मदद के हाथ:मैं लाल पैथॉलौजी में लैब टेक्निशियन हूँ, इसलिए दिमाग का सहारा लिया और पैर को ऊपर उठाने की कोशिश की ताकि ज़्यादा खून ना बहे.मैंने इसी समय एक अंकल को पत्नी सीमा का फ़ोन नंबर लगाने को कहा. उन्होंने फ़ोन मिलाया और मुझे थमा दिया. मैं सिर्फ़ इतना कह पाया कि मैं ठीक हूँ.
तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरा दायाँ पैर सुन्न पड़ चुका है. मेरे होश उड़ गए. घुटने के नीचे पैर की मांसपेशियाँ गायब थी और हड्डियाँ दिखाई दे रही थी. उसी में प्लास्टिक का एक टुकड़ा धँसा था. |
भागमभाग के बीच तभी मदद के हाथ आगे आए. मुझे दो और घायलों के साथ एक एंबुलेंस में बिठाया गया लेकिन गाड़ी कब आगे बढ़ी मुझे याद नहीं क्योंकि मैं फिर अचेत हो चुका था.दूसरी बार तब आँखें खुली जब लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर मेरे घाव की सफाई कर रहे थे. प्लास्टिक का फँसा टुकड़ा निकाला जा चुका था.मुझे अभी तक अंदाज़ नहीं है कि धमाका बस स्टैंड के किस हिस्से में हुआ. कोई गंध नहीं आ रही थी, इसलिए पता नहीं कि सिलेंडर ब्लास्ट था या कोई और बम था.गुजरात में ब्लास्ट के बाद कुछ दिनों तक हम अपने दोस्तों से चर्चा करते थे कि अब दिल्ली की बारी है लेकिन काफी दिन बीतने के बाद हमें लगा कि दिल्ली सुरक्षित है.शायद बम विस्फोट करने वालों को इसी का इंतज़ार था कि लोग निश्चिंत हो जाएँ. पता नहीं ये लोग क्या हासिल करना चाहते हैं.
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