शनिवार को हुए बम विस्फोट में कम से कम 18 लोग मारे |
...और फिर दहली दिल्ली:इसके बाद एक और शनिवार आया 12 सितंबर, 2008 का. दिनभर काम करने के बाद मैं वापस लौट रहा था कि तभी फिर दिल्ली में धमाकों की ख़बर आई.
दिल्ली में वर्ष 2005 के धमाकों में 62 लोगों की मौत हो गई थी |
घटनास्थलों में से एक ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 का एम ब्लॉक मार्किट मेरे घर से पाँच-छह किलोमीटर ही है पर यह दूरी पार करने में लगभग एक घंटा लग गया.दरअसल, धमाकों की ख़बर से सड़कों पर अफ़रा-तफ़री सबसे ज़्यादा दिख रही थी. लोग परेशान हाल जल्द से जल्द अपने घरों को पहुँचना चाहते थे.शनिवार को जगमग रहने वाला एम ब्लॉक मार्किट अंधेरे में डूबा हुआ था. पुलिस की गाड़ियों का तेज़ सायरन, लोगों को भगाते पुलिसकर्मी और बेहिसाब पहुँचते पत्रकार धमाके के मौके को घेरे हुए थे.बिखरे काँच और शीशे के टुकड़े, अपनों को खोजते लोग, मोबाइल पर ख़बर लेते परिजन, नमूने जुटाते विशेषज्ञ, नुकसान का जायज़ा लेते दुकानदार... काफी कुछ पिछले धमाकों जैसा था.गनीमत है कि ग्रेटर कैलाश में विस्फोटक ऐसी जगहों पर नहीं थे या शायद इतनी क्षमता वाले नहीं थे कि कई लोग गंभीर रूप से घायल होते, अपनी जानें गंवाते.हालांकि कनॉट प्लेस पर हुए धमाके में सर्वाधिक लोग मारे गए पर क्या आतंक को मापने का पैमाना मृतकों की संख्या भर है.और फिर क्या हुए वो वादे, बातें, कसमें जो दिल्ली को चलाने वालों ने अक्टूबर 2005 में खाई थीं. क्या सुरक्षा तंत्र इन हमलों को रोक सकी.क्या ताज़ा हमले दिल्ली के लोगों का विश्वास खोने की एक और चोट नहीं साबित होंगे. क्या दिल्ली के लोग (मजबूरी छोड़ दें तो) इस बात का एक बार फिर ऐतबार कर लें कि वे यहाँ सुरक्षित हैं.... एक शायद सबसे बड़ी सेना वाले और मज़बूत, आधुनिक (जैसा कि दावा है) ख़ुफ़िया तंत्र वाले देश की राजधानी में.इन सवालों की टोह जब कुछ आम लोगों से ली तो एक ही बात सुनने को मिली. दिल्ली कहाँ सुरक्षित है. कल कुछ मरे थे, आज कुछ मरे हैं. हम कहाँ और कबतक ख़ुद को सुरक्षित मानें.दिल्ली के दिलोदिमाग़ को इन धमाकों ने एकबार फिर झकझोर दिया है.
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