई भी हरी सब्जी 30 रुपये प्रति किलो से कम नहीं। ऐसे में क्या आठ रुपये में पौष्टिक खाना दिया जा सकता है? आपका जवाब होगा-नहीं, असंभव। पर स्वास्थ्य विभाग भर्ती मरीजों को महज 16 रुपये में दोनों समय पौष्टिक भोजन मुहैया करा रहा है।राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था है। इसके लिए बजट भी है। उदाहरण के लिए बलरामपुर अस्पताल के 20 लाख रुपये के वार्षिक बजट से तीन सौ से अधिक रोगियों के लिए भोजन बनता है। इस प्रकार एक मरीज का भोजन करीब आठ रुपये में तैयार होता है। अनाज और सब्जियों की ताजा कीमतें आसमान छूने के कारण भोजन से हरी सब्जियां करीब गायब हो चुकी हैं और आलू की मात्रा बढ़ गयी है। अस्पताल के निदेशक डा.शोभनाथ बताते हैं कि बीते आठ साल से एक ही दर पर भोजन बन रहा है। इस दौरान कीमतें कई गुना बढ़ी हैं। बावजूद इसके न केवल भर्ती मरीजों को डाक्टर की सिफारिश पर दूध मिल रहा है बल्कि भोजन की गुणवत्ता अच्छी है। सिविल अस्पताल में एक मरीज के तीमारदार धनलाल बताते हैं कि बीते एक हफ्ते से हरी सब्जी के नाम पर परवल-आलू और लोबिया-आलू ही मिला है। इसमें भी परवल और लोबिया की मात्रा नाममात्र की ही रही। दूध तो एक दिन भी नहीं मिला। अस्पताल के अधिकारियों के अनुसार कर्मचारी दूध चोरी कर ले जाते हैं, इसलिए इसे बांटना बंद कर दिया है। राज्य के अन्य अस्पतालों की हालत तो और ज्यादा खराब है। पूर्वाचल का दौरा करके लौटे एक स्वास्थ्य अधिकारी बताते हैं कि गोंडा, बहराइच, बलिया समेत कई जिला अस्पतालों में भोजन की गुणवत्ता खराब होने की शिकायत मिली है। ज्यादातर अस्पतालों में दूध न मिलने की शिकायतें भी हैं। असल में राज्य के किसी भी अस्पताल के अधिकारी भोजन की गुणवत्ता की स्वयं जांच नहीं कर रहे। इसी कारण इसे नियंत्रित नहीं किया जा रहा। इस बारे में जानकारी मिलने पर प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य नीता चौधरी ने महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
क्या हैं भोजन सम्बन्धी मानक:स्वास्थ्य विभाग के तय मानक के अनुसार एक मरीज को एक दिन में 225 ग्राम आटा, 116 ग्राम दाल, 116 ग्राम चावल, 175 ग्राम सब्जी, 14 ग्राम तेल, नौ ग्राम नमक और दो ग्राम मसाला भोजन के रूप में दिया जायेगा। मरीजों को परोसने से पहले अस्पताल के प्रमुख स्वयं भोजन को खाकर उसकी गुणवत्ता परखेंगे। मरीजों को भोजन बांटने वाले सभी कर्मचारी दस्ताने पहनेंगे और ट्राली में रखकर ही भोजन बांटेंगे।
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