Wednesday, September 17, 2008

पूनम ने दिखाई नई रोशनी अभावग्रस्त बच्चियों को दिया दुलार

कुदरत ने भले ही उनकी गोद नहीं भरी परंतु उनके मन में हिलोरे खाता ममत्व का दरिया वह नहीं सुखा पाया। जिसका प्रवाह सहज ही स्नेह और दुलार की लहरों को समेटे होता है। समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग रतलाम के 'किन्नर समाज' ने वह काम कर दिखाया जो हम सभी के लिए एक आदर्श बन गया है तथा समाज को एक नई दिशा दे रहा है। इतना ही नहीं यह समाज के अभावग्रस्त परिवारों के लिए आशा की किरण बन उम्मीदों का नया सवेरा ला रहा है। हम आज जिक्र कर रहे हैं रतलाम की किन्नर पूनम जान का, जिसने आज एक अभावग्रस्त परिवार की लड़की के लालन-पोषण की जिम्मेदारी केवल इसलिए उठाई है क्योंकि उसके अभिभावक इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपने तीन (दो लड़कियाँ, एक लड़का) बच्चों के साथ इस नन्ही बच्ची की परवरिश भी अच्छे से कर सकें।



पूनम ने इस नन्ही बच्ची को अपना 'स्नेह' और उसके गरीब माता-पिता को एक संबल दिया। पूनम आज इस तंगहाली के शिकार परिवार के लिए निराशा के अंधकार में उम्मीदों की रोशनी बनकर उभरी है। ढाई वर्ष की 'रोशनी' के जीवन में आज वे खुशियाँ पूनम की बदौलत किलकारियाँ भर रही हैं, जो उसके हमउम्र अभावग्रस्त परिवारों के बच्चों के नसीब में नहीं हैं। पूनम और उसके साथी उसी हसरत से रोशनी की परवरिश कर रहे हैं, जैसे एक 'माँ' करती है। रोशनी भी इन सभी के बीच कुछ इस तरह घुल-मिल गई है जैसे यहीं उसका घर-आँगन और परिवार हो।



रोशनी की ही तरह पूनम ने कुछ वर्ष पूर्व एक और नन्हीं बच्ची 'सोनू' को भी गोद लिया था। जो आज लगभग सात वर्ष की हो गई है। सोनू अभी अपनी नानी के घर रह रही है तथा उसकी परवरिश का सारा खर्च पूनम ही उठा रही है।

पूनम के अनुसार 'सोनू उस वक्त मात्र दो दिन की थी। जब हमने इसे अपनाया था। उस वक्त सोनू के माँ-बाप उसे अपनाने को तैयार नहीं थे क्योंकि सोनू उनकी चौथी संतान थी जो लड़की थी। अत: मैं और मेरे साथी उसे अस्पताल से ही अपने साथ ले आए थे।' समय के साथ शनै:-शनै: इस रिश्ते की डोर प्रगाढ़ होती जा रही है। पूनम का सपना है कि वह 'रोशनी' और 'सोनू' को अच्छी शिक्षा देकर अपनी उन आशाओं को पूरा करे, जो आम अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर करते हैं। पूनम के अनुसार- 'ये बच्चियाँ हमारे परिवार के सदस्यों जैसी है।'पूनम से यह पूछा जाने पर कि 'आप लोग जिस अभिशप्त अवस्था में जी रहे हैं तथा अपना जीवन-निर्वाह कर रहे हैं, क्या उसका साया इस अबोध बच्ची 'रोशनी' के जीवन पर नहीं पड़ेगा? क्या आप लोग रोशनी से वही काम करवाएँगे जो आज आप कर रहे है...?' इन विचलित कर देने वाले सवालों पर पूनम आत्मविश्वास से भरा यही प्रत्युत्तर देती है कि 'लोगों का काम तो बोलना है मगर कल जमाना देखेगा कि पूनम की रोशनी ने समाज को क्या नई रोशनी फैलाई हैं...' बहरहाल किन्नर समाज की एक अभावग्रस्त परिवार की बच्ची के प्रति सहृदयता अभिनंदनीय है। पूनम ने इस लाडली लक्ष्मी को एक नया जीवन दिया है। जिसके परिवार पर मँडराते अभावग्रस्तता के बादलों ने उसका भविष्य अंधकारमय कर दिया था। आज हमारे समाज में 'रोशनी' व 'सोनू' अकेली लड़कियाँ नहीं है। इन्हीं की तरह ऐसी अनेक रोशनी व सोनू हैं जिन्हें आज पूनम की तरह किसी आसरे की तलाश है। उन्हें भी अपने जीवन में नए सवेरे का इंतजार है। लाख टके का सवाल यह है कि पूनम की 'प्रेरणा' समाज को कितना 'अभिप्रेरित' कर पाती है...? इस विषय पर गंभीरतापूर्ण चिंतन की जरूरत है। एक ऐसा चिंतन जो समाज में एक नई शुरुआत को जन्म द

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