Monday, September 8, 2008

जस्टिस सेन पर महाभियोग

नई दिल्ली। केंद्र सरकार कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है।मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने कदाचार के आरोप में सेन को पद से हटाने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ कार्रवाई किए जाने का सुझाव मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के जी बालाकृष्णन ने दिया है। इस सुझाव को पिछले महीने प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया गया था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस सिफारिश पर सुझाव के लिए इसे कानून मंत्रालय के पास भेज दिया था। न्यायमूर्ति सेन को कोई काम आवंटित नहीं किया गया, लेकिन वह निरंतर अपने पद पर बने हुए हैं।कानून मंत्री एच आर भारद्वाज ने कहा कि मुझे कुछ दिन पहले पत्र मिला है। हम उसकी जांच कर रहे हैं और जरूरी कार्रवाई किए जाने के संबंध में तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश के मुख्य न्यायाधीश ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रकिया शुरू किए जाने की सिफारिश की है। ऐसे में हमें इस मामले में ससंद में जाना होगा। कानून मंत्री ने कहा कि कोई भी इसे नहीं रोक सकता क्योंकि, इस बारे में सुझाव भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से आया है। अगर इस सुझाव को अमल में लाया जाता है तो देश के किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की यह दूसरी प्रक्रिया होगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति की ओर से इस मामले में की गई जांच में न्यायमूर्ति सेन इस पद पर आसीन होने से पहले कथित तौर पर वित्तीय कदाचार में लिप्त पाए गए।उन पर स्टील आथिरिटी आफ इंडिया लि. और शिपिंग कारपोरेशन आफ इंडिया के बीच मुकदमे के मामले में अदालत की ओर से नियुक्त रिसीवर के रूप में 32 लाख रुपये लेने और उसे अपने निजी खाते में जमा करने का आरोप है।

मामले की जांच के लिए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति ने न्यायमूर्ति सेन को अपने निजी खाते में रुपये जमा करने के मामले में कदाचार का दोषी पाया। सरकार अब महाभियोग प्रस्ताव या तो लोकसभा में या फिर राज्यसभा में लाएगी। उसके बाद सदन के पीठासीन अधिकारी मामले की जांच के लिए समिति गठित करेंगे और अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो दोनों सदनों को प्रस्ताव को पारित करना होगा। कानून मंत्री ने मध्य अक्तूबर से शुरू हो रहे संसद के आगामी सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाये जाने की संभावना से इनकार नहीं किया। भारद्वाज ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव पर 100 सांसदों के हस्ताक्षर की संवैधानिक अनिवार्यता इस मामले में संभवत: लागू नहीं हो, क्योंकि यह सरकारी प्रस्ताव होगा।मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि न्यायमूर्ति सेन की ओर से जरूरी कागज मुहैया कराए जाने से संभवत: इंकार किए जाने के कारण मामला महाभियोग स्तर पर पहुंचा है, जबकि मुख्य न्यायाधीश की ओर से नियुक्त समिति को कथित वित्तीय कदाचार मामले में उनके खिलाफ साक्ष्य मिल गया था। न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ अगर महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है तो उच्च न्यायपालिका के किसी न्यायाधीश के खिलाफ लाया जाने वाला महाभियोग का यह दूसरा मामला होगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी रामास्वामी के खिलाफ 1991 में महाभियोग प्रस्ताव लाए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। उन पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते फर्नीचर खरीद मामले में कदाचार का आरोप था। प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया था तथा उस पर मतदान के लिए भी कहा, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेसी सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया। न्यायमूर्ति सेन के मामले में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति की ओर से नियुक्त समिति ने इस आरोप को सही पाया कि उन्होंने वर्ष 1993 में अदालत की ओर से नियुक्त प्राप्तकर्ता के रूप में 32 लाख रुपये प्राप्त किए और उसे अपने निजी खाते में जमा किया। उस समय वह कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे थे। समिति ने पाया कि सेल और एससीआई के बीच जारी मुकदमे में उन्होंने कथित रूप से अग्निरोधक लकड़ी की आपूर्ति मामले में प्राप्त रकम अपने पास रखी और एक दशक तक हिफाजत का हवाला देते हुए दूसरे खाते में स्थानातंरित नहीं किया।वर्ष 2003 में वह हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए और इसके बाद भी उन्होंने कथित तौर पर रुपये दूसरे खाते में जमा नहीं किए। वर्ष 2006 में हाईकोर्ट से मिले निर्देश के बाद उन्हें रुपये जमा करने पड़े। उन्होंने 52.46 लाख रुपये अदालत में जमा किए। अग्निरोधक लकडि़यों की बिक्री से प्राप्त 32 लाख रुपये को अपने निजी खाते में जमा करने के मामले में सेल ने न्यायमूर्ति सेन के हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनने के दो साल बाद चुनौती दी थी।

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